मूषक मुक्ति
मूषक मुक्ति
काश ! काश मैं मूषक होती तो ज्यादा सुखी होती। जब चाहा ठाकुर जी के आले से प्रसाद खाती। चाहे जहाँ-यहाँ से वहाँ उछलती- कुदती, पर अपनी ऐसी किस्मत कहाँ।
चूहा जो एक छोटा सा प्राणी है, कितने बवाल कर सकता है। पता है, उस रोज जब चूहादानी में फंसा चूहा कामवाली के हाथों खाली प्लॉट में छोड़ने के लिए भेजा तो न जाने कहाँ से बाहुबली साहब ने ऊपर से देख लिया डपटते हुए कहा, "ऐ बुढ़िया ! यहाँ चूहा मत फेंकना, हमारे घर में घुसेगा।"
कामवाली ने भी शेरनी बन के दहाड़ा,"नाय फैंक रही यहाँ पे, मैं तो आगे कूँ जा रही हती।"
"झूठ बोलती है। मेरे सामने ही आ रही थी ।"
कह तो रही हूँ ,नहीं आए रही थी। दूसरे प्लॉट में जाए रही हती।"
शोर सुनकर मैंने बाहर आकर देखा तो किसी तरह शांत कराया। मैंने कहा, " किसी के मुंह नहीं लगना है। अंदर आ जाओ।"
मैं आश्चर्यचकित थी की इतना बड़ा आदमी और एक चूहे के लिए बवाल करने को आमदा। क्या भगत जी को इतना नहीं पता कि चूहा गणेश जी की सवारी है। अगर वह किसी के घर में घुस भी जाए तो क्या ? श्री गणेशाय नमः का शुभ-शगुन ही तो है। कितने खाली प्लॉट हमारे छोड़े गये चूहों के आशीर्वाद से मकान में परिवर्तित हो चुके हैं । दो-एक रह गए हैं । वह भी बन ही जाएंगे । वरना पन्द्रह वर्ष पहले जब हम यहाँ आए थे, तब क्या था यहाँ पर। बस्ती वालों की शौच क्रिया समाधान का स्थल था और रहने वालों के लिए सोचनीय प्रश्न। पर , कर भला मिले बुरा । चूहों को भी भले मानस ही अच्छे लगते हैं। ना पिटाई का डर ना मौत का अंजाम, सो घुसे रहते हैं हमारे घर में । कोई टोटका उनका घर से बाहर खदेड़ने का काम नहीं आता । कितने मंगलवार मलीदा बनाकर बाहर रख दिया कितनी ही बार मंगलवार को प्रसाद चढ़ा दिया पर वह है कि गाहे-बगाहे उठा पटक मचाए ही रहते हैं। बड़ी होशियारी से अपना काम करते हैं । कितनी ही बार डब्बे खोल-खोल कर शक्करपारे अपने बिल में जमा कर लेते हैं। हम इल्जाम पति और बच्चों पर लगाते रहते हैं।
आज फिर चूहेदानी में एक चूहा आ गया है ।। घर में सुबह से कोहराम मचा है। मैंने सुबह से ही चेतावनी दे रखी है कि चूहा मैं खुद छोडूंगी। गाड़ी से नदी किनारे ले जाकर, पर पति के सिर पर डोल रहा है । घूम फिर कर इस पर ध्यान अटका देते हैं। इसे बाहर छुड़वा दो, इसे बाहर छुड़वा दो।
बार-बार मना करने पर भी कमली को छोड़ने के लिए आग्रह हो रहा है। पर मैंने मना कर दिया है। " कमली बहनजी अब चूहा छोड़ने नहीं जाएंगी। आंती है गयी हैं चूहा छोड़ छोड़ के। पिछली बार तो चूहेदानी समेत ही फैंक आयी थीं। " जबाब भी कितना अच्छा दिया था।
"मोय का पतो , हों तो यों समझ रही हती कि चूहेदानी फैंकवे की कह रही हैं।"
सो पति महोदय खुद ही घड़ी छाप साबुन वाले झोले में चूहा दानी रखकर चल दिए हैं। दूर डालब घर पर जैसे ही उसे बाहर रखने के लिए मुँह खोला तो चूहा बाहर ही नहीं निकल रहा था । क्योंकि जिस तरफ से वह घुसा था उसकी पूंछ उसमें फंस गई थी । वह बाहर निकलने की कोशिश में घायल भी हो गया। पर उनको तो पता ही नहीं कि चूहादानी का दूसरा द्वार भी खुल सकता है। काफी देर वहाँ खड़े देख आने-जाने वालों की नजर में मामला संदिग्ध लगने लगा और एक-एक कर वहाँ मजमा लग गया। पर आदमी की आदम बुद्धि ! वह शिकार कर सकता है। बेजुबान पर अत्याचार कर सकता है। आजादी का द्वार खोलने का हुनर उसके पास कहाँ ? तभी एक स्त्री वहाँ प्रकट होती है और माजरा देखकर विस्मयकारी मुस्कराहट के साथ चूहेदानी का दूसरा द्वार खोल देती है । भीड़ समझती है कि साक्षात भगवती आई थीं । अपने लाल की सवारी को मुक्त करने के लिए। दूसरे ही रोज ही वहाँ किसी के द्वारा " गणपति वाहन मूषक मुक्ति स्थल " लिखा एक पत्थर लगवा दिया जाता है। लोग प्रसन्नता से मूषक वहाँ छोड़ते हैं । बाहुबली किसी दूसरे बहाने लड़ने का जुगाड़ करते होंगे हमें क्या । सब बप्पा की कृपा है गणपति का आशीर्वाद है । कूड़ाघर आस्था स्थल में परिवर्तित हो जाए तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है?