मृग मरीचिका अनचाही शादी में प्यार
मृग मरीचिका अनचाही शादी में प्यार
रमेश एक प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार था। उसकी कहानियाँ और कविताएँ न केवल पाठकों को बाँधकर रखती थीं, बल्कि हिंदी भाषा के प्रति जागरूकता भी फैलाती थीं। वह हमेशा एकांत की तलाश में लिखने के लिए शांत और सुरम्य स्थानों पर जाया करता था। इस बार उसने चंबा की खूबसूरत वादियों को चुना।
रमेश की शादी उसकी इच्छा के विरुद्ध हुई थी। उसने अपने बचपन के प्यार, उषा, से विवाह करने का सपना देखा था, लेकिन परिस्थितियाँ अलग थीं। उसकी पत्नी सरल, सुघड़ और हर प्रकार से मददगार थी। फिर भी, रमेश कभी उसे दिल से अपना नहीं सका। वह हमेशा उससे उखड़ा-उखड़ा रहता और हर जगह अकेला ही जाया करता।
चंबा पहुँचने के बाद रमेश को उषा की याद आई। उसने बचपन के दिनों को याद किया—उषा की खूबसूरती, उसका बन-ठन कर रहना, और उसकी नखरेबाज़ी, जो कभी रमेश को प्यारी लगती थी। उसने सोचा, "अगर मेरी शादी उषा से हुई होती, तो मेरी ज़िंदगी स्वर्ग जैसी होती। काश, मैं उससे एक बार मिल पाता।"
एक नया पड़ोसी
रमेश ने देखा कि उसके पड़ोस के कमरे में कोई और भी ठहरा हुआ है। उसने सोचा, "लगता है, कोई लेखक ही है। उससे मिलकर आता हूँ।" रमेश ने जाकर उस व्यक्ति से बात की। उसने अपना परिचय दिया, "नमस्कार, मैं रमेश हूँ। एक उपन्यास लिखने आया हूँ। आप?"
पड़ोसी ने जवाब दिया, "मैं अजय हूँ। शांति की तलाश में यहाँ आया हूँ। घर वालों को बताए बिना यहाँ आ गया हूँ। मेरी पत्नी को नहीं पता मैं कहाँ हूँ। इन दिनों में शांति मिल जाएगी, तो लौट जाऊँगा।"
अजय ने एक उदास हँसी के साथ कहा, "तुम्हारे लिए एक अच्छा विषय है—कुछ पत्नियाँ अपने पतियों को चैन से जीने क्यों नहीं देतीं।"
रमेश यह सुनकर हँस पड़ा। उसने जवाब दिया, "मेरे घर में तो शांति ही शांति है। मेरी पत्नी तो हर समय मेरा ख्याल रखती है। मैं ही उसे कभी दिल से अपना नहीं सका।"
दोनों ने तय किया कि जब तक अजय यहाँ है, वे साथ में खाना खाएँगे।
उषा से सामना
शाम को रमेश ने अजय को खाने पर बुलाने के लिए उसके कमरे पर दस्तक दी। कमरे से जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज़ें आ रही थीं। उसने देखा कि एक मोटी-सी महिला, अस्त-व्यस्त कपड़ों में, अजय को भला-बुरा कह रही थी। रमेश को लगा कि यह आवाज़ जानी-पहचानी है। उसने खिड़की से झाँककर देखा, तो सन्न रह गया। वह महिला कोई और नहीं, बल्कि उसकी बचपन की प्रेमिका, उषा थी।
रमेश ने दरवाजे की घंटी बजाई। उषा ने दरवाजा खोला और गुस्से में कहा, "तुम कौन हो? मेरे पति जैसे निठल्ले तो नहीं हो?"
रमेश ने विनम्रता से कहा, "मैं आपको और अजय जी को खाने पर बुलाने आया हूँ।"
उषा ने जवाब दिया, "हम नहीं आ सकते। मैं अभी अपने पति को लेकर यहाँ से जा रही हूँ।"
रमेश वापस अपने कमरे में लौट आया। थोड़ी देर बाद अजय उससे मिलने आया। वह बेहद मायूस लग रहा था।
अजय की कहानी
अजय ने कहा, "मैं उषा की खूबसूरती के पीछे पागल हो गया था। लोगों ने इसके झगड़ालू स्वभाव के बारे में बताया भी था, लेकिन मैंने ध्यान नहीं दिया। इसके माता-पिता ने इसे मेरे गले बाँध दिया, और अब मैं पछता रहा हूँ।"
अजय की बातें सुनकर रमेश को अपने विचारों पर ग्लानि हुई। उसने सोचा, "मैं कितना अंधा था। अपनी पत्नी की सादगी और अच्छाई को न देखकर इस मृग-मरीचिका के पीछे भागता रहा। भगवान ने मुझे बचा लिया।"
घर वापसी
रमेश ने तुरंत घर लौटने का फैसला किया। जैसे ही उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला, उसने उसे प्यार से गले लगा लिया। उसकी पत्नी आश्चर्यचकित रह गई। रमेश ने उससे माफी माँगी और कहा, "मैंने तुम्हारी कद्र नहीं की। लेकिन अब मैं तुम्हें खुश रखने के लिए हर संभव कोशिश करूँगा।"
पत्नी मुस्कुराई और बोली, "आपसे कोई गलती हुई ही नहीं। मैं हमेशा आपका साथ दूँगी।"
रमेश को अपनी गलती का अहसास हो चुका था। उसने भगवान का धन्यवाद किया और अपनी पत्नी के साथ नई शुरुआत करने का संकल्प लिया।
निष्कर्ष:
यह कहानी हमें सिखाती है कि वास्तविक खुशी और सच्चा प्यार हमारे आसपास के रिश्तों में छिपा होता है। मृग-मरीचिका का पीछा करने से जीवन में केवल पछतावा ही मिलता है।
