और बाँध फूट गया

और बाँध फूट गया

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देवेंद्र भाई को हार्ट अटैक आया है यह खबर मोहल्ले में आग की तरह फैल गई। पड़ोस के शर्मा अंकल और सुभाष भाई तुरंत गाड़ी में डालकर हॉस्पिटल ले गए। कार के पीछे तीन चार और लोग भी हॉस्पिटल पहुँच गए थे। मोहल्ले के लोग झुंड बनाकर देवेंद्र भाई की सज्जनता का गुणगान करने लगे।


कुछ लोगों ने हार्टअटैक, कोलेस्ट्रॉल, बीपी के बारे में अब तक का अर्जित ज्ञान उन्डेल कर अपनी विद्वत्ता दर्शाने के इस मौके को लपक लिया तो कुछ डॉ. और हॉस्पिटल के बारे में अपनी जानकारी साझा करने को उतावले थे।


देवेंद्र भाई की पत्नी तो उनके साथ ही हॉस्पिटल चली गई थीं। आनन-फानन में देवेंद्र को आईसीयू में भर्ती किया गया, ऑक्सीजन लगाई गई और बोतल-इंजेक्शन की मानो झड़ी लग गई।


सभी आईसीयू के बाहर खड़े थे, सुभाष भाई हॉस्पिटल की औपचारिकता पूरी करने में लगे थे और देवेंद्र की पत्नी पूजा धड़कते दिल से आँसुओं में डूबी थीं। तभी कॉलेज से उनका बड़ा बेटा, छोटी बेटी को लेकर वहाँ पहुँच गया। आते ही उसने पूछा, “क्या हुआ?” इस समय किसी को कुछ नहीं पता था तो कोई उन्हें क्या बताता?

 

लगभग एक घंटे बाद डॉ. बाहर आए। उन्होंने बताया कि, “हल्का सा अटैक था लेकिन अब ठीक है। थोड़ा स्टेबल होने पर एंजियोग्राफी करके पता चलेगा कि कहीं कोई ब्लॉकेज तो नहीं है?”


हॉस्पिटल का बिल पूजा ने अपने बचाए पैसों से भर दिया था। एक दिन बाद देवेंद्र भाई को वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया।


सुबह शाम मोहल्ले के लोग देखने आते, कोई खाना लाता, कोई फल-फूल रिश्तेदारों के फोन आ रहे थे। देवेंद्र बिस्तर पर पड़े सब कुछ चुपचाप देख रहे थे। ज्यादा बात करने की उन्हें इजाजत नहीं थी और न ही उनका बोलने का मन था।


डॉक्टर राउंड पर आए थे। नब्ज देख दवाइयाँ बोतल इंजेक्शन में फेरबदल करके उन्होंने पूछा, "कैसा लग रहा है?" 

देवेंद्र ने हाथ के इशारे से बताया, ठीक है।


वह पूजा से मुखातिब हुए, “पहले कभी सीने में दर्द वगैरह हुआ है? बीपी का प्रॉब्लम है?”


"नहीं ऐसा तो कोई प्रॉब्लम नहीं है।"

 

"घर या ऑफिस का कोई तनाव?"


"नहीं कहीं कोई तनाव नहीं है।" पूजा ने जैसे याद करते हुए कहा।


देवेंद्र ने मुँह फेर कर आँखें मूंद लीं। क्या उन्हें सच में कोई तनाव नहीं है? अगर नहीं है तो फिर यह अटैक क्यों आया? वह इस कदर तनाव क्यों महसूस कर रहे हैं?


"पापा मुझे नई बाइक लेना है 75000 की आएगी।”


बेटे ने जैसे ही अपनी माँग रखी पत्नी ने तुरंत समर्थन कर दिया। एक बार भी न उनसे पूछा कि इतने पैसों की व्यवस्था कैसे होगी न कहा कि दो साल पहले की बाइक में क्या खराबी है?


बेटी भी बड़ी हो रही है उसकी शादी के लिए ज्यों-ज्यों रुपयों का इंतजाम करते हैं त्यों त्यों शादी के खर्चे बढ़ते जाते हैं। घर के खर्च तो जैसे हर महीने ही बढ़ रहे हैं। पत्नी पूजा से कभी बढ़ते खर्च की बात छेड़ी भी तो उसने बुरा सा मुँह ही बनाया और तुनक कर बोली कि, "क्या मैं अपने ऊपर खर्च करती हूँ? अब परिवार है तो खर्च तो होंगे।"


कभी कभी वे इन सब से तंग आ जाते मन करता चीख चीखकर अपनी परेशानी बताएं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है वे जानते हैं।


सुभाष भाई मिलने आए हैं पूजा से पूछ रहे हैं कि पैसों का इंतजाम तो है न? बेटे को लेकर रिसेप्शन पर गए हैं उनकी आ़ँखें भर आईं एक पड़ोसी को चिंता है ऐसी चिंता की आस वे पूजा से हमेशा करते रहे। आँखें मूंदकर उन्होंने आँसू तकिए में छुपा दिए वे मर्द हैं रो नहीं सकते। अगर किसी ने उनके आँसू देख लिए तो सब घबरा जाएंगे। 


उन्हें याद आया जब वह लगभग आठ नौ बरस के होंगे तब साइकिल सीखते हुए बुरी तरह गिरे थे। घुटने, कोहनी छिल गए, खून छलछला आया। मुँह जमीन से टकराया, होंठ फट गया। बुक्का फाड़कर रोए थे वे तब पिताजी ने बुरी तरह घुड़का था, “क्या लड़का होकर रोता है? लड़के रोते नहीं हैं।”


कैसे बताते वे कि कितना डर गए थे? कैसे बताते कि गिरने से लगी चोट के अलावा साथी दोस्तों की हँसी और उड़ाई गई खिल्ली का भी दर्द था उन्हें। जब दर्द बताने के लिए रो नहीं सकते आँसू नहीं बहा सकते तो शब्दों में उन्हें कैसे छलकाते? दाँत भींचकर घाव पर हल्दी चूना लगवाते रहे। उसके बाद भी याद रखते कि उन्हें रोना नहीं है वह लड़के हैं और लड़के रोते नहीं हैं।


बड़े होते होते यारों दोस्तों के बीच भी शान तभी रहती जब विकट से विकट स्थिति में चाहे हेड मास्साब की छड़ी पड़े या टेस्ट में फेल होने पर घर में कुटाई हो रोया ना जाए। दादी जो उनके घावों पर हल्दी चूना लगाती थीं उनकी गोद में सिर रखकर वे उनसे सब बातें कहते थे वे भी कभी उनके रुंआसे होने पर झिड़क देतीं कि, ‘लड़के रोते नहीं हैं।’


उन्हीं दादी के न रहने पर उन्हें जोर से रुलाई आई थी और वह घर के पिछवाड़े के दरवाजे से गाँव के तालाब किनारे बैठे रहे। उस दिन आँसू बहे थे लेकिन इतने छुपकर कि कोई देख न ले। जब उन्होंने देखा कि घर के पुरुष भी सूखी सूनी आँखों से दादी को देख रहे हैं उन्हें खुद पर शर्म आई कैसे लड़के हैं वे? देवेंद्र ने खुद को धीरे धीरे कठोर करना शुरू किया।


कठोर तो वे नहीं हो पाए सुख-दुख परेशानियाँ उन्हें सालती थीं लेकिन उन्होंने अपनी भावनाओं को छुपाना और आँखों को सुखाना सीख लिया था। फिर भी कभी-कभी उनका मन होता कि वह पूजा की गोद में या सीने में सिर छुपाकर खूब रोएं।


नई नई शादी में उन्हें झिझक होती मन में डर भी रहता पता नहीं पूजा उनके बारे में क्या सोचे क्या धारणा बना ले? फिर उन्होंने यह ख्याल ही छोड़ दिया।


ऑफिस घर खुद की परेशानियाँ वे चुपचाप गटक लेते और उसका दबाव सीने पर महसूस करते। आज भी वही दबाव उनके दिल को इस दर्द तक ले आया। 


आज हॉस्पिटल से डिस्चार्ज मिलेगा तीन दिन वह कुछ सुकून से रहे। उन्होंने पत्नी और बेटे को खर्च पैसे की चिंता में देखा उन्हें लगा शायद अब वे उनकी स्थिति उनके तनाव को समझ पाएं। उन्होंने यह भी सोचा कि अब वे इस तनाव को रोककर नहीं रखेंगे उसे बाहर निकालेंगे। दुनिया को नहीं तो कम से कम घर वालों को तो दिखाएँ। यह सोच कर ही उन्हें बड़ी तसल्ली मिली।


“पापा चलिए ऑटो आ गया”, बेटे ने उन्हें सहारा देकर खड़ा किया उनकी चप्पलें सीधी की और बेटे का सहारा लेकर देवेन्द्र फूट-फूट कर रो पड़े।


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