मर्यादा
मर्यादा


जोर जोर से चिल्लाने, रोने की चिल्लपों सुन छज्जे पर आ माजरा जानने की कोशिश में मैंने नीचे झांका। कॉलोनी के और घरों से भी लोग बाहर निकल आये थे। मेरे छज्जे से भौमिक साहब की बाउंड्री बिल्कुल साफ दिखायी पड़ती थी। निम्न मध्यम- वर्गीय लोगों की बस्ती होने के कारण हर परिवार के दुख-सुख, ऊंच नीच एक दूसरे से छिपे नहीं थे। इसीलिए भौमिक साहब की बाउंड्री का दृश्य देख कर हम सब थोड़ा अचम्भित थे।
उनकी बड़ी बेटी या कहें घर चलाने वाली सपना चुपचाप सिर नीचा किये खड़ी थी। भौमिक साहब अपनी चिर परिचित मुद्रा में शराब के नशे में आंखें बंद किये कुर्सी पर लुढ़के थे। सपना से छोटा भाई ऊंची आवाज में चिल्ला रहा था, “अरे घर की मान मर्यादा का बिल्कुस ख्याल नहीं है क्या? लोग हंसेंगे हमारे घर पर।“ उसकी पत्नी बगल में खड़ी थी। बोल तो कुछ नहीं रही थी पर उसकी भाव भंगिमा बता रही थी कि पति के मुंह से निकली हर बात से वह बिल्कुल सहमत है।
उससे छोटी बहन जिसकी शादी अभी पिछले साल ही हुई थी, झूठ- मूठ आंखों पर पल्ला लगा बोल रही थी, “मेरी तो ससुराल में कोई इज्जत ही नहीं रह जायेगी। कितनी खिल्ली उड़ायेंगे सब।“
उससे छोटा जो किसी नौकरी में टिक कर रह ही नहीं पाता था, बोल तो कुछ नहीं रहा था पर उसके चेहरे से साफ जाहिर था कि मसला जो भी है उसे भी नागवार घुजर रहा था।
और श्रीमती भौमिक, बीच बीच में आर्त स्वर निकाल रही थी। “अरे दिमाग खराब हो गया है क्या? मर्यादा भी कोई चीज होती है कि नहीं।“
इतना तो समझ आ गया था कि सारा घर एक स्वर से सपना के खिलाफ विष उगल रहा है पर ऐसा क्या हुआ? सपना तो इस घर की सबसे समझदार लड़की है। और फिर उसका भाई जो उस पर इतना चिल्ला रहा है उसे अभी कुछ वर्षों पहले तक कभी जुआ खेलते हुए, कभी आवारा लड़कों के साथ बदमाशी करने पर पकड़े जाने पर थाने से जमानत के पैसे भर सपना ही छुड़ा कर लाती थी। अभी जो नौकरी वह कर रहा है, सपना की ही कोशिशों से मिली थी। पर सब कोई जानता है कि घर खर्च तो अभी भी सपना ही उठा रही है। वह कैसे इतनी बड़ी बड़ी बाते कर सकता है।
और खूब टटक लाल लम्बी सी मांग भरे, बड़ी बिंदी लगाये, झुमके हिला हिला भाभी के साथ सट कर खड़ी बहन जो रोने का नाटक कर रही है, हो पाती उसकी शादी अगर सपना न होती। भौमिक साहब तो न लड़का ढूढ़ने गए . न पैसा खर्चा।
चारों ओर लोगों को देख भाई को शायद ज्यादा ही जोश आ गया चिल्ला कर बोला, “नहीं चलेगा यह सब यहां पर। इस घर भी एक मर्यादा है, इतनी ही जवानी चढ़ी है तो इस घर से बाहर हो जाओ।“
इस बार झटके से सपना ने सिर उठाया, “मैं घर से बाहर जाऊं? भूल रहे हो शायद यह घर मेरे लोन लेने से ही बना है। जवानी...जवानी तो तुम सबकी भेंट चढ़ गयी न और हां, बयालिस साल की उम्र में दो बच्चों के विधुर पिता से मेरे शादी करने से जिस जिस की इज्जत दांव पर लग रही है, मर्यादा भंग हो रही है,वह खुशी से इस घर से बाहर जा सकता है।“
अब माहौल में पूरी तरह सन्नाटा था।
सपना ने एक झटके से अपने कांधे पर रखी सलीब उतार फेंकी थी और मुझे लगा पहली बार उसके कदम धरती पर पड़ रहे हैं, घिसट नहीं।