नेता जी
नेता जी
चुनावी माहौल था,ओर उसमे एक निष्ठावान नेताजी को अपनी पार्टी द्वारा टिकिट दिये जाने का पूरा यकीन था।और उनके आसपास बढ़ती जा रही समर्थकों की भीड़। इस यकीन को दिन ब दिन ओर पक्का करती जा रही थी।पर पार्टी ने आखरी मौके पर,उनकी जगह किसी दूसरे प्रत्याशी पर अपना भरोसा जताते हुए।उसे अपना उम्मीदवार घोषित किया।जिससे अब नेताजी खुद को ठगा हुआ महसूस कर।अपनी कथित लोकप्रियता के बल पर निर्दलीय चुनाव लड़ ,पार्टी के फैसले को गलत साबित करना चाहते थे।किंतु टिकिट की घोषणा के अगले ही दिन से उनके आसपास की भीड़ अनायास छटने लगी।और दो तीन दिन बाद उनके कुछ खास समर्थकों ने जिनसे उनके रिश्ते ,शायद राजनेतिक स्वार्थ से ऊपर थे ,उन्हें बताया कि अब वही भीड़ पार्टी प्रत्याशी के दरबार की शोभा बढ़ा रही है जो कल तक आपके लिये जुटती थी।अपने समर्थकों की बात सुन नेताजी को लगा ,जैसे कोई एक ही रात में उनकी पकीं पकाई फसल काट ले गया।और फिर अगले ही दिन वो अपने परिवार को साथ ले, देव दर्शन की एक लंबी यात्रा पर निकल गए।खुद को संबोधन में ,बरसो से नेताजी सुनने वाले।वो,शायद आज ही इसके वास्तविक अर्थ को समझ पाए थे।
