Namita Sunder

Drama

3.7  

Namita Sunder

Drama

टीचर जी

टीचर जी

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चींईईई

इतनी जोर से स्कूटर का ब्रेक लगाना पड़ा था कि वह उलटते- उलटते बची। एक तो वैसे ही उसे आज देर हो गयी थी ऊपर से यह लड़की न जाने कैसे एकदम सामने आ गयी।

मरेगी क्यालता ने झल्लाते हुए कहा और अचानक बढ़ गयी धकधकी को काबू में करने की कोशिश करते हुए स्कूटर स्टार्ट किया।

हम न मरबे मैडम जी, हम तो सबका मार के मरबे नकानों मे पड़ते ही वह सन्न रह गयी। स्कूटर ठप्प हो गया और उसने निगाह भर उसे देखा।

बमुश्किल सात साल की बच्ची होगी। रूखे उलझे बाल जो न महीनों से धुले थे, न कंघी का मुंह देखा था, न तेल का। अपनी नाप से कहीं लम्बी, ढीली फ्रॉक, मिट्टी में सने नंगे पैर, पर मैले चेहरे पर जैसे कहीं से मांग के ला कर जड़ दी गयीं बड़ी बड़ी पानीदार आंखें।

क्या कहा तुमने, इधर आओ

सहमते हुए रूक रूक के बोली ऊं हमरी नई अम्मा कहती हैं न, कि हमहु का मर जाय का रहै अम्मा संघे पर हम न मरै। हम सबका मार के मरबे तो वही हम कहा आप चिंता न करौ हम मरबे न।

लता को समझ में नहीं आया कि क्या कहे पर गले में जैसे गोला सा अटक रहा था।

तुम स्कूल नहीं जाती

वह शायद समझी ही नहीं बस टुकुर टुकुर देखती रही

लता ने स्कूटर स्टार्ट किया और चल दी पर छूट गया वहीं कुछ।

उसके बाद से रोज आते- जाते उसका स्कूटर अपने आप वहां धीमा हो जाता और उसकी नजरें उसे ढ़ूंढ़ती पर वह दिखाई नहीं पड़ती।

और फिर एक दिन नजर आई वह। सड़क किनारे नाली के पानी में डंडी से कुछ करती हुई। लता ने पास पहुंच स्कूटर रोका। बच्ची ने मुंह उठा कर देखा और पहचान भरी मुस्कान पसर गयी उसके चेहरे पर।

पहचाना तुमने हमको

हां, मैडम जी, फुर्र से उड़ती मैडम जी, हाथ लहरा कर कहते हुए उसकी आंखों में सूरज की रौशनी भर आयी

तुम्हें बैठना है, स्कूटर पर

उसकी बड़ी बड़ी आंखों में थोड़ी और चमक उभरी पर फिर झप्प से बुझ गयी।

बापू को खाना दे आए रहैं। जाई नहीं तो अम्मा कूटी। देर होय के मारे

तुम रोज आती हो खाना देने

उसने हां में सिर हिलाया

तो हमें रोज यहीं मिलना कहते हुए लता ने पर्स ले निकाल कर दो टॉफी उसकी ओर बढ़ा दी।

न में सिर हिलाते हुए वह बोली, हमारी अम्मा, फिर सीने पर हाथ रख कर जोर दे कर बोली हमारी वाली अम्मा कहती थी, रस्ते चलत कोहू से कौनौ चीज न लेका चाही।

उसकी नजर टॉफियों से हट नहीं पा रही थी पर अपनी अम्मा की सीख की जिम्मेदारी भी निभानी थी।

हां, अम्मा बिल्कुल ठीक कहती थी। नहीं लेना चाहिए पर हम रास्ते चलते कहां हैं। तुम तो हमको जानती हो। हम तो रोज यहां से आते जाते हैं। तीन चार गांव आगे जो हरबसपुर गांव हैं न, हम वहां के स्कूल में पढ़ाते हैं। कोई पूछे तो बता देना।

आप बहन जी हो

हां

टॉफी अब उसके हाथ में थी

लौटते हुए लता सोच रही थी, इसके पिता से मिल कर इसके स्कूल वगैरह जाने का कुछ तो प्रबंध करना पड़ेगा। उसके घर में वो किरायेदार टीचर जी नहीं आयी होती तो अम्मा के न रहने के बाद छोटे तीन भाई बहनों को सँभालती लता और बिल्कुल लाचार बाबू जी भी कहां ये हिम्मत जुटा पाये होते कि उतनी विषम परिस्तिथियों में भी किसी न किसी तरह लता की पढ़ाई चालू रहनी चाहिए। टीचर जी और अपने रिश्ते को और आगे ले जाने का उसने निश्चय किया और मुस्कुरा कर स्कूटर की स्पीड थोड़ी बढ़ा दी ।

सड़क थोड़ी और चौड़ी हो गयी। हवा में लहराते रंगीन दुप्पटों, बालों की कई खेप उस पर दौड़ने का सपना सच हो कर रहेगा, जब रिश्ते यूं ही बनते चलेगें।


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