MITHILESH NAG

Inspirational Tragedy

5.0  

MITHILESH NAG

Inspirational Tragedy

नदी की आत्मकथा

नदी की आत्मकथा

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“ मैं कैसे कह दूँ, कि नदी की आत्मकथा मैं तो कह सकता हूँ कि नदी की आत्महत्या ” चौक गए ना, आज इंसान पानी को उपयोग से ज्यादा उसको उपभोग का साधन बना लिया है।

“जिस नदी को हम गंगा, यमुना, सरस्वती, औऱ पता नही हम किस किस नाम से पुकारते है। ये मैं क्या पूरी दुनिया जानती है।”

इसी गंगा को दुनिया की सब से अनमोल नाम से पुकारते है। “ माँ ”

एक ऐसा शब्द जिसका कोई मोल नही होता है।” 

खैर एक गंगा माँ तो एक जन्म देने वाली माँ जो हमारे लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन हम क्या मानते है अब पढने के बाद पता चलेगा।

“बेटा अर्जुन कहाँ हो, कब से तुम्हरा इंतज़ार कर रही हूँ लेकिन पता नही कहाँ चले गए हो ?” (किचन से आवाज़ लगाते)

“आया माँ वो बाहर थोड़े से कूड़े थे वही फेंक रहा था”। ( दौड़ कर आते)

“अच्छा, सुनो आज जब स्कूल से आना तो मार्केट से थोड़ा सब्जी ले लेना क्यो की कल तुम्हरे पापा के कुछ दोस्त आ रहे है तो कुछ अच्छा बनना है”। ( खाने की टिफिन देते)

“ठीक है, माँ (टाटा करते बाहर जाते)।

रास्ते में

अर्जुन जिस ओर से स्कूल जाता है उसी ओर गंगा नदी भी जाती है। और उसी पर एक पुल बना है, जिस पर से लोग गुजरते है। 

उस नदी की सब से बड़ी खासियत ये है, की पूरा गांव एक पहाड़ पर बसा है और सभी उसी नदी का पानी पीते है।

अर्जुन स्कूल पहुचता है, चारो ओर बच्चों की भीड़ लाइन लगा कर खड़े है। और कुछ देर मेंं प्रार्थना शुरू हो जाती है। फिर कुछ देर मेंं सभी बच्चों को एक मैदान मेंं इकट्ठा होने को कहते है।

“देखो बच्चों आज सभी का एक एग्जाम होगा और एग्जाम ये है कि सभी को अपने अपने क्लासरूम मेंं साफसफाई करनी है और उसको बाहर फेकना है। समझे सब ” ( नियम बताते)

सभी बच्चे एक साथ हाँ बोल कर अपने काम में लग जाते है।

लेकिन कुछ देर बाद बहुत सारे कचड़े को बाहर नहर मेंं फेंक देते है।

शाम को सब 4 बजे अपने अपने घर निकल जाते है। लेकिन उस गंगा को गंदा करने मेंं कोई नरमी नही करते है। अर्जुन भी घर की ओर उसी नदी से गुजरता है।

रात को गंगा नदी की पुकार

“लोग मुझे बस नाम के गंगा माँ बोलते है। ये कैसा प्यार है मेंरे बच्चों का, मैं भी तो इनको अपनी छाती से दूध देती हूँ। बस फर्क इतना है कि ये इसको पानी मानते है।” मैं भी सोचती हूँ कि मुझे भी सब प्यार दे । और मेंरा ख्याल करे। (“ अपनी दुख को खुद से बयान करती)।

अर्जुन के घर

“माँ देखो गोभी, मटर, पनीर और ये थोड़े से धनिया भी लाया हूँ। और जो मसाला बोली थी वो भी है। ( एक पन्नी से सब निकालते)।

“ठीक है अब कल तो स्कूल बंद है तो शाम को घूमने चलते है।”

और जब अर्जुन की माँ किचन मेंं जा रही थी तो अर्जुन देखता है कि माँ के साड़ी पर कुछ गंदा लगा है। और वो उनकी साड़ी को साफ करता है। फिर वो अपने रूम मेंं आ कर पढ़ाई करता हूं।

नवरात्रि के अंतिम दिन

आज पूरे शहर मेंं नवरात्रि का अंतिम दिन है। लोगो की भीड़ लगी है। चारो ओर लोग जो भी कचड़ा पा रहे है उसको उस गंगा नदी मेंं फेंक दी रहे है। अपने आप को तो सब साफ कर ले रहे है लेकिन उस माँ को तो गंदा कर रहे है।

गंगा नदी की पुकार

“कितने स्वार्थी है, ये लोग अपने घर का कचड़ा मेंरे मुंह पर दे मार रहे है। ऐसे तो मैं कुछ दिन मेंं बीमार हो जाऊँगी और मेंरा कौन ख्याल रखेगा। एक दिन मैं खुद अपनी धरती बहन को छोड़ कर हमेंशा हमेंशा के लिए ये दुनिया छोड़ दूँगी।”

टीवी पर

एक दिन अर्जुन की माँ टीवी देख रही थी। श्याद उनको इतना पता नही था कि जिस नदी को हम इतना खराब कर रहे है एक दिन जब ये नही रहेंगी तो हम बिना पानी के मार जाएंगे। धीरे धीरे ये नदी बीमार गो जाएगी और फिर सूखने लगेंगीं।

“है! भगवान मैंने तो कभी सोचा नही की ऐसा भी कभी हो सकता है। और अब तो लोग नदी हो या समुद्र जो भी मिलता है उसको ही गंदा करते रहते है।”

और इस तरह से तो गंगा नदी सूखने का मतलब आत्महत्या करने के बराबर होगा ।

अर्जुन की माँ की यूनिटी

अर्जुन की माँ ने लगभग 3 साल लोगो को इस मुहिम से जोड़ी और सब को इसका महत्व भी समझया । लेकिन औरते तो समझने लगी लेकिन लड़के और आदमी जैसे हर बात को अनसुना कर देते थे । 

और देखते ही देखते सच में वो नदी सूखने के कगार पर आ गयी । 

सभी औरते अपने अपने परिवार को सबक सीखने के लिए एक तरकीब निकाली।

एक दिन बीमार अर्जुन की माँ

“सुनते हो अर्जुन के पापा मैं बहुत बीमार हो गयी हूँ।और पूरा शरीर बुखार से तप रहा है।” ( चादर से लिपटी हुई)।

“क्या बोल रही हो अर्जुन तुम अपनी मम्मी का ध्यान दो मैं दवा लेकर आता हूँ।” (घबराते हुए )

“माँ क्या हो गया ?” ( रोते हुए)

“सोचती हूँ, आत्महत्या कर लूं”। 

अब अर्जुन और तेज़ तेज़ से रोने लगा और उसके पापा भी आते है घर पर तो अर्जुन पूरी बात बोलता है। जिससे वो भी बेचैन हो कर रोने लगता है।

“ऐसा क्यों बोलती हो पूजा, मैं तुम को कुछ नही होने दूँगा”।

कुछ देर

अब पूजा उठ कर बैठ जाती है। और दोनों को देखने लगती है। वो दोनों भी उसको देखने लगते है। अर्जुन अपनी माँ लिपट कर रोने लगता है।

“अब समझ में आया तुम दोनों को, माँ क्या होती है, या बीबी क्या होती है।” जब अपनो पर दुख आता है तो सब को समझ में आता है।लेकिन जरा उस माँ से पूछो जिसको तुम दिन रात कचड़े से भर देते हो।

“कभी सोचा कि तुम क्या कर रहे हो।पिछले 3 साल से मैं और मेंरे ही जैसी ना जाने कितनी औरते इस मुहिम से जुड़ी है। कितना हम सब कोशिक करते है लेकिन वही फिर होता है।”

अर्जुन और उसके पापा को समझ में आ गया कि अगर जन्म देनी वाली माँ मेंरी है तो ये जल की देवी भी तो मेंरी माँ है।

धीरे धीरे और लोगो को इस मुहिम से जोड़ते है जिस नदी को सूखने दिया जा रहा था। उस नदी को फिर से एक साफ स्वच्छ माँ का दर्जा मिल जाता है।

गंगा नदी की सोच और उनकी पुकार

“मुझे अच्छा लगा कि मेंरे बच्चे मुझे माँ मानते है। नही तो मैं एकदम से टूट कर बिखर गई थी । और सोचती थी आत्महत्या कर लूँ। लेकिन अब एक उम्मीद बन रही है कि शायद एक दिन मुझे पूरी तरह से साफ कर देंगे।


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