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Kavita Verma

Drama

3  

Kavita Verma

Drama

वो रात

वो रात

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मैं पसीने पसीने हो गया हवा चलना अचानक बंद हो गयी थी चांदनी में ठंडक तो थी लेकिन अब लगा हवा ही इस ठंडक को पोस रही थी। मेरी नींद खुल गयी और मैं उठ बैठा।गर्मियों के दिन थे घर के अन्दर पंखे की गर्म हवा सोने नहीं देती इसलिए बाहर छत पर पलंग लगा लिए जाते थे।वह चांदनी रात थी गपशप करते करते कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला। मेरे बगल के पलंग पर पिताजी सोये थे कुछ दूर माँ और छोटे भाई का भी पलंग था। सब गहरी नींद में थे। किसी को गर्मी नहीं लग रही ये विचार मन में आया तो मैं चौंक गया सब आराम से सो रहे है फिर सिर्फ मुझे ही गर्मी क्यों लग रही थी। 

मैं पलंग से उठ गया पास ही राखी सुराही से पानी पिया और टहलते हुए छत की मुंडेर तक आ गया।चाँद एकदम सर के ऊपर था सड़क बिलकुल सूनी हो गयी थी। सड़क ,दुकाने बगल की बिल्डिंगें सभी दूधिया चाँदनी में नहाये हुए थे। सड़क किनारे खड़ा पेड़ भी शीतल चांदनी में ऊँघ रहा था।पेड़ के नीचे घनी छाँव थी। 

हमारी बिल्डिंग से कुछ आगे सड़क ने छोड़ा सा मोड़ ले लिया था इसलिए उसके किनारे की बिल्डिंग सीधे और साफ़ साफ़ दिखाई देती थी।अचानक मेरी नज़र उस बिल्डिंग की छत पर गयी।चाँदनी रात में छत और उस पर सीढ़ियों के लिए बना कमरा स्पष्ट दिखाई दे रहा था। पूरा कमरा सफ़ेद चाँदनी में नहाया हुआ था।

तभी अचानक कमरे की दीवार पर दो परछाइयाँ उभरी और बात चीत करने के हाव भाव दिखने लगे।मतलब हाथों का संचालन होने लगा। मेरी नींद अचानक पूरी तरह खुल गयी और उस चम्पई अँधेरे में आँखे फाड़ फाड़ कर उन परछाइयों को देखने लगा लेकिन वे सिर्फ परछाइयाँ थीं वहाँ कोई नहीं था क्योंकि चाँद तो एकदम सर पर था इसलिए अगर वह कोई होता तो वह और उसकी परछाइयाँ दोनों ही दिखाई देती लेकिन ये तो आमने सामने खड़े दो लोग थे।

जिनमें एक मर्द और एक ओरत थी वे एक दूसरे से बात कर रहे थे। मैंने आँखें मसल कर अपनी बची खुची नींद को पूरी तरह उड़ाया और फिर ध्यान से देखा लेकिन वहाँ कोई नहीं था। मैंने छत के सामने पीछे के कोनों में जाकर ध्यान से देखा करीब पौने घंटे तक मैं उन परछाइयों को देखता रहा लेकिन कुछ समझ नहीं आया।सब लोग गहरी नींद में थे किसी को उठा कर उन लोगों को दिखाना मुझे ठीक नहीं लगा क्योंकि मुझे खुद ही समझ नहीं आ रहा था की जो मैं देख रहा हूँ वह सच में वही है जो देख रहा हूँ।आखिर कब तक जागता मेरी आँखें झपकने लगे और मैं सो गया। 

सुबह जागा तो रात की घटना मेरे जेहन में एकदम ताज़ा थी वो दोनों परछाइयाँ अभी भी दिमाग में घूम रही थीं और मैं उनकी सच्चाई का पता लगाना चाहता था इत्तफाक से उस बिल्डिंग में मेरा  एक दोस्त रहता था।शाम को मैं उसके घर गया और उससे कहा चल आज छत पर चलते हैं वहीं बैठ कर बातें करेंगे।

वह बोला अरे छत पर क्यों? यहीं बैठते हैं न।और वैसे भी छत पर तो जा ही नहीं सकते बहुत सालों पहले यहाँ रहने वाले एक लडके और लड़की ने छत से कूद कर जान दे दी थी वे एक दूसरे से प्यार करते थे।तब से छत पर जाने वाले दरवाजे पर मोटा सा ताला  डला  है और चाबी किसके पास है कोई नहीं जानता।


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