Priyanka Kartikey

Horror

2.1  

Priyanka Kartikey

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मोनिका द मिस्ट्री गर्ल पार्ट 4

मोनिका द मिस्ट्री गर्ल पार्ट 4

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दोस्तों अब तक आपने इस कहानी के पिछले भाग में पढ़ा मोनिका अश्विन को एक सपने के जरिये अपने अतीत की एक भयावह सच्चाई से रूबरू करवाती है और उससे एक दोस्त की हैसियत से मदद की उम्मीद करती है और अश्विन से खुद को अपने साथ मुंबई ले जाने की दरख्वाश्त करती है।

क्या अश्विन मोनिका की बात अनसुनी कर देगा ? या फिर उसकी मंजिल तक पहुंचाने में उसकी मदद करेगा ?

तो आइये चलते हैं एक नये सफर की ओर, इन सवालों के जवाबों के साथ कहानियों का सफर विथ प्रियंका कार्तिकेय।

तब ही अचानक सपने मे मोनिका ने मुझसे कहा- "हां अश्विन मैंं वही मोनिका हूं जिसने दो अपराधियों को उनकी गलती की सजा दी। मुझे माफ करना अश्विन मैंं इन सब चीजों में तुम्हें शामिल नहीं करना चाहती थी पर मैंं तुम्हें सिर्फ देखते से ही पहचान गयी थी। तुम्हें याद है तुम अपनी गर्लफेंड सुरभि से मिलने आया करते थे, तब मैं उन दिनों मुंबई सुरभि के घर आयी हुई थी सुरभि मेरे मौसा जी की लडकी थी इसलिये हम बहनें आपस में हर बात शेयर करती थी। मैंने पहली बार तुम्हें नीली जींस और हल्की गुलाबी शर्ट में देखा था । तुमको देख मैं पहली नजर में ही प्यार कर बैठी थी। पर तुम सुरभि से बेइंतहा प्यार करते थे इसलिये मैं मुंबई से बिना तुमसे दिल की बात कहे वापस आ गयी और मैं तुम से आज भी बहुत प्यार करती हूँ। सच कहूँ तो मरने के बाद भी मैं तुम्हें नहीं भुला पायी। ।

पर शायद मैं अब शायद तुम्हारे लायक नहीं हूँ पर एक दोस्त की हैसियत से तुम्हारी मदद चाहती हूँ। क्या तुम मुझे अपने साथ अपने शहर ले चलोगे मेरा एक और कातिल मुंबई में छिपा बैठा है। मुझे उसे ढूंढकर उसे भी उसके अपराध की सजा देनी है, अपना बदला पूरा करना है। मैं सुबह तुम्हारे जबाब का इंतजार करूंगी।"

इतना कहकर मोनिका गायब हो जाती है और मेरी नींद तपाक से खुल जाती है। मैं पसीने से लथपथ घबराहट के मारे थरथर कांपने लगता हूँ। फिर बेड से उठकर पानी पीने के लिये किचन की तरफ मुडता हूँ तो वहां देखता हूँ एक ट्रे में पहले से ही पानी गिलास में रखा होता है।

और वहां एक कागज में "सॉरी लिखा हुआ होता है। उस सॉरी वाले नोट को देख मुझे कुछ राहत सी महसूस होती है और मेरा डर काफी कम हो जाता है। रात भर मेरे जेहन में मोनिका की तकलीफ और उसका अधूरा इंतकाम। और उसकी मासूमियत भरी मुस्कान रह रह कर दिल में तूफान सा मचा देती है। इसी जद्दोजद में मुझे मोनिका से कब बहुत हमदर्दी सी महसूस होती है ये तय करना मुश्किल हो जाता है। शायद इसके अलावा भी बहुत कुछ ऐसा था एक अनोखा जुड़ाव जो मुझे बीते दिनो मुझे मोनिका से हो गया था। और फिर इन कशमश को दर किनारे रखते हुये मैंने एक फैसला मुल्तवी किया। "हां मोनिका मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोडूंगा और तुम्हारी मदद जरूर करूंगा।"

और मैं मन ही मन तय कर लेता हूँ मैं मोनिका की मदद जरूर करूँगा।

फिर मैंं किचन के साईड वाले रूम में जाकर वापस जाकर सो जाता हूँ। और सुबह उठकर जैसे ही हाल में आता हूँ । वहां के डाईनिंग टेबल पर मोनिका उदास सी बैठी रहती है। मैं भी वहां चुपचाप डाईनिंग टेबल के पास धीरे-धीरे कदमों से चलते हुये पहुंच जाता हूँ और बैठ जाता हूँ। तब वो मेरी तरफ जैसे ही नजर उठा के देखती है। उसकी आंखें उसका दिल का दर्द बयान कर देती है उसकी बड़ी बड़ी काली-काली आंखें और उन आंखों से झांकते मोटे मोटे आंसू। शायद उसके जेहन में अनगिनत दर्द की तरह एक साथ उमड़ आये थे। मैं खमोश था और वो भी चुप्पी साधे हुये झुकी नजरों से कभी डाईनिंग टेबल को देखती तो कभी मेरी ओर।

कुछ देर हम दोनों के दरमियां खमोशी छाई रही। फिर जब मुझसे मोनिका की तकलीफ ना देखी गई तो मैंने अपना सहानुभूति भरा हाथ उसकी ओर बढाया और उसने मुझे अपने सीने से लगा लिया। इस दौरान मैंने महसूस किया।

वो और उसकी रूह मेरे लिये दुनिया की सबसे पवित्र रूह सी प्रतीत हो रही थी।

और वो बेहताशा मेरे सीने पर सर रखकर रोये जा रही थी।

तब मैंने उसकी आंखों के मोटे-मोटे आंसू अपनी गीली हथिलियों से पोछें जो उसके आंसुओं से पूरी गिली हो चुकी थी।

मैंने उसका हाथ अपने हाथों में लिया। इस दौरान मैंने महसूस किया। उसके हाथों में हल्की सी कंपकपाहट थी। उसकी कंपकपाहट को दूर करने के लिये मैंने उसका हाथ बहुत मजबूती से थमा था। और प्यार से उसकी तरफ देखते हुये बोला-" मोनिका मैं जानता हूँ तुम्हारे साथ उन तीनों ने जानवर से भी बदतर सलूक किया। और मैं भी यही मानता हूँ उन तीनों की सजा मौत ही होनी चाहिए । मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है और ना ही कभी होगी । इंसानियत और दोस्ती के नाते मैंं तुम्हें राहुल तक जरूर पहुंचाउँगा फिर तुम अपनी शक्तियों से अपना बदला पूरा कर लेना। इसमें मैं भी तुम्हारी पूरी मदद करूंगा। "

मोनिका के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ जाती है। और वो एक बार फिर मुझे जोर से गले लगा लेती है।

और मैं उसके सिर पर प्यार से सहानुभूति भरे लिफाज में हाथ फेरता हूँ जैसे किसी रोते बच्चे को उसके मां-बाप सिर पर हाथ फेरते है । बस समय मुझे भी कुछ ऐसी अनुभूति हुई।

फिर खुद को सामान्य करते हुये मोनिका कहती है-अश्विन मैंने तुम्हारे लिये पास्ता बनाया है। क्या तुम चखकर बताओगे ?

मैं-अरे क्यों नहीं पर तुम्हें कैसे पता ये मेरा फेवरेट है ?

तब मोनिका हल्का सा मुस्कुरा देती है और प्यार भरे लिहाजे में कहती है -बुद्धु इतनी जल्दी भूल गये। तुम्हारी गर्लफ्रेंड मेरी कजिन सिस्टर है। वो मुझसे हर वक्त सिर्फ तुम्हारी ही बातें करती थी। बस उसी से तुम्हारी हर पसंद नापसंद पता चली। और । ।

कहते कहते मोनिका एक पल के लिये रूक गयी जैसे उसकी दिल की बात गले से उतरकर होंठों पर आते आते एक प्यारी ओस की बूंद की तरह थम सी गयी।

और मैं उसे देख मुस्कुरा दिया और वो एक टक प्यार से मुझे देखे जा रही थी। जैसे कोई प्यासा कुएँ को देखता है प्रेम रूपी जल पीने के लिये।

फिर जैसे ही मैंने ब्रेकफास्ट फिनिस किया। कोटेज की डोरबेल बजी तो मैंने दरवाजा खोला।

सामने वही इंस्पेक्टर था जिसके पास मैंने कंपलेन लिखवायी थी।

उसने अंदर आने का इशारा किया और मैं भी उसके पीछे किचन के पास वाले एरिया जो कि हॉल से कनेक्टड था। वहां चल दिया उधर मैंने एक धूल खाये सोफे पर से पर्दा हटाया और उसे झटकार कर सोफे पर बैठने के लिये कहा-कहिये कैसे आना हुआ आपका ?

तब वह इंस्पेक्टर कंधे उचकाते हुये बोला- आपने जिस लड़की की कंपलेन लिखवायी थी वो 2 महीने पहले ही मर चुकी है और जिन लडकों की आप बात कर रहे थे उनमें से दो लड़कों की बहुत रहस्यमयी तरह से मृत्यु हो चुकी है और तीसरे का कुछ अता पता नहीं और हैरत की बात तो यह है आपने जैसा बताया था उस लड़की के साथ इसी कोटेज में वैसी ही घटना घटित हुई थी पर मैं आपसे यह जानना चाहता हूँ आप तो इस शहर में अनजान है फिर आपको कैसे पता चला ये सब ?

मैंने थोडा हैरान होते हुये बोला- सर वो मैं उस टाईम थोडा ड्रंक था और पास के ढाबे पर जब खाना लेने गया था तो वहीं पर किसी को उस लड़की के बारे में बात करते सुना था शायद इसलिये मुझे वहम हो गया था। खैर मैं आपको हुई तकलीफ के लिये माफी चाहता हूँ।

इंस्पक्टर ने थोडा सख्त लिहाजे में कहा-कोई बात नहीं पर आगे से ध्यान रखना और हां अब आप यहां से जा सकते हैं। ये केस १ महीने पहले ही बंद हो चुका है।

इतना कहकर इंस्पेक्टर कोटेज से बाहर की चला जाता है और कोटेज का दरवाजा भी धीरे से अपने आप बंद हो जाता है।

तब मुझे कुछ धुंधली सी तस्वीर इंसानी रूप लेते हुये दिखती है और ये शख्स कोई और नहीं मोनिका ही होती है।

तब मैं उसकी तरफ देखते हुये बोलता हूँ- क्या तुम मेरे साथ मुंबई चलोगी ?

मोनिका हां मैं सिर हिलाती है और खुशी खुशी मुंबई चलने के लिये तैयार हो जाती है। ठीक है तो फिर शाम को ही हम मुंबई के लिये निकलेंगे।

मैं- पर जायेंगे कैसे मैडम ये भी तो सोचिये जरा।

मेरी गाडी का तो आपकी बिल्ली ने एक्सीडेंट करवा दिया।

मोनिका(हंसते हुये)- अरे गलती तुम्हारी थी तुम मेरी क्रिस्टिना (काली बिल्ली) को क्यों दोष दे रहे हो। शाम तक कोई ना कोई इंतजामामत हो ही जायेगा।

चलो मैं तुम्हें पूरा कोटेज के पीछे लॉन वाला हिस्सा दिखाती हूँ।

वो और मैं लॉन में लगे गार्डन की तरफ चल पड़ते है। वहां कुछ प्लांटस हरे भरे थे तो कुछ धूप के अधिक प्रभाव से काफी हद तक सूख चुके थे और उनमें से एक गमले का एक प्लांटस गीली मिट्टी से अभी तक लहलहा रहा था। उसमें रोपे गये व्हाईट लिली के फूल इतने सुंदर लग रहे थे मानो हिमालय ने बर्फ की सुंदर सी अपनी ओर आकर्षित करने वाली चादर ओढ़ी हो।

तब ही मोनिका उस लिली के फूल के पास जाती है और उसे प्यार से अपने हाथों में लेकर मुझे कहती है- जानते हो अश्विन ये मेरा सबसे पसंदीदा फूल है क्योंकि ये हर मौसम में इसी तरह अपनी खुशबू बिखेरता रहता है। खैर अब तो मैं इस दुनिया से आजाद हो जाउँगी तो सबसे ज्यादा इस व्हाईट लिली के फूल को ही मिस करूँगी। इतना कहते कहते वो उदास हो जाती है।

मैं- अरे बताओ तो कैसा है तुम्हारा फेवरेट फ्लावर ?

हाई मिस फ्लॉवर वैसे मानना पडेगा आपको आप वाकई बहुत सुंदर हो। पर ना आपको अपनी खूबसूरत पे घमंड करने की जरूरत नहीं है क्योंकि ना मेरी एक दोस्त की स्माईल आपसे ज्यादा सुंदर है।

तब ही मोनिका मेरी तरफ हैरतअंगेज नजरों से देखती है-अच्छा तो कौन है वो ये बता दीजिए जनाब !

मैं- स्टुपिड और कौन होगा तुम्हारे अलावा।

मोनिका थोड़ा शरमा जाती है और फिर वो भी मेरे साथ हँसने लगती है। मोनिका का हँसता देख मैं बहुत सुकून सा महसूस करता हूँ। मोनिका का साथ मुझे बहुत अच्छा लगने लगता है शायद ये उसी का प्यार था जो मुझे उसकी तरफ खींचे जा रहा था।

देखते देखते शाम हो जाती है।

मोनिका और मैं मुंबई जाने के लिये उसी जंगल के रास्ते सड़क की ओर चल पड़ते हैं। पूरे रास्ते मैं और वो बातें करते हुये जाते हैं। कभी गाँव के आते जाते मुझे खुद से बडाते हुये देख हँस देते तो कभी मुझे पागल समझकर आगे बढ़ जाते क्योंकि मोनिका को मेरे अलावा कोई भी आम इंसान नहीं देख सकता था और ना ही छू सकता था इसे कुदरत का करिश्मा ही समझिये या कुछ और इस दुनिया में मोनिका की मदद के लिये ईश्वर ने शायद मुझे ही चुना था और मैं बहुत खुश भी था मोनिका का साथ पाकर क्योंकि मोनिका बहुत ही मासूम और दिल की बहुत भोली भाली सी लड़की थी। उसके नैन नख्श किसी मोरनी के नैनो से कम ना थे। उसके गुलाबी होठों की प्यारी सी मुस्कुराहट हर बार मेरा दिल जीत लेती। शायद धीरे धीरे मैं भी उसे मन ही मन प्यार करने लगा था।

तब ही जंगल के एक मोड़ पर मोनिका मुझे रूकने का कहकर श्मशान की तरफ रूख कर लेती है और १० मिनिट में लौट आने का वादा करती है।

काफी समय गुजरने के बाद जब मुझे मोनिका की अंधेरे को चीरती हुई परछाई दिखाई देती है। तब मेरे दिल को कुछ राहत सी महसूस होती है।

फिर मैं और मोनिका वापस से जंगल से सड़क की ओर चल पड़ते हैं।

हम जैसे ही सड़क की ओर पहुंचते है। मैं देखता हूँ मेरी कार एक दम सही सलामत सड़क के किनारे खडी होती है। ये वही कार थी जिसका शीशा मेरे हाथों एक पेड़ से टकराकर बुरी तरह टूट-फूट गया था। तब मैं कभी कार को तो कभी मोनिका की ओर हैरानी से देखता हूँ।

मोनिका (मुस्कुराते हुये)- लो हो गया इंतजाम अब चले मुंबई।

मैं-वाह यार तुमने तो मुझे एकदम शॉक कर दिया। जरूर तुमने अपनी पॉवर से किया है ये सब । हैना । कभी पॉवर से खुद गायब हो जाती हो। तो कभी कुछ।

वैैसे कहीं मुझे तो गायब नहीं करोगी नाअपने जादू से।

मोनिका-करूंगी ना बिलकुल करूँगी जब तुम मेरी बात नहीं मानोगे तब ये ट्रिक तुमपर भी अजमायेंगें।

उसकी मासूम सी शरारते देख मेरी हंसी छूट जाती है और साथ-साथ वो भी खिलखिलाकर हंसने लगती है।

फिर वो और मैं कार से मुंबई की ओर निकल पडते है। रास्ते में सडक पर हल्की हल्की बारिश हो रही थी। इस हल्की बारिश में मैंने कार के रिमोट सिस्टम से सभी शीशे बंद कर दिये। लंबे सफर में किशोर कुमार के रोमांटिक गाने मुझे हमेशा से ही पसंद थे। इसलिये मैंने माहौल खुशनुमा बनाये रखने के लिये एफ.एम जैसे ही ऑन किया। उसमें किशोर दा का बहुत पुराना गाना बज रहा था।

पर आज के मौसम की बात ही कुछ और थी मोनिका के साथ बिताया हर एक पल प्यार के अहसासों से लबरेज होता चला जा रहा था वही दूसरी तरफ रेडियों पर गानो का कारवां चलता जा रहा था और मेरी दिल की धड़कन गाड़ी की रफ्तार से लगातर बढ़ती जा रही थी।

एफ.एम में गूंजते म्यूजिक के शब्द मानो मेरी धड़कनों से निकलकर रेडियों पर बज रहे थे।

"हो चांदनी जब तक रात, देता है हर कोई साथ तुम मगर अंधेरों में ना छोड़ना मेरा हाथ।

ना कोई है ना कोई था

जिंदगी में तुम्हारे सिवा

तुम देना साथ मेरा ओ हमनवा जब कोई बात बिगड़ जाये।

जब कोई मुश्किल पड जाये।

तुम देना साथ मेरा ओ हमनवा"

सुबह के चार बजे मैं और मोनिका मुंबई के मेरे फ्लैट के ग्राउंड फ्लोर पर थे। लिफ्ट खराब होने की वजह मैं और मोनिका सीढियों के रास्ते चलते हुये ग्राउंड फ्लोर के २६ नं कंपार्टमेंट में दाखिल हुये।

मेरे रूम की हालत देख मोनिका मुझे थोडी देर हैरतअंगैज नजरों से देखने लगी ।

मानो पूछ रही हो- अपने कमरे ऐसी हालत कौन करता है।

और फिर मुस्कुरा दी।

खुद से जाकर मेरे रूम का फैला समान सही करने की कोशिश करने लगी।

मैंने उसे टोकते हुये कहा-अरे छोडो तुम ये सब मैं कर लूंगा। सारे रूम का समान जो बेतरती से बिखरा पडा था मैंने थोडे ही समय में सब सही से जमा दिया था।

मैं-मोनिका तुम जब तक चाहो तो साईड वाले रूम में रह सकती हो। और मैं यहां हॉल में रह लूंगा।

और हां तुम्हें किसी भी चीज़ की जरूरत हो तो बस मुझे आवाज लगा देना यें बंदा आपकी खिदमत में हाजिर हो जायेगा।

चलो मैं जा रहा हूं सोने ८ घंटे की ड्राईविंग के बाद बहुत थका थका सा महसूस कर रहा हूँ तुम भी रेस्ट कर लो जाकर ।

मैं अपने रूम से ताकिये और चादर लेकर हॉल वाले सोफे पर जाकर सो जाता हूँ। वही दूसरी तरफ मोनिका मेरे बारे में सोचते हुये गहरी गुलाबी मुस्काराहट के साथ कुछ पल के लिये स्थिर सी हो जाती है शायद उसे मेरे ईश्क का खुमार चढ रहा था। मेरी बातें कहे अनकहे अनगिनत किस्से कितना कुछ था हम दोनो के दरमियां ईश्क ही तो था वो शायद जो धीरे-धीरे अपनी खूबसूरत सी साजिश रचते हुये मुझे और मोनिका के दिल में घर किये जा रहा था।

अगली सुबह मोनिका एक हाथ में चाय का कप लिये हुये सोफे के पास वाले टेबल पर रखकर काफी देर तक मुझे एक टक निहारती रही। जब सुबह की पहली किरण मेरे चेहरे पर पडते हुये शरारती नजाकत लिये लुका छुपी करती तो मोनिका उन किरणों को पर्दो से हटा देती।

मेरी आंख जैसे ही खुली मैंं मोनिका को देखता रह गया। उसके नाजुक नरम सफाक से चेहरे पर गुलाबी मुस्कुराहट को देख मैं ठिठक सा गया। इस पल में मेरे लिये सबसे हसीन शायद ही कुछ और रहा होगा।

एक शाम जब मैं घर का कुछ जरूरी सामान लेने मार्केट के लिये जाने के लिये घर से निकला।

तब ही मोनिका ने मासूमियत भरे लिहाजे में कहा- अश्विन क्या मैं भी तुम्हारे साथ तुम्हारा शहर घुमने और देखने की ख्वाईश कर सकती हूँ। प्लीज।

मैं- क्यों नहीं, तुम भी चलो मेरे साथ वैसे भी घर में अकेले बोर हो जाओगी।

तो फिर आप जल्दी से तैयार हो जाइये मोहतरमा, हम आपका नीचे गाड़ी में इंतजार कर रहे है।

15 मिनिट की मशक्कत के बाद आखिरकार मोनिका तैयार होकर नीचे आ जाती है।

उसके नाजुक होंठों की मुस्कुराहट कातिलाना अंदाज लिये हुये थे।

जिसे देखकर ना जाने कितने आशिक अपना दिल हार जाये कुछ ऐसी खूबसूरती झलक रही थी या यूं कहिए हजारो अफ़ताबों का नूर भी उसकी खूबसूरती के आगे फीका सा पड़ गया।

तब ही अचानक मोनिका की आवाज से मेरे फख्ता होश वापस आये।

मोनिका-" अश्विन । अश्विन कब से आवाज दे रही हूँ तुम्हें। तुम हो कि ना जाने कौन सी दुनिया में गुम हो। "

मैं हड़बड़ाते हुये बोला- सॉरी वो मैं किसी ख्याल में मशरूफ था। वैसे एक बात कहूं मोनिका तुम आज सच में बहुत सुंदर लग रही हो। वैसे मार्केट पास ही है अगर तुम बुरा ना मानो तो क्या हम आपस में बातें करते हुये पैदल वॉक पर चले।

मोनिका (हंसते हुये) बोली- मैं क्यों बुरा मानुंगी जनाब चलिये पैदयात्रा पर ही सही।

जैसे ही हम मार्केट पहुंचे वहां सुरभि को देख मोनिका ने खुद को अपनी शक्तियों से छुपा लिया।

तब ही एक लड़की मेरे पास अचानक आयी और मुझसे लिपटकर रोने लगी । मैंने जैसे ही खुदको उससे दूर झटककर एक किनारे किया। तब उसका चेहरा देख सन्न सा रह गया। ये लड़की कोई और नहीं सुरभि ही थी जो बार बार मुझसे लिपटकर बेहताशा रोये जा रही थी ।

मैं उसे दिलासा देना चाहता था पर मेरे हाथ और कदम दोनो ही पीछे हट गये।

मैं समझ नहीं पा रहा था। आखिर ऐसा क्यों हो रहा था।

ये वही सुरभि थी जिसे मैं कभी बेइंतहा प्यार किया करता था।

जिसके साथ मैंने कभी जीने मरने की कसमें खाई थी। आज वही सुरभि मुझे परायी सी लग रही थी। इन सवालों की तलाश में मैंने जैसे ही मोनिका की तरफ देखा।

उसके चेहरे पर बहुत ही अजीब सी खमोशी थी। जो मुझे अंदर ही अंदर कचोटे जा रही थी। शायद यही वो जबाब था जो सुरभि और मेरे बीच परायेपन का अहसास कायम किये हुये था।

मैंने सुरभि की तरफ देखते हुये कहा- देखो सुरभि अब तुम्हारी शादी हो चुकी है इन सब बातों को भुल जाओ। और तुम्हारे पति के साथ खुश रहों । और रही बात मेरी मैं जैसे पहले तुम्हारे बिना अभी तक जिया आगे भी जी लूंगा। मैं जैसा भी हूं ठीक हूं मुझे छोडकर जाने का फैसला तुम्हारा था। पर तुम ही। खैर छोडो इन सब बातों का अब कोई मतलब नहीं है। तुम अपनी जिंदगी में हमेशा खुश रहों यही दुआ है मेरी।

इतना कहकर मैं बिना पीछे मुडे। घर के सामान की खरीद-दारी करने किसी और जगह रूख कर लेता हूँ। खरीद-दारी का पूरा सामान लेने के बाद मैं और मोनिका सड़क के रास्ते होते हुये घर की तरफ चल पड़ते हैं।

सड़क काफी सुनसान सी थी उपर से घने अंधकार में टिम टिम करते तारे एक अनोखी सी मुस्कान लिये आसमान की खूबसूरती की आभा में चार चांद लगा रहे थे । पेड़ के पत्तों की चरचहाट एक पल के लिये पूरे शरीर में सिहरन सी छोड जाती । ठंडी हवाओ का झोखा जब जब मुझसे या मोनिका से टकराता एक अजीबो गरीब कशमश छोड़ जाता ।

आज मोनिका एक दम चुपचाप थी शायद उसके दिल में भी मेरी तरह हलचल मची हुई थी। कहने को तो बहुत कुछ था पर ना तो उसके लबों से बोल फूट रहे थे और ना मेरे। बस एक लंबी सी खमोशी जिसमें हम एक पल दूसरे को बेतरती से निहारते तो अगले ही पल सड़क के सुनसान रास्तों पर निगाह कर लेते। और धीरे- धीरे कदमों से आगे बढ़ चलते।

तब ही अचानक सड़क पर हम दोनों के बीच की खमोशी को चीरते हुये। तेज रफ्तार से एक सफेद रंग की कार मोनिका और मेरी तरफ बढ़ी।

मैं मोनिका को बचाने के लिये उसे लेकर सड़क के एक तरफ कूद पडा। इस दौरान मोनिका को तो कुछ नहीं हुआ लेकिन मुझे हाथ और कोहनी पर हल्की सी चोट आगई। मैं उसकी सलामती की तकसीन के लिये बार बार उससे पूछे जा रहा था।

"क्या तुम ठीक हो? तुम्हें कुछ हुआ तो नहीं। "

और वो बार बार झेंपते हुये एक ही बात कह रही थी

"हां अश्विन मैं बिल्कुल ठीक हूं। पर तुम्हें बहुत चोट आयी है। और तुमने मुझे बचाने के लिये खुद की जान क्यों खतरे में डाली?? तुम पागल हो क्या?अपने बारे में क्यों नहीं सोचा और मेरे पीछे अपनी जान खतरे में डाल दी। मैं बहुत ही मर चुकी हूं मुझे अब मौत छू भी नहीं सकती । अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं। मैं। कहते कहते उसके लफ्ज गले में अटक गये।

मेरी आंखे आंसूओ की हल्की बूंदो के चलते नम हो गई थी। जिसे मोनिका ने भांप लिया था। मैंने उसे इतनी जोर से गले लगा लिया। मानो उसे अपने आप से एक पल के लिये भी दूर नहीं जाने देना चाहता था।

वो कहते है ना किसी की आपकी जिंदगी में क्या अहमियत है ?उसके पास होने से ज्यादा उसके दूर जाने के पर पता चलती है। शायद यही पल वो था जब मुझे मोनिका की अहमियत का अहसास हुआ था। फिर कुछ सामान्य लिहाजें में वो थोड़ी सी सकपकायी और फिर मुझसे दूर होकर सडक़ की दूसरी ओर चलने लगी।

और मैं भी उसके साथ कदम से कदम मिलाते हुये उस अनजाने सफर पर चल पडा। मानो हम एक रास्ते के दो मुसाफिर थे जो साथ होकर भी साथ नहीं थे।

फिर सड़क पर चलते चलते स्ट्रीट लाईट के पास हम जैसे ही पहुंचे वहां पहुंचे। वहां अलग अलग फ्लेवर वाली आईसक्रीम को देख। मोनिका की आंखों में अजीब से चमक आ गई।

मानो कोई उसे बचपन की कोई शरारत या किस्सा याद आ गया था।

और लबो पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट आ गई।

फिर मैं उस आईसक्रीम वाले के पास गया ।

दो चॉकलेटी फ्लेवर वाली आईसक्रीम खुद के लिये और मोनिका के लिये लेकर आ गया।

उसने जैसे ही आईसक्रीम खाने के लिये अपना हाथ आगे बढाया।

उसका हाथ आईसक्रीम के आर पार हो गया। और आईसक्रीम नीचे सड़क पर गई।

यह सब देख मुझे बहुत बुरा लगा।

यह सब देख मैंने भी आईसक्रीम एक गरीब बच्ची को दे दी। जो मैंले कुचैले कपडो। में खाने की तलाश में इधर उधर घुम रही थी। मैंने जैसे ही उस बच्ची को आईसक्रीम देकर यूं टर्न किया। मेरे हाथ में अचानक से दो आईसक्रीम एक साथ आ गई मैंने मोनिका की तरफ देखा तो उसकी मुस्कुराहट मेरे सारे सवालों के जबाब दे गई।

और इस बार जैसे ही मैंने उसकी तरफ आईसक्रीम बढाई उसने लपककर मेरे हाथ से ले ली और वो अपनी आईसक्रीम एक छोटे से बच्चे की तरह अपने कपडों पर तो कभी सड़क पर गिराते हुये आईसक्रीम खाने लगी। इस बार उसके हाथ से आईसक्रीम नहीं गिरी थी। उसको इस तरह से खुद में ही मग्न देख मैं भी बहुत सुकुन सा महसूस कर रहा था।

और हम दोनो वापस घर की ओर चल दिये।

स्ट्रीट लाईट से कुछ दूरी पर जैसे ही हम पार्क वाली गली से गुजरे। उस एरिये के कुत्ते ना जाने क्यों मोनिका की तरफ देख बार-बार भौंके जा रहे थे। शायद उन्हें किसी आत्मा के होने की उपस्थिति का अहसास हो रहा था। मोनिका के चेहरे पर मैं घबराहट और डर के हावभाव किसी खुली किताब की भांति पूरी तरह से पढ पा रहा था। मैंने मोनिका का हाथ पकडा। और अंदर पार्क की ओर चल दिया।

हालांकि उसके हाथ की कंपाहट कम होने का नाम नहीं ले रही थी। फिर वो और मैं एक बेंच पर जाकर बैठ गये थे और मैं उसका हाथ अपने हाथों में लिये उसकी तरफ खमोशी से देखे जा रहा था। ना उसे हासिल करने की चाह । ना ही उसके करीब आने की चाह थी मेरी। मैं बस उसकी ईजाली(हिरणमयी)आंखों में डूबता चला जा रहा था। प्यार का एक रंग ऐसा भी होता है उस खातून की खाबिदा खूबसूरती को देख आज फिर एक बार मैं उससे मुदासिर हुआ।

जब कुत्तों की भौंकने की आवाज आना बंद हुई तो मोनिका ने अपना हाथ मेरे हाथ से छुडा लिया। इस दौरान मैंने महसूस किया । मोनिका का डर काफी कम हो गया था और उसके हाथों की कंपकंपाहट भी ना के बराबर ही थी।

हम दोनो जैसे ही पार्क से बाहर की ओर जाने लगे। तब ही अचानक एक व्यक्ति अपने तेज कदमों से हम दोनो के पास आया इस बार मोनिका ने खुद को बिलकुल भी नहीं छुपाया था और बोला- "मुझे आपकी मदद की सख्त जरूरत है !

मेरा और मेरे दोस्त का पास में एक्सीडेंट हो गया। और मेरा दोस्त बहुत बुरी तरह घायल हो गया। और वो कार के हैंडल ऑटोमेटकली लॉक होने की वजह से कार में बुरी तरह से लॉक हो गया है। प्लीज मेरी मदद कीजिए। मैंने यहां बहुत लोगो से मदद मांगी पर किसी ने मेरी मदद की!! प्लीज सर "

वो हाथ जोडकर मेरे कदमों में गिर गया। उसके बदहवासी से परेशान चेहरे पर पसीने की कुछ बूंदे इस तरह उभर आयी थी जो परेशानी की तंगहाली साफ शब्दों बयां कर रही थी।

मैंने पहले मोनिका की तरफ देखा तो उसने भी मुझे मदद करने का इशारा किया।

मैंं सहानुभूति भरे स्वर से उस व्यक्ति तरफ देखते हुये बोला-आप परेशान मत होईये। मैं आपकी और आपके दोस्त की मदद जरूर करूंगा।

वो व्यक्ति बोला- आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

मैंने कहा- चलिए इन सब बातों का ये सही समय नहीं है सबसे पहले आपके दोस्त को बचाना सबसे ज्यादा जरूरी है।

फिर हम तीनों वापस सड़क के रास्ते होते हुये पार्क से कुछ किलोमीटर पर स्थित एक खौफनाक मोड़ पर पहुंच जाते है।

हालांकि उस सुनसान सड़क वाले खौफनाक मोड़ पर दूर दूर तक डरावनी आकार वाले विशाल यूकेलिप्टस पेड़ो के पत्तों की चरमाहट उस जगह को और खौफनाक बनाये जा रही थी।

जैसे ही मैंं और मोनिका वो व्यक्ति वहां पहुंचे वहां हमने देखा। कार में बैठा एक शख्श बुरी तरह घायल अवस्था बेहोश पडा था। जिसका चेहरा खून से बुरी तरह सना हुआ था और कार के टूटे कांच कुछ टुकडे भी तीर कमान की भांति उसके चेहरे को छलनी किये हुये थे।

जिसकी वजह से उसके चेहरे से लगातार खून बह रहा था। और इसी वजह से उसका चेहरा पहचान पाना मोनिका और मेरे लिये बहुत मुश्किल हो रहा था।

उस व्यक्ति और मैंने काफी देर तक कोशिश की पर फिर भी कार के गेट का लॉक नहीं खुला । फिर मैंने उसकी तरफ देखते हुये कहा- अब तुम ही हेल्प कर दो। ये लॉक खोलना अब हमारे बस की बात नहीं।

तब ही वो व्यक्ति बोला- आप किससे बात कर रहे हो। सर यहां तो हम दोनों के अलावा कोई भी नहीं है । फिर आप किससे बात कर रहे हो।

तब ही मुझे ध्यान आया मोनिका को मेरे अलावा उसकी मर्जी के खिलाफ कोई ना तो देख सकता था और ना ही सुन सकता था। फिर मैंने उस व्यक्ति से कहा-कुछ नहीं वो मेरी अपनेआप से बात करने की बहुत पुरानी आदत है। सॉरी फॉर देट

तब ही जैसे ही मैंने और उस व्यक्ति ने कार के लॉक हैंडल को खोलने के लिये जैसे हाथ बढाये। कार का हैंडल अपनेअाप खुल गया। अब वो व्यक्ति कभी हैरान से मुझे देखता तो कभी उस हैंडल को।

फिर उसने अपने दोस्त को कार बाहर से निकालने के लिये मुझे मदद का ईशारा किया। हम दोनो ने उसे कार से काफी मशक्कत के बाद जैसे तैसे बाहर निकाला। इस दौरान मेरी नजर उसकी कार की नं प्लेट पर पडी। मैं हैरान सा उस प्लेट को देखता रह गया। ये वही व्हाईट रंग की कार थी जिससे कुछ समय पहले ही मोनिका और मेरा एक्सीडेंट होते होते बचा था।

फिर मैंने उन दोनो को हॉस्पिटल ले जाने के लिये एक टेक्सी हायर की। इस सफर के दौरान मैंने उस व्यक्ति का नाम पूछा। तो उसने अपना नाम कुमार शर्मा बताया। और उसने अपने बारे और अपनी फैमली के बारे में सबकुछ बताया। कैसे उसकी शादी हुई और कैसे उसके और उसकी पत्नी के झगडे बढने लगे । इस दौरान उसकी शराब पीने की लत हद से ज्यादा बढ गयी और इसी शराब की लत की वजह से आज उसने जान से प्यारे दोस्त को भी हद से ज्यादा शराब पिला दी। शायद यही वजह थी कार ड्राईविंग के दौरान उन दोनो का इतनी बुरी तरह एक्सींडेट हुआ। इसके साथ ही उसने जैसे ही उसने जेब से पर्स निकालते हुये अपनी पत्नी की फोटो दिखाई। मैं देखकर चौंक सा गया। ये फोटो सुरभि की थी ये वही सुरभि जिससे कभी मैंने बेशुमार किया था। मोनिका भी जो उसी टेक्सी में मेरे साथ सफर कर रही थी। सुरभि की फोटो देखकर कुछ हैरान सी रह गयी।

खैर मैं और मोनिका उन दोनो के साथ हॉस्पिटल आ गये। वहां के आई.सी.यू वार्ड में उस लडके़ को भर्ती किया गया। और उसका दोस्त कुमार कुछ लीगल फॉरमिलिटिज पूरी करने के लिये हॉस्पिटल के मेन काउंटर पर गया। वहां उसने उस लड़के का पूरा नाम पता लिखवाया और इलाज के लिये खुद के क्रेडिट कार्ड से पैसे जमा करवाये।

मोनिका आई.सी.यू के बाहर की सीट पर खमोश सी बैठी थी।

पर मेरे जेहन में बहुत सारे सवाल ऐसे थे जिनका जबाब इस लड़के के होश में आने के बाद ही मिल सकता था।

8 घंटे के ऑपरेशन के दौरान जैसे ही डॉक्टर आई.सी.यू से बाहर आये ।

उसके दोस्त कुमार ने परेशान होते हुये पूछा- डॉक्टर साहब मेरा दोस्त ठीक तो हो जायेगा ना??कहीं कोई सीरियस बात तो नहीं है ना।

डॉक्टर- देखिये इनकी कंडीशन बहुत सीरियस है। चेहरे से सारे कांच के टुकडे निकाले जा चुके है। पर इनके घाव काफी गहरे है। इनको भरने में काफी टाईम लगेगा । इनकी कल पूरे चेहरे की सर्जरी होगी तब ही हम आगे की कंडीशन बता पायेंगे। इनको सुबह तक होश आ जायेगा।

इतना कहकर डॉक्टर ओटी रूम की तरफ चल दिये।

पर मेरे मन में बहुत से अनकहे सवाल गूंज रहे थे। आखिर कौन था ये लड़का ? और क्या इसने जानबुझकर मोनिका या मुझपर हमला किया था ?

क्या उसका एक्सीडेंट मोनिका ने करवाया था ?

इन सवालों के जबाब के साथ मिलते हैं इस कहानी के अगले भाग में आपको मेरी कहानी कैसी लगी मुझे जरूर बताये।


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