Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

नापसंद हमें यह भूमिका ..

नापसंद हमें यह भूमिका ..

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स्कूल में प्राइमरी के छात्र के निर्मम हत्या से हमें बहुत दुःख हुआ था। स्कूल की साख गिरने से हमारी आय में कमी हुई थी। पिछले साल से स्कूल स्टॉफ की सैलरी भी पूरी नहीं निकल पा रही थी। इससे मेरी ज़िंदगी बहुत परेशान गुजर रही थी।

ऐसे में कोरोना वायरस ख़तरा बन कर आया। सरकार द्वारा लॉक डाउन किया गया। सभी स्कूल बंद हो गए।

मुझे, करने को कोई काम नहीं रहे। घर में रहते इतनी फुरसत मुझे, कभी नहीं मिली थी। मानसिक रूप से बिन दबाव की स्थिति ने, पहले सप्ताह में यह ज्ञान कराया कि, आवश्यकता से बहुत अधिक बटोरने की प्रवृत्ति, मैंने अपने पर व्यर्थ लादी हुई थी।

वस्तुतः शिक्षण सँस्था बनाने में, प्रमुख लक्ष्य, अपने देश और समाज को शिक्षित करना होना चाहिए। मुझे, अपनी यह बड़ी भूल लगी कि मैंने उससे धन कमाना प्रमुख किया हुआ था। 

मेरे मन में प्रश्न उठा कि यूँ बड़ी बड़ी फीस भुगतान करने वाले, मेरे जैसों के द्वारा शिक्षित बच्चे, शिक्षा उपरांत क्या करेंगे?

उत्तर बहुत स्पष्ट था कि, अपने पालकों के द्वारा किये पूँजीनिवेश (इंवेस्टमेंट) के बदले में, अपने लिए ज्यादा से ज्यादा अभिलाभ (गेन) सुनिश्चित करने में लगेंगे।

मैं, जो पूर्व में कभी नहीं सोच सका था, वह परिदृश्य, अपनी आँखों के सामने निर्वात में मुझे दिख रहा था। परिदृश्य, मुझे अत्यंत डरावना लग रहा था। देश की सभी प्रतिभायें अगर शिक्षा उपरान्त, सिर्फ अपने लिए धन-वैभव बनाने में लगेगीं तो कौन, देश और समाज बनाएगा?

समझना सरल था कि सबकी अपनी अपनी ओर की ये खींचतान तो, निश्चित ही बुराई और बढ़ा देगी। लोग और ज्यादा बीमार प्रथा (इल प्रैक्टिसेस) में लिप्त होंगे। ऐसे शिक्षित होने से, समाज को कोई फायदा नहीं रहेगा। 

मेरी ऐसी सोच-विचार के साथ, लॉक डाउन के दिन बीत रहे थे। प्रधानमंत्री के आह्वान विपरीत, मैं देख रहा था कि, कोई राजनीति कर रहा था, कोई कालाबाज़ारी कर रहा था, कोई व्यर्थ अफवाहें फैला रहा था। इन सबसे विशेष कर महानगरों में अफरा-तफरी मच रही थी।

ऐसा प्रतीत हो रहा था कि पढ़े लिखे देश को, देश से कोई सरोकार नहीं है। कोई नहीं सोच रहा है कि विशाल आबादी वाला अपना यह देश, कोरोना की स्थिति बिगड़ने से किस हालत में पहुँचेगा?

मैं बहुत दुःखी हुआ, सोचने लगा यह देश मेरा है। शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से मैंने बहुत धन बनाया है। यह धन मुझे, इसी देश से मिला है। उसमें से कुछ अभी देश को लौटाने की बारी/समय है।

तब, मैंने अपनी शिक्षण संस्था में, स्टॉफ/कर्मचारी के लिए लॉक डाउन की अवधि में पूरे वेतन एवं बच्चों के शिक्षण शुल्क न लिए जाने का, ऐलान करवा दिया। 

साथ ही व्हाट्सअप संदेशों के जरिये, स्टॉफ को हमारी संस्था ओर से कुछ सृजनात्मक (क्रिएटिव) करके दिखाने के लिए कहा।

स्टॉफ एवं हमारे स्टूडेंट्स ने इस अनोखे अवकाश का अच्छा प्रयोग किया। मुझ से स्वीकृति लेते हुए, स्टॉफ एवं स्टूडेंट्स ने, लगभग एक माह की अवधि में, एक ऑनलाइन सकारात्मक भाषण प्रतियोगिता का आयोजन तय किया। जिसमें, हमारे स्कूल के कक्षा 9 से 12 तक के स्टूडेंट्स को हिस्सा लेना था।

तय समय पर मंचित किया गया, यह ऑनलाइन आयोजन, हमारे स्टूडेंट्स एवं उनके पेरेंट्स में अत्यंत उत्साह से देखा गया। मुझे गर्व हुआ कि स्टूडेंट्स ने उत्कृष्ट प्रतिभा का परिचय दिया।

इसमें, लगभग 40 प्रतियोगी बच्चों ने, एक से बढ़कर एक, विचार व्यक्त किये। मैंने एक से अधिक बार, उन्हें देखा-सुना।

हमारे इस आयोजित कार्यक्रम में, सभी बच्चों के भाषण ओजस्वी एवं सृजनात्मक विचारों से भरपूर रहे।

इसमें से कक्षा 10 के, एक बच्चे का भाषण वायरल हुआ। जिसे, पूरी दुनिया में देखा जा रहा है, जिसमें बच्चा ऐसा कहते हुए दिख रहा है-

हम बच्चे मैथ्स पढ़ते हुए इसके ज्ञान का प्रयोग, गणितीय एवं विज्ञान की गणनाओं में करते हैं। और जब हम, पूर्ण शिक्षित होते हैं तो अपने गणित ज्ञान का प्रयोग, मुख्य रूप से अपने आय व्यय की गणना एवं उस माध्यम से करोड़पति या अरबपति होने के लिए करने लगते हैं। जबकि गणित वह विशिष्ट विषय है जिसका प्रयोग मानवता के लिए भी हो सकता है। यह सुनकर आप सोचेंगे, कैसे? (एक पॉज लेकर) मैं बताता हूँ, कैसे! मानवता अपने भव्य स्वरूप में कब होती है? बड़ा ही सरल सा उत्तर है कि जिस पीढ़ी या देश/समाज में नागरिकों में मानवीय गुणों का आधिक्य एवं दुर्गुणों में कमी रहती है। तब उसमें मानवता भव्यता प्राप्त करती है। ऐसे में यदि हमें, अपने देश और इस पीढ़ी में, मानवता को फलते फूलते देखना है तो सर्वप्रथम हमें, अपने गुण-अवगुण को पहचानना है। फिर अपने सद्गुणों में वृद्धि और अवगुणों में कमी करना है। इस वैश्विक विपदा के काल में हमें, अपने सद्गुणों में 10-20 जोड़ते हुए नहीं बढ़ाने हैं, इनमें 10-20 गुणा करते हुए बढ़ाने हैं। ऐसे ही अपने दुर्गुणों में कमी, 10-20 घटाते हुए नहीं, अपितु 10-20 से भाग देते हुए, लानी है। हम, ऐसे गणितीय तरह के संकल्प से जुटें तो, यह देश, दसियों ऐसे कोरोना से निबट सकता है और देश में प्रसारित मानवता का परचम, विश्व में फहरा सकता है। छोटे बच्चे के इस भाषण से, मैंने रियलाइज किया कि हमारा देश नव प्रतिभाओं की दृष्टि अत्यंत संपन्न है। यदि इस बच्चे के बताये तरीके से हम स्कूल/कॉलेज के गुरु, अपने गुणों में वृद्धि एवं अवगुणों में कमी, इस तेजी से ला सकें तो हमारे द्वारा शिक्षित किये बच्चों में, उनकी प्रतिभा का प्रयोग, समाज/राष्ट्र नव निर्माण की दिशा में सुनिश्चित किया जा सकता है। ऐसे गुरुओं के द्वारा तराशे गए बच्चे जब विद्यालयों में शिक्षक, देश में नेता, जनसेवा में कर्मचारी, व्यापारी और कृषक होकर शिक्षण/सेवा/व्यवसाय/खेती करेंगे तो, हम कल्पना कर सकते हैं कि विश्व में भारत को क्या स्थान मिल सकेगा .... साथ ही देश की सुरक्षा में तैनात सेना का, ऐसे नागरिकों की रक्षा में गौरव अनुभव होगा। (नोट- इस आयोजन ने हमारी संस्था की साख की दिशा, गिरती से बढ़ती की तरफ मोड़ दिया)--


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