मुक्ति

मुक्ति

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एंबुलेंस रुकते ही कमर में जोर का झटका लगा दर्द की एक तीखी लहर रीढ़ में दौड़ गई जिसे अधबेहोशी में भी रीना ने महसूस किया। दरवाजा खुला रोशनी का एक कतरा मुंदी आँखों पर पड़ा उसने आँखों को हथेली से ढंकने का सोचा लेकिन वह इतनी निढाल इतनी बेदम थी कि हाथ हिला भी नहीं सकी । अपने आसपास हलचल सी महसूस की उसने और अचानक लगा जैसे पृथ्वी डोल रही है। उसका पूरा शरीर ही हिल रहा था इस हिलने डुलने में कुछ चेतना सी आई उसने आँखें खोलने की कोशिश की लेकिन तेज रोशनी ने आँखें खोलने नहीं दीं। आसपास तेज आवाजें आ रही थीं जो शोर बन कानों में समा रही थीं लेकिन किसी स्पष्ट रूप में समझ नहीं आ रही थीं। अचानक वह डोलती धरती किसी सतह पर टिक गई एक झटका सा लगा लेकिन राहत सी महसूस हुई। दर्द अभी चित्कारें मार रहा था। शायद अंदर बहने लगा था वह बहता हुआ महसूस कर रही थी क्या था वह राजीव का प्यार बेटी रूही के लिए ममता या परिवार वालों की आकांक्षा कुछ समझ नहीं आ रहा था। 

किसी ने उसका हाथ पकड़ा सिहर गई वह। यह तो वही चिर परिचित स्पर्श है जिसे उसके पिता ने उस हाथ में दिया था। नरम मुलायम और गर्म जिसे थाम सोती थी तो बेसुध नींद आती थी। वह फिर सो जाना चाहती थी उस स्पर्श को भीतर उतार कर तभी उसका हाथ छोड़ दिया गया। अकुला गई वह। घर्र घर्र के शोर के साथ वह उस स्पर्श से दूर ले जाई जा रही थी। एक अनंत सुरंग में घुसती सी। पलकों पर तेज रोशनी के कतरे पड़ते हल्के होते होते फिर तेज हो जाते और फिर वह एक अंधेरे कक्ष में पहुंच गई। 

अचानक सभी आवाजें बंद हो गईं अंधेरा निस्तब्धता ने उसे डरा दिया उसने फिर जोर लगाकर आंखें खोलना चाही लेकिन सफल नहीं हुई। उसने शरीर ढीला छोड़ दिया या शायद अब उसकी सारी ताकत चुक गई थी इसलिए शरीर ढीला पड़ गया। 

देर तक ठहरे इस अंधेरे सन्नाटे ने उसे दूर कई बरस पीछे धकेल दिया। पहली बार उसकी कोख में हलचल हुई थी खुशी के मारे पूरा परिवार बौरा गया था। तीसरी पीढ़ी के आगमन के आहट की खुशी कभी-कभी फुसफुसाहटों में उस तक पहुँचती रही। टेस्ट बेटा पहला बच्चा उसके अंदर बच्चे के कोख में घूमने से उठती आनंद की हिलोरों के साथ डर की लहरें भी पैदा करते रहे। इसी डर ने उसे इस कदर जकड़ लिया कि दर्द के समय शरीर ढीला ही नहीं हो सका और एक बार पहले भी वह ऐसे ही घुप अंधेरे ठंडे कमरे में पहुँचाई गई थी। रीढ़ की हड्डी में दिया वह इंजेक्शन अभी भी टीसता है लेकिन इसका जिम्मेदार कौन है वह समझ नहीं पाती। 

आसपास हलचल शुरू हो गई कॉटन कपड़े खून डॉक्टर नर्स की आवाजों ने उसे वर्तमान में खींचा। उसे लगा कि वह कहीं हवा में स्थिर है और बंद आँखों से सब देख रही है। उसके कपड़े काटे जा रहे हैं हाथ पर नस ढूंँढ कर बाटल लगाई जा रही है। नसों में कुछ रिसना शुरू हो गया है बेटी को गोद में लेकर ऐसा ही कुछ रिसा था सबके मन में। लक्ष्मी आई है अब पहली बार में जो हो जाए भगवान की मर्जी है। मायूस हो गई थी वह जैसे बेटी पैदा करके कोई भयंकर भूल कर बैठी हो। उसे गोद में लिए घंटों निहारती थी सोचती थी इतनी मासूम आँखें भोली मुस्कान देख कर कोई कैसे अफसोस कर सकता है? धीरे-धीरे बेटी की किलकारी में सभी अवसाद भूल गए और साल भर बीतते न बीतते उसके लिए भैया की चाह सिर उठाने लगी। काँप जाती थी वह अभी तक सुन्न शरीर पर कुछ होते रहने की दहशत से उबर नहीं पाई थी। ऑपरेशन के टांके कभी-कभार टीस उठते थे। वह चाहती थी राजीव उन्हें सहलाये उससे पूछे उसमें दर्द तो नहीं होता लेकिन वह अपनी इच्छा पूर्ति के बाद करवट बदल कर सो जाता था। उन क्षणों में भी वह रूही के लिए भाई परिवार का वारिस जैसी बातें कर उसमें बेटे के लिए भावना का प्रवाह करता था। शायद यह मेडिकल साइंस से इतर कोई इलाज था बेटे की चाह पूरी करने का। 

अबॉर्शन सी स्थिति है युटेरस बहुत कमजोर है वजन नहीं ले पा रहा। दो साल में तीन बार लिंग परीक्षण बेटी फिर बेटी अवांछित बेटी हर बार अपने अंश को मशीनों से कटवा कर अपनी आत्मा के एक अंश को मारती कोख को हर बार मशीन कटर की खरखराहट से थर्राते हुए वह जानती थी कि उसे कितना कमजोर कर चुकी है। 

बार-बार कहना चाहा राजीव से अब बस अब और शक्ति नहीं बची है मुझ में नहीं चाहिए बेटी तो बेटा ही क्यों जरूरी है? लेकिन राजीव के पौरुष का विश्वास उसे चुप कर जाता देखना अबकी बार बेटा ही होगा। अब उन क्षणों में अंतरंग कुछ नहीं रहा था उन्हें परिवार की इच्छा वारिस वारिस होने की जरूरत और पौरुष का दंभ प्रवेश कर चुके थे। वे सभी जब रीना के भीतर प्रवेश करते अपमान से आहत निढाल हो जाती वह। ऐसा लगता मानो सरेराह निर्वस्त्र कर दी जा रही है। आँखों की कोरों से तकिए में जज्ब होता यह अपमान अपेक्षा उम्मीदों से भरी उन आँखों को कभी नजर नहीं आया। अच्छा सोचो पॉजिटिव रहो जैसे जुमले उसके ऊपर उछाले जाते जिनमें कोई भाव न होता प्रेम का कतरा भी नहीं। 

बहुत जल्दी थी सभी को उसकी स्थिति कभी किसी ने नहीं समझी। चौथी बार घर में उत्सव सा माहौल था पूरा परिवार मंदिर गया घर में कथा करवाई शादी के गठजोड़ पहन कर वह और राजीव हवन पर बैठे। इस बार राजीव की हथेली में अपनी हथेली रखते लिजलिजा सा अहसास हुआ था उसे। मानो तीनों बार के कटे माँस के लोथड़ों पर उसका हाथ रख दिया गया हो। हटा लेना चाहती थी वह उसे लेकिन रखा रहने दिया मन तो सुन्न था ही तन भी कर लिया। हवन निपटते ही थक गई कहते वह कमरे में आ गई। सच में थक गई थी वह। चार साल में चार जन्म जितनी थकान थी उसे। अब उसकी थकान को समझा जा रहा था या शायद उसकी दौड़ को स्थगित कर दिया गया था। 

बहुत मुश्किल है ब्लीडिंग काफी हो चुकी है नहीं बचा पाएंगे। दरवाजा खुला शायद नर्स बाहर गई वह भी जाना चाहती है देखना चाहती है बाहर खड़े राजीव और सास-ससुर के चेहरे। उनके चेहरे की मायूसी शायद एक सुकून देगी उसे। क्या वह भी उन्हीं जैसी निष्ठुर हो गई है? हाँ शायद लेकिन इसमें अस्वाभाविक क्या है? साथ रहते एक दूसरे का स्वभाव अंगीकार कर ही लेते हैं लोग। तिर्यक मुस्कान सी फैली उसके होठों पर। 

मशीन की खरखड़ाहट ने डरा दिया उसे मुस्कान लुप्त हो गई। यह निष्ठुरता उस अजन्मे बच्चे से क्यों? वह तो लड़का है बेटा है मेरा उसे क्यों कोख से निकाला जा रहा है? बच्चा मर चुका है शायद गिरने से सिर पर चोट आई। युटेरस भी कमजोर था बच्चे को ऑक्सीजन सप्लाई बंद हो गई उसकी धड़कन तो पहले ही रुक गई थी। शब्द चीत्कार कर रहे थे युटेरस नीचे खिसक गया उसका मुँह डैमेज हो गया निकालना पड़ेगा। 

नर्स फिर बाहर गई इस बार वह बाहर नहीं जाना चाहती। डर गई है वह अब क्या वह उस घर में जा पाएगी? बंद होते दरवाजे ने मानो उसकी नियति निश्चित की। एक बेटी की माँ बिना कोख बिना किसी उम्मीद के अब वहाँ क्यों और कैसे रहेगी?

 मशीन की खर खराहट बंद हो चुकी है लाइट भी। कमरे में उसके भविष्य जितना अंधेरा है। उसने डॉक्टर नर्स को बाहर जाते देखा अब वह अपने शरीर में निढाल पड़ी है। इतना हल्का क्यों महसूस कर रही है वह? एकदम उन्मुक्त बिना किसी उम्मीद के अब वह अपनी जिंदगी जी सकेगी। राजीव तो साथ नहीं ही देंगे परिवार भी नहीं लेकिन बेटी तो उसके साथ रहेगी। 

दरवाजा खुल रहा है रोशनी का टुकड़ा उसकी पलकों को चीर उसकी आँखों में भरता जा रहा है। भविष्य में फिर इस अंधेरे से नहीं गुजरना होगा वह आश्वस्त है। बेटे ने उसे मुक्ति दे दी।



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