Ravi Ranjan Goswami

Drama Fantasy Inspirational

2.5  

Ravi Ranjan Goswami

Drama Fantasy Inspirational

नेकी कर दरिया में डाल

नेकी कर दरिया में डाल

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बहुत समय पहले की बात है, भारत के उत्तर-पश्चिम भाग के एक सुदूर गाँव में शरीफ नाम का 17 साल का लड़का अपने माँ-बाप के साथ रहता था। माँ-बाप बांस के घरेलू उपकरण बनाकर बेचते थे।


लड़का एक धनी किसान की भेड़-बकरियाँ चराता था। वह उन्हें नई नई घास वाली जगह ले जाकर चरने के लिये छोड़ देता। स्वयं एक स्थान पर बैठकर बांसुरी बजाता या दिवास्वप्न में डूब जाता था।


उसके दो सपने थे। एक था मां-बाप के लिये एक महल बनवाना। दूसरा उस राज्य की राजकुमारी से विवाह करना। वह यह भी समझता था, ये दोनों ही बातें असंभव सी थी। फ़िर भी वह अपने मन को नहीं समझा पाता था।


एक दिन उसके एक साथी ने कहा, "मैंने सुना है मंदिर के पास एक फकीर बैठता है। वह बहुत पहुंचा हुआ है। उसने ग्राम वासियों की बड़ी मदद की है। सेठ साहूकार भी उससे सलाह लेने जाते हैं।"


शरीफ अपने दोस्त की बात सुनकर उस फकीर से मिला और पूछा, "मैं ऐसा क्या करूँ कि मेरी दो खास तमन्नाएं पूरी हो जायें।"


फकीर ने पूछा, "वे खास तमन्नाएं क्या है।"


शरीफ ने बताया, "एक तो मां-बाप के लिये एक महल बनवाना। दूसरा इस राज्य की राजकुमारी से विवाह करना।"


फकीर ने कहा, "नेकी कर दरिया में डाल।"


शरीफ ने पूछा, "क्या मतलब?"


फकीर का मतलब तो था 'नेकी करो और भूल जाओ।' किन्तु यह देखकर कि शरीफ को माँ-बाप के सुख और आराम की चिंता है, फकीर विशेष प्रसन्न हो गया था।


उसने शरीफ का काम आसान करने हेतु उससे कहा, "अधिक से अधिक नेक काम करो और जब भी कोई नेक काम करो एक बताशा गाँव के नजदीक से बहने वाले दरिया में बरगद के पेड़ के पास वाले किनारे पर डाल आया करो।"


शरीफ अब नेकी का कोई अवसर न गॅंवाता। अपनी सीमित आय में से भी गरीबों को दान देना, कमजोर की सहायता, बीमारों की सेवा उसका व्यसन बन गया। हर नेकी के बदले वह एक बताशा दरिया में फकीर के बताये स्थान पर डाल आता था। अगर वह रोज नहीं जा पाता था तो बहुत से बताशे एक साथ दरिया में डाल देता था।


शरीफ की नेकियों के चर्चे गाँव, शहर होते हुए राजधानी और राजदरबार तक पहुँच गये।


इधर फकीर के अलावा किसी को ज्ञात नहीं था कि दरिया के किनारे उस बरगद के पेड़ पर एक जिन्न रहता था जिसके करीब शरीफ दरिया में बताशे डालता था।


उस जिन्न को बताशे बहुत पसंद थे। जब शरीफ दरिया में बताशे डालता तो उन्हें डूबने या घुलने से पहले ही वह अपना एक हाथ लंबा करके बताशे उठा लेता और मुँह में डालकर मजे से चूसता।


इस प्रकार बहुत दिनों तक लगातार बताशे खाकर वह शरीफ से अति प्रसन्न हो गया।

 

उसके मन में शरीफ को पुरस्कृत करने का विचार आया और एक दिन वह शरीफ के सम्मुख प्रगट हो गया। 

उसने शरीफ से कहा, "मैं जिन्न हूँ और तुम्हारे नेक कार्यों से खुश हूँ। मैं तुम्हारी कोई एक इच्छा पूरी कर पुरस्कृत करना चाहता हूँ।"


शरीफ ने बेहिचक जवाब दिया, "मैं अपने माता-पिता के लिए एक महल बनाना चाहता हूँ।"


जिन्न ने कहा, "ठीक है बन जायगा।"और वह गायब हो गया।


शरीफ अपने घर वापस चल दिया। घर पहुँच कर उसके आश्चर्य और खुशी का ठिकाना न रहा। उसका घर एक सर्वसुविधा सम्पन्न महल में तब्दील हो चुका था। उसके माँ-बाप चमत्कृत और खुश थे। शरीफ ने उन्हें जिन्न के बारे में बताकर उनकी जिज्ञासा को शांत किया।


उधर शरीफ के द्वारा किए जाने वाले नेक कामों के कारण फैली उसकी ख्याति राजा और राजकुमारी तक पहुंची। राजा ने भी राज्य के अन्य लोगों को अच्छे कार्यों को करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से शरीफ को राजधानी में बुलाकर सम्मानित और पुरस्कृत करने का निर्णय किया। उसने अपना दूत भेज कर शरीफ को बुलवा भेजा।


जब शरीफ राजधानी में राजदरबार में पहुंचा तो उसकी बातों, व्यवहार और व्यक्तित्व से राजा और राजकुमारी दोनों प्रभावित हुए। राजकुमारी दमयंती विवाह योग्य थी। राजा को उसके लिए एक सुयोग्य वर की तलाश थी। उन्होंने राजकुमारी से पूछ कर शरीफ के समक्ष राजकुमारी से विवाह का प्रस्ताव रख दिया जिसे शरीफ ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।


राजा ने एक जन समारोह में शरीफ को उसके नेक कार्यों के लिए सम्मान और पुरस्कार दिया। साथ ही राजकुमारी और शरीफ के विवाह की भी घोषणा कर दी।


राजा ने एक रथ भेजकर शरीफ के माता-पिता को राजमहल में बुला लिया और एक सप्ताह बाद शुभ मुहूर्त में दमयंती और शरीफ का विवाह सम्पन्न किया। सभी प्रसन्न थे। शरीफ की प्रसन्नता का पारावार न था। उसके दोनों सपने सच हुए थे। किन्तु वह समझ गया था ये उसके द्वारा किए गये नेक कार्यों का परिणाम था। अतः उसने नेक कार्य करते रहने का निश्चय किया और सुखपूर्वक राजकुमारी दमयंती और अपने माता-पिता के साथ महल में रहने लगा।


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