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Kavita Verma

Inspirational

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Kavita Verma

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भोलू जी उठा

भोलू जी उठा

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भोलू मेरा तौलिया कहाँ है ? भोलू मेरी बाइक साफ कर दी ? भोलू मेरे जूते पालिश कर दे। कॉलोनी के उस घर से रोज सुबह से ऐसी ही आवाजें आतीं जो दोपहर होते तक भोलू छत पर कपड़े सुखा दे भोलू गेहूँ पिसवा ला सब्जी ले आना पिंकी को कोचिंग छोड़ दे पौधों को पानी दे दे कपड़े उठा ला से होती हुई शाम तक भोलू बिस्तर लगा दिए ? करता क्या है सारे दिन ? बिल्कुल अकल नहीं है इसमें काम के नाम पर जी चुराने लगता है की झिडकियों पर खत्म होतीं। अगली सुबह फिर उन्हीं जुमलों से शुरू होकर उन्हीं पर खत्म होती।

 भोलू मिश्रा परिवार का सबसे छोटा बेटा जो अपने माता-पिता दो भाई भाभी और एक भतीजी पिंकी के साथ शहर की उस मध्यमवर्गीय कॉलोनी में रहता है। गोलू के पिता मिश्रा पंडित जी किसी सरकारी विभाग में अपनी अकाउंटेंट की नौकरी से रिटायर होकर आजकल पूजा-पाठ जप हवन के द्वारा अपने यजमान से मोटी कमाई कर रहे हैं। दोनों भाई पढ़ लिखकर प्राइवेट कंपनी में लग गए हैं जहाँ अपने परिवार को पालने लायक तनख्वाह पा जाते हैं। सबसे छोटा भोलू बचपन से ही बहुत बीमार रहा फिर माँ का लाडला भी जिन्होंने उस पर पढ़ाई लिखाई का कोई जोर न दिया। नतीजा यह हुआ कि वह पढ़ाई में पिछड़ता ही गया और जैसे-जैसे तृतीय श्रेणी से दसवीं पास करके उसने पढ़ाई छोड़ दी। उस समय पंडित जी दोनों बड़े बेटों की नौकरी और शादियों की खुशियाँ मनाने में ऐसे मगन थे कि छोटे भोलू पर उनका ध्यान ही न गया। माँ अभी भी सबसे छोटे बेटे के लाड़ और मोह में ऐसी अंधी थी कि उसके भविष्य के बारे में कुछ सोच ही नहीं पा रही थी। 

भोलू की जिंदगी उस कठपुतली के समान थी जो रोज परिवार वालों के इशारे पर दिनभर नाचती थी और शाम को अपने बक्से में तह करके रख दी जाती थी दूसरे दिन फिर से इशारों पर नाचने के लिए। उसकी अपनी इच्छा अपनी कोई चाह या सपने नहीं होते। उसका कोई भविष्य नहीं होता। भोलू के भविष्य के विषय में भी कोई नहीं सोचता था। उसकी कम अक्ली पर सबको भरोसा था कि वह भी कुछ नहीं सोच पाता होगा। लेकिन ऐसा सोचने वाले यह नहीं सोच पाते थे कि अगर वह सचमुच बेअकल है तो वह इतने काम कैसे कर पाता है ? 

भोलू खुद क्या सोचता है वह खुद भी समझ नहीं पाता। एक दोपहर भोलू घर से निकला और पास के एक मंदिर के बगीचे में जा बैठा। वह आज बहुत उदास था। सुबह-सुबह बड़े भैया ने फिर पंडित जी ने उसे डाँट दिया। सुबह से इतने काम थे कि वह चाय भी नहीं पी पाया वह पड़े पड़े ठंडी हो गई। भाभी ने ठंडी चाय देखकर उसे फिर डाँट दिया कि जब पीना नहीं तो बनवाई क्यों ? खुद तो कुछ कमाते नहीं हो मुफ्त में मिल रहा है तो गर्रा रहे हो। भाभी की बात सुनकर माँ भी चुप रहीं उनकी चुप्पी भोलू को आहत कर गई। 

इस बात और चुप्पी ने भोलू को सोचने पर मजबूर कर दिया। वह कमाल नहीं रहा वह जो दिन भर काम करता है दो टाइम खाना और दो जोड़ी कपड़ों के बदले उससे उसे कोई कमाई नहीं हो रही है। उसे जाने क्यों याद आ रहा है कि जब भी उसे कुछ लेना होता वह माँ से पैसे मांगता है और वह दस सवाल जवाब के बाद उसे पैसे देती हैं। उसे डर रहता है कि कहीं जेब में पैसे होने से भोलू बिगड़ न जाए।

 आज उसे न जाने क्यों ढेरों पुरानी बातें याद आ रही हैं। बड़े भाइयों के काम उनकी डाँट उनकी दुत्कार पंडित जी का उसे देखकर हमेशा अफसोस जाहिर करना। माँ का हमेशा चुप रहना और मानों उसे लेकर एक अपराध बोध से भरे रहना।

आज गोलू सोच रहा है कि वह क्या है क्या कर रहा है क्या करना चाहता है ? उसे आश्चर्य हो रहा था कि आज तक उसने कभी अपने बारे में कैसे नहीं सोचा ? तभी किसी के हँसने की आवाज आई। पार्क में पेड़ के नीचे एक जोड़ा बैठा था जो किसी बात पर जोर से हँस रहा था। भोलू उन्हें देखकर सोचने लगा वह पिछली बार कब हँसा था ? बहुत सोचने पर भी उसे याद नहीं आया कि वह कब हँसा था ? उसे तो यह भी याद नहीं आया कि वह रोया कब था ? घुड़कियाँ तो उसे रोज ही मिलती थीं वह इनका आदी हो गया था और शायद इसीलिए कोई बात उसे खुशी यह दुख नहीं देती थी। आज वह वाकई दुखी हो गया था भाभी के तानों के बजाय माँ की चुप्पी ने पिता की उदासीनता ने उसे आहत किया था और वह अपने होने का अर्थ खोजने लगा था। 

उस दिन भोलू देर तक पार्क में बैठा रहा अब उसने हर दिन दोपहर में पार्क आने का नियम बना लिया था। यहाँ बैठकर वह कुछ देर खुद के साथ बैठता था लोगों को हँसते बोलते बच्चों को खेलते देखता और खुश होता। दोपहर में घर में बहुत ज्यादा काम नहीं रहता था सभी लोग आराम करते थे इसलिए किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता था। 

उस दिन उसकी बेंच पर उसी का हमउम्र एक लड़का बैठा था। भोलू उसे देखकर कुछ ठिठका फिर झिझकते हुए बेंच के किनारे पर बैठ गया। वह लड़का थोड़ा खिसक गया। अनायास ही उनकी बातें शुरू हो गईं। क्या नाम है क्या करते हो से शुरू हुई बातें एक सुकून सा देने लगीं भोलू को। उसने स्कूल छोड़ा उसके बाद से किसी ने उससे इस तरह बात नहीं की। स्कूल में भी उसके बहुत सारे दोस्त नहीं थे बस एक ही दोस्त था जो अब कहाँ है उसे नहीं पता। 

वह लड़का शेखर पास के एक ढाबे में वेटर था। इस शहर में नया और अकेला था तो दोपहर का कुछ समय यहाँ काटने चला आता। उससे बात करके भोलू को पता चला कि काम करके पैसे कमाए जाते हैं। वैसे पता तो उसे पहले से था लेकिन उसने कभी अपने किये काम की महत्ता नहीं समझी थी। घर में किसी ने भी नहीं समझी थी वह तो खैर है ही कम बुद्धि। लेकिन घर में बाकी सब तो समझदार हैं उन्होंने भी नहीं बताया कि उसका काम महत्वपूर्ण है। शेखर से बात करते हुए भोलू की भी इच्छा हुई कि वह पैसे कमाए लेकिन कैसे वह तो कम अक्ल है। उसे कौन काम देगा ? 

शेखर ने उससे पूछा था वह क्या क्या कर सकता है ? 

"कुछ नहीं" यही जवाब सूझा था उसे। 

"कुछ तो कर सकता होगा" शेखर ने उसे उत्साहित करते हुए पूछा। घर में कुछ तो करता होगा। 

भोलू फिर सोच में पड़ गया घर में जो करता है क्या वह काम है ? घर में तो आज तक किसी ने नहीं कहा कि वह कोई काम करता है। उसने बताया कि वह जूते पॉलिश करना गाड़ी साफ करना बिस्तर बिछाना उठाना जैसे तमाम काम करता है। हाँ कभी-कभी जब भाभी काम नहीं करती वह माँ के साथ खाना भी बनाता है। 

"तुम्हें खाना बनाना आता है ?" शेखर ने उत्साहित होकर पूछा। 

"हाँ आता है।" 

"फिर तो तुम्हें काम मिल सकता है। मेरे ही होटल में एक असिस्टेंट की जरूरत है अच्छे पैसे भी मिलेंगे।" 

भोलू की आँखों में चमक आ गई वह खुद कमाएगा लेकिन घर में कैसे बताएगा ? पता नहीं सब क्या कहेंगे ? वह हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कि घर में बात करे। 

शेखर ने ही सुझाया तुम पहले होटल में बात कर लो। अगर बात बन जाती है तो कुछ दिन बिना किसी को बताए काम करो। जब पैसे लेकर जाओगे तो कोई कुछ नहीं कहेगा। भोलू की आँखें चमक उठीं उसने सोच लिया कि अब वह वह काम करेगा जिसका कोई मोल हो। अब वह खुद कमाएगा चाहे घरवालों से झूठ बोलना पड़े चाहे छुपाना पड़े। ?


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