मुन्ना भाई
मुन्ना भाई
शहर में आए अभी मुझे एक हफ्ता हुआ था ।तीसरे दिन ही बेटा बीमार पड़ गया। कोई खास जान पहचान भी नहीं थी खैर पड़ोस वालों से पता करके डॉक्टर को दिखा दिया। हफ्ते भर दवाई खिलाते रहे पर फर्क नहीं आया। परेशानी बढ़ रही थी ,नई जगह ,नए डॉक्टर। मुन्ना भी छोटा ही था ।
ऑफिस में बैठे अपने साथी से मैंने बात की तो उसने मुझे कहा ,"मुन्ना भाई को दिखा दो "। मुझे बड़ा अजीब सा लगा , मुन्ना भाई पिक्चर की याद आ गई। मुझे लगा पता नहीं, नीम हकीम खतरा ए जान वाली बात ना हो जाए। हालाँकि यह मालूम है कि मुन्ना भाई के हाथ से भी लोग ठीक हो जाते हैं। अब तुम भी मजाक करने लगे । "आधे मरीज तो उनके पास केवल बात करके ठीक हो जाते हैं, ऐसे हमारे मुन्ना भाई "साथी ने कहा। मैंने धीरे से पूछा "क्या सच में उनका नाम मुन्ना भाई है । तो हँसने लगा" ,"नाम नहीं है पर खानदानी डॉक्टर हैं।"
"खानदानी मतलब?", "मतलब उनका पारिवारिक कार्य है । उनके दादा भी डॉक्टर थे पिता भी ।लेकिन वह पेशे से डॉक्टर नहीं, लेकिन दवाई देते हैं। एक बार मन तो डरा बच्चा छोटा है फिर मैंने सोचा चलो एक बार दिखा देता हूँ , हर्ज़ क्या ! नहीं अच्छा लगा तो दवाई नहीं खिलाएँगे । शाम को मेरा मित्र साथी मेरे साथ घर आ गया और हम उसके साथ बेटे को लेकर डॉ. साहब के पास चले गए ।"
जैसा मित्र ने बताया उससे कहीं ज्यादा ओजस्वी चेहरा , सबसे मुझे हैरानी इस बात की हुई कि बेटे को देखते ही उनके चेहरे पर जो मुस्कुराहट थी , बेटा भी खुश हो गया। उम्र में बहुत बड़े नहीं लेकिन 55 से ज्यादा के थे। बहुत प्यार से बेटे को गोदी में लिया और उससे बातें करने लगे पूछा और धीरे-धीरे यहाँ- वहाँ दबाकर सब देखा व चैक किया । उसके बाद बड़ा अच्छा सा उनका जवाब था ," ऐसी कोई खास प्रॉब्लम नहीं है ऐसे लग रहा है कि किसी चीज को मिस कर रहा है"। कुछ कह नहीं पा रहा लेकिन अंदर से........ मुझे बहुत हैरानी उनकी बात सुनकर ।क्योंकि हम हफ्ता पहले ही ट्रांसफर पर आए थे और इससे पहले तक हम माता पिता सब एक साथ रहते थे । मुन्ना दादी का बहुत ही लाडला था। दादा-दादी के बीच में रहते कभी हमें सोचने की जरूरत नहीं पड़ी। मुझे कहीं ना कहीं उनकी बात में हकीकत नजर आई, क्योंकि जब से हम यहाँ आए तब से वह चुप रहने लगाथा। उन्होंने बताया इससे खूब अच्छे से बातें करो। फिर देखो दो दिन बाद और अगर कुछ ज्यादा लगे तो अपने घर भी चक्कर लगा आओ। बातों- बातों में पूछा उसने बता दिया था कि दादी की याद आती है ।वह बैठे-बैठे ही मैंने अपने बेटे के चेहरे की जब मुस्कुराहट देखी तो साथी का हाथ दबा दिया ।मन ही मन धन्यवाद दिया इतने अच्छे मुन्ना डॉक्टर साहब से मिलाने के लिए जो बिना दवा के मरीज को ठीक कर दे।
