Kumar Vikrant

Action Crime

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Kumar Vikrant

Action Crime

मृत्यु-दूत

मृत्यु-दूत

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जिस उम्र में लोग दोस्ती-दुश्मनी से बहुत परे चले जाते है उस उम्र में ७५ वर्षीय रंजीत लाखिया को जीवन की एक जरूरी जंग लड़नी पड़ेगी ऐसा उसने कभी भी ना सोचा था। उसकी भाड़े की कार खंडाला की और मंथर गति से चली जा रही थी, मंजिल थी दीवान विला, जहाँ उसे अपने दोस्त जीवन के बेटे विक्रम से मिलना थ । आज फिर वो अपराध की उस दुनिया में था जिसे वो २० साल पहले अलविदा कह चुका था । 

उसकी अपराध की पाठशाला वही झोपड़-पट्टी थी जिसमें जग्गू भाउ ने उसे अपराध की दुनिया का क ख ग समझाया था। इस पाठशाला में उसके सहपाठी थे जीवन और प्राण, १९ साल की उम्र में वो पक्के बूटी हंटर बन चुके थे और लुटेरों को लूटकर उन्हें कत्ल कर देना उनके बांये हाथ का खेल था। लेकिन एक बार अंडरवर्ल्ड लार्ड मूसा खान का माल लूटना उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बना। मूसा ने उन सबको मारने के लिए शूटर भेजे, जग्गू भाउ और प्राण को उन्होंने मार डाला लेकिन रंजीत और जीवन बच निकले। शूटर उनके पीछे भी थे, लेकिन रंजीत ने भागने के बजाए लड़ने का निर्णय लिया और कुछ महीने बाद वो मूसा को मारकर उसकी खाली गद्दी पर जा बैठा । अब दौलत और ताक़त उसके कदमों में थी। 

उसने शादी की, एक बेटा देव हुआ। उसने बेटे को अपराध की दुनिया से दूर दिल्ली में रखा, पढ़ाया-लिखाया लड़का जवान हुआ, एक जायज कम्पनी का मालिक बना। सब कुछ सही चल रहा था और एक दिन अचानक कार में लगे बम से देव मारा गया । 

रंजीत के अपराधों की काली परछाई उसके परिवार पर पड़ चुकी थी, उसके किसी दुश्मन में उसके बेटे को मार डाला था । उसे खुद से नफरत हो चुकी थी वो अब अपराधों की दुनिया से किनारा कर लेना चाहता था, लेकिन पहले उस दुश्मन का पता लगाना जरूरी था जिसने उसके बेटे को मारा था । बहुत कोशिश के बाद भी जब कातिलों का पता न चला तो रंजीत ने मुंबई के हर उभरते अपराधी की मौत का फरमान जारी कर दिया और एक बार फिर मुंबई में खून की नदिया बही । 

खिन्न मन से ५५ वर्षीय रंजीत ने अपनी गद्दी जीवन को सौंप अपनी पत्नी, बहु और पाँच वर्षीय पोते का साथ सुदूर देश मॉरीसस में जा बसा। उसने अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए गैंग के कुछ वफादार साथी अपने साथ रखे । 

अपराधों के साये से दूर उसने अपने पोते विजय की परवरिश एक आम इंसान की तरह की पढ़ाई पूरी होने के बाद उसे एक सॉफ्टवेयर कम्पनी खोल कर दी, एक सुशील भारतीय लड़की से उसकी शादी भी की। वक्त गुजरा विजय एक बेटी का पिता बना और वृद्ध हो चूका रंजीत अपने परिवार को फलता-फूलता देख अकसर अपने बचपन से लेकर बुढ़ापे तक की सीढ़ियों को याद करता । 

ख़ुशी ज्यादा दिन न टिकी विजय को भी कुछ अज्ञात व्यक्तियों ने गोली मार दी और वो जीवन-मृत्यु के बीच झूलने लगा । 

७५ वर्षीय रंजीत ने मुंबई अंडरवर्ल्ड में जिंदगी गुजारी थी उसे समझते देर न लगी की उसके बेटे देव की हत्या और पोते की हत्या के प्रयास में केवल जीवन और उसके बेटे विक्रम का ही हाथ था क्योंकि उन्हें डर था की रंजीत के काबिल वंसज कभी भी उन्हें नेस्तनाबूद कर मुंबई अंडरवर्ल्ड की गद्दी उनसे छीन सकते है । इसी कारण आज रंजीत मॉरीसस से भारत आया था और खंडाला में जीवन और उसके बेटे से मिलने जा रहा था । 

दीवान विला, उसकी सोच से ज्यादा शानदार था, चारों तरफ गैंग के सिपाही तैनात थे । तलाशी लेने के बाद उसे केवल चलने के सहारे की स्टिक के साथ विला के अंदर जाने दिया गया । विक्रम और जीवन अपने सिपहसालारों के साथ विला की लॉबी में उससे मिले । दोनों के चेहरे पर क्रूर मुस्कराहट थी । ज्यादा औपचारिकता में न पड़ रंजीत ने उनसे सीधे पूछा— "ऐसा क्यों किया ?

"अगर हम ना करते तो पहले तुम्हारा बेटा और अब तुम्हारा पोता हमारे साथ ऐसा करते।" —जीवन ने जवाब दिया।

रंजीत को इससे ज्यादा उम्मीद ना थी उनसे। उसकी आँखों के सामने अपनी पौत्र वधु आशा और प्रपोत्री दिवा का चेहरा आ गया और उसे लगा विक्रम और जीवन उनकी सुरक्षा और अच्छे जीवन के लिए बाधा थे। 

"और तुम्हें लगा मैं तुम्हें छोड़ दूंगा ?" —रंजीत गंभीर मुद्रा में बोला। 

"क्या कर लेगा तू बुड्ढे ?" —विक्रम अपने हथियारबंद सिपहसालारों की और देखकर मुस्कराते हुए बोला। 

जवाब में रंजीत ने अपनी वाकिंग स्टिक उनकी और की और हत्थे पर लगे गुप्त बटन को दबाते ही जहर बुझे दो डार्ट विक्रम और जीवन की गर्दनों में जा घुसे और दोनों के मृत शरीर धरती पर जा गिरे। सिपहसालार मुंबई के पुराने शेर के सामने भेड़ बन गए और अपनी आँखों में सवाल लिए रंजीत की और देखा । 

"मैं जा रहा हूँ, ये अपराध की दुनिया तुम्हें मुबारक लेकिन किसी ने मेरे परिवार को और आँख उठा कर देखा तो मैं फिर वापिस आऊंगा।" —कहकर रंजीत उठ खड़ा हुआ । 

मुख्य सिपहसालार हैदर, विक्रम को हवाई अड्डे तक छोड़ने आया और रंजीत के प्रति सदा वफादार रहने की कसम खा कर विदा हुआ । तभी एक औरत एक बच्चे को गले से लगाए वहां से निकली। उसे देख कर रंजीत को एहसास हुआ की वो भी तो अपने परिवार की सुरक्षा ढाल बन सका और उन्हें गले लगाने का पात्र भी बन सका । कुछ देर बाद विमान में सवार हो मृत्यु-दूत रंजीत ने मुंबई की रक्त-पिपासु भूमि को विदा कह दिया ।


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