नाजायज फायदा
नाजायज फायदा
फटी- पुरानी, मैली-कुचेली धोती, सर पर मिट्टी का टोकरा, तीखे नैन-नक्श, सांवला रंग, श्यामवती आज कुछ उदास लग रही थी।
सामने पेड़ की छांव में, चादर को पेड़ से बांधे झूले में उसका नन्हा बालक बड़ी मुश्किल से सोया था। फिर वह अपने काम में लग गई। रोज-रोज की शराबी-जुआरी पति की झड़पों से तंग आ चुकी थी।
ऐसे रोब जमता था की वह उसकी जागीर हो। मारता-पीटता था, सारे जेवर बेच डाले थे। घर गिरवी रख दिया था। आज तो उसके सब्र की हद हो गई उसने माँ का दिया लॉकेट बच्चे के गले से झपट लिया।
वह दर्द से कराह रहा था। उसके गले में सूजन आ चुकी थी। उसने एक निर्णय लिया और पति से अलग रहने लगी। वह उसे कई बार लेने आया तो उसने साफ़ इंकार कर दिया। बोली- मैंने तुझे सुधरने के कई मौक़े दिए मैं अपना और बच्चे का भरण-पोषण कर सकती हूँ अब तक तूने मेरी शराफत का नाजायज फायदा उठा।