Priyanka Kartikey

Tragedy Drama

1.9  

Priyanka Kartikey

Tragedy Drama

मोनिका द मिस्ट्री गर्ल पार्ट 5

मोनिका द मिस्ट्री गर्ल पार्ट 5

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दोस्तो आप सभी ने इस कहानी के पिछले भाग में पढ़ा,

पार्क में मोनिका और अश्विन की मुलाकत एक अंजान व्यक्ति से होती है जिसके दोस्त का कार एक्सीडेंट पास के ही एक खतरनाक मोड़ पर हो जाता है और वो मदद के लिए बार-बार अश्विन से गुजारिश करता है।

वो व्यक्ति ,अश्विन और मोनिका जैसे ही उस खतरनाक मोड़ वाली सुनसान जगह पर पहुंचते हैं।

तो देखते है कि एक व्यक्ति कार के अंदर घायल और बेहोश अवस्था में पड़ा है। अश्विन किसी तरह उस अंजान व्यक्ति (कुमार) के साथ मिलकर उस कार में बुरी तरह फँसे घायल व्यक्ति की मदद करता है। इस दौरान वो कार की नेम प्लेट नं. देख लेता है इत्तेफाक से ये एक्सीडेंट वाली कार वही होती है जिससे कुछ देर पहले अश्विन और मोनिका का एक्सीडेंट हुआ था।

कुमार के दोस्त के चेहरे पर कार के शीशे के कुछ टुकडे उसके चेहरे पर बहुत बुरी तरह घाव कर जाते है। जिससे उसका चेहरा बहुत बुरी तरह खून से लहूलुहान हो जाता है इस वजह से मोनिका और अश्विन उस अंजान शख्स का चेहरा नहीं पहचान पाते है। और उसे किसी तरह हॉस्पिटल पहुंचाते है। 8 घंटे के ऑपरेशन के दौरान डॉक्टर उस शख्श को बचा तो लेते है पर उसकी कंडीशन बहुत सीरियस बताते हैं।

आखिर कौन था ये शख्स ? क्या इसने जान बूझकर मोनिका और अश्विन पर हमला किया था ?

क्या इस शख्स के एक्सीडेंट की जिम्मेदार मोनिका थी या ये एक्सीडेंट महज एक इत्तेफाक था। चलिये चलते है इन सवालों के जबाब के साथ इस अंजान सफर पर

हॉस्पिटल में उस शख्स के होश में आने का इंतजार कुमार से ज्यादा मुझे था मैं बेतरती से उस शख्स के बारें में जानना चाहता था। कुछ सवाल ऐसे थे जिनका जबाब कहीं ना कहीं इस अजनबी से ही जुड़ा हुआ था। आखिर ऐसी कौन सी कड़ी थी जो इस अजनबी से हम दोनों को जोड़ रही थी ?

यही सोच-सोचकर मैंं बहुत परेशान था। और इंतजार की यह रात मेरे लिये कयामत की रात से कम ना थी। रात अपने शबाब पर थी और उसपर से इंतजार का जायका मेरे दिलों दिमाग पर हावी था। खैर जैसे तैसे मैंने आई.सी.यू रूम के बाहर ये रात काटी। फिर रात में बढती हल्की हल्की ठंड के चलते मेरी आंखे टयूबलाईट के जैसे जल-बुझ होने लगी। और कुछ ही देर में कुर्सी पर बैठे बैठे मेरी नींद लग गयी। और मैं कब मोनिका के कंधे पर सिर रखकर सो गया मुझे पता ही नहीं चला। ये सवालों भरी रात बीत चुकी थी और अब एक नयी सुबह का आगाज होना बाकी था। जिसमें शायद मेरे हर सवाल का जबाब शामिल था

सुबह के उगते सूरज की किरणे कभी हॉस्पिटल के पर्दों के साथ खेल-कूद करती तो कभी कांच के आर पार होते हुये अपनी रोशनी बिखेर देती है।

कभी हॉस्पिटल के लॉन वाले एरिया में खिलते गुलाबो पर पडती तो कभी किसी ओस की सफाक सी बूंद की तरह गुलाब की पंखुडियों पर ठहर जाती लॉन से सटे हुये वाले कमरे की खिडकी से होते हुये ये किरणे मेरे चेहरे पर भी पडी। और इस दौरान ही अचानक मेरी नींद टूटी और मैं हडाबडाहट में उठते हुये आई.सी.यू. के रूम की कांच वाली खिड़की से अंदर की झांकने लगा।

आई.सी.यू का रूम अभी भी अंदर से बंद था और वहां १ डॉक्टर और दो नर्स उस अंजान शख्स का चेकअप कर रहे थे। कभी डॉक्टर अपनी निगाह चार्ट सीट पे जमा लेते तो वहीं दूसरे पल उनकी नजर किनारे रखी मशीन पर उस मरीज की उपर नीचे होती सांसों पर ठहर जाती है। सारा कुछ मुआयना करने के बाद उन्होंने गौर किया उसकी हाथेलियों की उगलियां हिल रही थी और इस दौरान पैर की उंगलियां भी हरकत में आ गयी थी।

उस शख्स को अब होश आ चुका था। इस दौरान उस शख्स ने अपने चेहरे पर जैसे ही हाथ फैरा उसे अपना चेहरा पट्टियों से ढंका सा महसूस हुआ जिस वजह से वो शख्स कुछ देख नहीं पा रहा था। उसे अपने चेहरे पर असहनीय दर्द सा महसूस हो रहा था। जिसकी टीस से वो शख्स रह रह कर दर्द से कराह रहा था।

तब डॉक्टर ने उसे शांत रहने के लिये कहा और एक इंजेक्शन लगा दिया 15 मिनिट के अंतराल के बाद उसके दर्द की चीखे खमोशी में तब्दील हो गई। और उसे राहत सी महसूस होने लगी।

तब उस शख्स ने डॉक्टर से पूछा-मैं यहां कैसे ? ? मैं तो मेरे दोस्त के साथ था मुझे यहां कौन लाया ? ? मेरा सुनसान मोड पर ट्रक से एक्सीडेंट ? ?

कुछ याद करने की जद्दोजद में दिमाग पर जोर देते हुये कुछ कहने की कोशिश सी कर रहा था पर उसे कुछ याद नहीं आर रहा था।

तब ही पीछे से मेरी ओर बढते हुये कुमार ने अपने एक हाथ में पकडे चाय का कप मेरी ओर बढा दिया। और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुये मुझे चाय पीने का इशारा किया मैंने दो घूंट भर कर चाय पीते हुये उसे शुक्रिया कहा।

तब उस शख्स के केबिन से डॉक्टर बाहर आये। और कुमार से बोले-" देखिये मिस्टर कुमार इनकी हालत थोडी नाजुक है। आप इनके सामने कोई भी स्ट्रेस वाली बात ना करे। जिससे इनकी कोई नेगेटिव इफेक्ट पडे। और हां अब आप इन से मिल सकते हैं।"

कुमार - थेंक्यू डॉक्टर साहब।

कुमार तुरंत उस शख्स के कमरे गया। और उसके गले लगते हुये बोला - तू सही सलामत है यही मेरे लिये काफी है और मुझे माफ कर दे यार अगर मैं उस दिन तुझे इतनी ज्यादा शराब नहीं पिलाता तो ना तो हमारा एक्सीडेंट होता और ना ही तू इस हालत में पहुंचता।"

वो शख्स - कोई बात नहीं यार पर तू तो ठीक है ना तुझे तो कहीं चोट नहीं आयी ?

कुमार - हां बाबा मैं बिलकुल ठीक हूं। अब कसम खाता हूँ कभी तुझे शराब पीने के लिये जबरदस्ती नहीं करूंगा। बस तू जल्दी से ठीक हो जा और घर आ जा।

तब ही उस शख्स ने फुसाफुसाते हुये कुमार के कान में कहा-ये एक्सीडेंट तुम्हारी वजह से नहीं उस मनहूस लड़की की वजह से वजह से हुआ था!इसमें तेरी कोई गलती नहीं है कुमार।

कुमार - पर वो तो मर चुकी है ! फिर ऐसे कैसे इन सब में उसका हाथ हो सकता है ? वो तो तेरे गांव में रहती है ना ! फिर यहां कैसे आ सकती है ? जरूर तुझे कोई गलतफ़हमी हुई है ? तूने शराब के नशे में किसी और को देखा होगा ?

इस दौरान मैं भी उस शख्स के हालचाल पूंछने के उद्देश्य से उसके रूम में अंदर की ओर चल दिया और मेरे पीछे पीछे मोनिका भी चल दी और मेरे कदमों की आहट से दोनो चौकन्ने हो गये और इस दौरान मैंने देखा उस शख्स के हाथ घबराहट से कांप रहे थे। और वो कुमार से कुछ कहते कहते रूक सा गया था।

मैंने पूछा- क्या आप ठीक हो ? हैलो आई एम अश्विन और आप ?

तब उस शख्स ने मेरी तरफ हाथ बढाते हुये कहा- हां थोडा बहुत पर बहुत जल्द ही पूरी तरह से भी ठीक हो जाउंगा आपका बहुत बहुत शुक्रिया अश्विन आपने मेरी और मेरे दोस्त की मदद की और मैं मुंबई के पास के एक गांव से हूँ।

मोनिका के चेहरे की ताशोरात कुछ इस तरह से बदले मानो इस शख्स के साथ कोई बहुत गहरा सा तालुक्कात था। पर इन सब से परे वो यह समझ नहीं पा रही थी ये शख्स अजनबी होते हुये भी उसे अजनबी सा क्यों नहीं लग रहा था।

तब ही डॉक्टर साहब उनकी 2 नर्स और 1 वार्ड बॉय के साथ उसकी चेहरे के पट्टियां सीजर के थ्रो काटने के लिये आते है।

और इसलिये बाकी सब को रूम से बाहर जाने का बोलते हैं।

मैं और कुमार आई.सी.यू रूम के बाहर आ जाते है ! पर मोनिका वही खड़ी रहती है उसी आई.सी .यू रूम में और उसे अजीब तरह से देखती है।

धीरे-धीरे उस शख्स की पट्टियां परत दर परत खुलना चालू हो जाती है। तब मोनिका देखती है। सारी पट्टियां धीरे -धीरे खुल जाती है। उसके चेहरे पर अभी घाव के निशान ताजा रहते है जिससे उसका चेहरा अभी भी मोनिका नहीं पहचान पाती है पर उसके चेहरे को देख उसके जेहन में एक कडवी हकीकत तारोताजा हो जाती है।

उस शख्स के पास से बहुत तेज रोशनी आती है जिससे मोनिका को तकलीफ सी महसूस होने लगती है़ और वो आई.सी .यू रूम से बाहर आ जाती है। मोनिका को यूं घबराहट में जाता देख मैंं कुमार को पानी पीने का झूठा बहाना बना कर आई.सी.यू. रूम से कुछ दूरी पर स्थित मेन काउंटर के पास वाले रूम में चली जाती है। और उसके पीछे पीछे मैं भी चला जाता हूं जैसे ही मैंं काउंटर वाले एरिया में पहुंचता हुं तब नीचे की तरफ मेरी जैसी ही नजर जाती है। तब एक कागज हवा से उडते हुये मेरे जूते से आकर चिपक जाता है। मैंं जल्दी जल्दी उस कागज के टुकडे को अपने जेब में भरकर मोनिका से बात करने उसके पीछे जाता हूं और उससे पूंछता हूँ- तुम यहां क्यों चली आयी! तुम ठीक हो ?

मोनिका- कुछ नहीं बस ऐसे ही वहां बहुत अजीब सा महसूस हो रहा था। इसलिये यहां आ गई। तुम परेशान मत होना मैं बिलकुल ठीक हूँ।

मैंने कहा- हम्म!! कोई बात नहीं पर मोनिका मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूँ। ना जाने क्यों मुझे कुमार का दोस्त कुछ अजीब लगता है उससे बात करते हुये मुझे बिलकुल अच्छा फील नहीं हुआ

मोनिका- मुझे भी यह शख्स बहुत अजीब लगा। मैं जैसे ही उसके कमरे में अंदर गई मुझे भी वहां बहुत बैचेनी सी महसूस हो रही थी हो ना हो ऐसा क्यों लग रहा है जैसे मैं इसे बहुत पहले से जानती हूँ पर मेरे लिये यह तय करना मुश्किल है आखिर ये शख्स है कौन ?

तब मैंने वही परचा जो मेरे जूते के नीचे आ गया था। अपनी जेब से निकलते हुये पढ़ने लगा मैंने उस पर्चे पर एक मरीज जिसका नाम राहुल शर्मा लिखा हुआ था और इस शख्स के बिल पेमेंट के नीचे कुमार शर्मा लिखा हुआ था और यह मरीज उसी आई.सी.यू रूम में शिफ्ट था। जिसमें कुमार का दोस्त एडमीट था। और उसी पर्चे में राहुल शर्मा का एड्रेस भी लिखा हुआ था इस शख्स का होमटाउन और मोनिका का होमटाउन एक ही था। बसुरिया गांव जो मंजीत ढावे के पास स्थित था।

मेरे चेहरे के ताशोरात कुछ यूं बदले कि जिसे देखकर मोनिका भी एक पल के लिये सिहर सी गई।

उसने तुरंत मेरे हाथों से वो कागज लेकर खुद पढने लगी। तब उसने राहुल शर्मा का नाम देखा तो उसके रगों में एक साथ हजारों चिंगारियां सुलग उठी। पर मेरे बर्ताव को देख उसने किसी तरह अपने भावों पर काबू पाने की एक कामयाब सी कोशिश की। और मुझे शांत रहने के लिये कहा और वापस राहुल शर्मा के कमरे में जाने के लिये कहा।

दोनो तेज कदमों से वहां जैसे ही पहुंचे वहां उन्होंने देखा राहुल शर्मा की एक और मेजर सर्जरी हो चुकी थी जिसमें राहुल का चेहरा पूरी तरह बदल चुका था।

मैंंने खुद को जैसे तैसे शांत करने की कोशिश की पर मैंं नाकामयाब ही साबित हुआ। मेरे कदम कुछ पल के लिये ठिठक से गये और मैंं किसी सोच में डूब गया

"फिर तब ही मैं कमरे के अंदर गया और मैंने राहुल की कॉलर पकड़ते हुये पूछा, बोल तूने उस मासूम सी लड़की की जिंदगी क्यों बर्बाद की ? और मुझे मारने की कोशिश क्यों की ?

मैंने उसकी गरदन और तेजी से पकड़ ली और जिससे उसे सांस लेने में बहुत तकलीफ होने लगी तब ही कुमार राहुल की चीख सुनते हुये दौडते-दौडते राहुल के रूम में आया जोकि उसकी दवाईयां लेने के लिये पास के ही मेडिकल शॉप से लौट रहा था। वो मुझ पर लगभग चिल्लाते हुये बोला - छोडो उसको अश्विन। तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या ?और मेरे हाथ झटककर उसकी गरदन से हटा दिये इस दौरान कुमार के हाथ से सारी दवाईयां जमीन पर गिर गई। जिससे पूरे फर्श पर दवाईयों की गंध फैल सी गई। इस दौरान मैंने देखा अब राहुल ने हंफना बंद कर दिया था उसे चैन की सांसे लेता देख मुझे फिर एक बार गुस्सा आया और इस बार मैंने उसके बेड की साईड में रखी मशीन से उसका सिर फोड़ दिया जिससे उसके सिर पर से खून निकलने लगा और कुछ ही मिनिट में उसकी मृत्यु हो गई"

तब ही अचानक मोनिका ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा -अश्विन कहां गुम हो तुम ! सबसे पहले हमें यह कंन्फर्म करना पडेगा क्या ये वही हैवान है या कोई और !अश्विन तब तक तुम्हें अपने गुस्से पर काबू रखना होगा। सबसे पहले हमें इसके रूम और इसके पर्स की तलाशी लेनी होगी। मुझे यकीन है हमें कुछ ना कुछ सुराग जरूर मिलेगा। तब तक तुम्हें मेरी कसम अश्विन तुम कोई गलत कदम नहीं उठाओगे। वादा करो मुझसे !

मैं मन ही यही सोचते हुये अफसोस कर रहा था। काश थोडी देर पहले जो मैंने उस राहुल के साथ किया वो महज एक सपना ना होकर हकीकत होता काश मैं उसे उसके किये एक-एक गुनाह की सजा दे पाता।

पर मोनिका की कसम की खातिर मैंने अपना गुस्सा कडवे घूंट की भांति पी कर रह गया और फिर सोचते हुये बोला- ठीक है मोनिका जैसा तुम कहोगी मैं वैसा ही करूंगा।

और मैं और मोनिका मौके की नजाकत का फायदा उठाकर राहुल के रूम के अंदर चले जाते हैं। इंजेक्शन के डोस के चलते राहुल काफी गहरी नींद में सोया हुआ मिलता है। और कुमार किसी जरूरी काम के चलते बाहर चला जाता है। हॉस्पिटल में लंच होने की वजह से सिर्फ एक्का दुक्का स्टाफ ही मरीज के पास होते है बाकी सारे डॉक्टर और नर्स हॉस्पिटल की कैंटीन में लंच करने में मशगूल होते है। इसलिये राहुल के रूम के बाहर और अंदर सबकुछ एक दम सुनसान सा प्रतीत होता है।

मैं और मोनिका राहुल का सामान तलाश कर ही रहे होते है कि तब ही राहुल एक करवट बदलते हुये बाएं से दाएं दिशा में घुम जाता है। मोनिका और मैं एक पल के लिये घबरा जाते हैं पर राहुल की गहरी नींद की तसल्ली करने के बाद हम वापस से खोज बीन चालू कर देते है। तब उसके रूम में मेरे हाथों उसकी पासपोर्ट साईज फोटो वाला पर्स लग जाता है जिससे राहुल की आईडेंटिटी कन्फर्म हो जाती है।

साथ ही उसके एक्सीडेंट के कपडों में एक चमकीली सी वस्तु मिलती है। जो अपनी आभा बिखेर रही होती है। तब ही मैंं जैसे ही मोनिका को उसकी फोटो दिखाने के लिये उसके पास जाता हूँ।

तब ही मोनिका जैसे ही उस वस्तु के सम्पर्क में आती है उस वस्तु से एक बहुत ही तेज रोशनी निकलती जिससे उसे बहुत तेज से घबराहट होने लगती है और उसकी आंखो के सामने कुछ पल के लिये अंधेरी सी छा जाती है। और मोनिका चीख पडती है।

जिससे मैं गुस्से में आकर उस वस्तु को जैसे ही उठाकर बाहर फेंकने के लिये जाता हूँ तो उस चमकीली वस्तु की चमक ना जाने कैसे गायब हो जाती है। जिसे देखकर मैं बहुत हैरान हो जाता हूँ। और मैं वापस उस चमकीली वस्तु को मोनिका के पास लेकर जाता हूँ तो मोनिका को फिर से तेज घबराहट सी महसूस होने लगती है और उसकी चमक फिर बढ जाती है। फिर मुझे किसी के कदमों की कमरे की तरफ हल्की आहट सुनाई देने लगती है। तो मैंं तुरंत सारा समान वैसी ही जमा देता हूँ और वो चमकदार वस्तु वापस उन्हीं कपड़ो के साथ रख देता हूँ। मैंं और मोनिका उस आई.सी.यू रूम से जैसे ही बाहर निकल रहे होते है। कुमार मुझसे टकरा जाता है। और खुशी से मेरे गले लगकर कहता है। "फाइनली डॉक्टर कल सुबह मेरे भाई को डिस्चार्ज कर देंगे। यहां से और थेंक्यू सो मच अश्विन जी आपकी मदद के बिना मैं पता नहीं क्या करता ?"

मैंने पूछा-पर ये आपका भाई कैसे हुआ। ?आपने तो बताया था ये आपका दोस्त है ?

कुमार-नहीं नही अश्विन जी। ये मेरा दूर का रिश्तेदार है लेकिन इससे पहले ये मेरा बचपन सबसे अच्छा दोस्त है माफ कीजिएेगा उस समय सबकुछ इतनी जल्दबाजी में हुआ मैंं आपको बताना भूल गया।

तब ही मुझे वो सपने का एक भाग याद आता है। जिसमें मोनिका ने मुझे बताया था राहुल मुंबई के लिये उसके गांव की लोकल ट्रेन से अपने किसी रिश्तेदार के यहां निकल जाता है। मतलब वो रिश्तेदार कुमार और उसका परिवार ही है।

अब मेरा दिमाग पहले से ज्यादा खराब हो जाता है।

राहुल से ज्यादा अब मुझे खुद की गलती पर अफसोस होता है और जेहन में हजारों सवाल एक साथ चिंगारी की भांति सुलग उठते हैं।

क्या राहुल ने कार ड्राईविंग के समय उस सुनसान सडक़ पर जिस लड़की को देखा था वो मोनिका थी या फिर कोई और ? और क्या थी वो चमकीली वस्तु जिसके संपर्क में आते ही मोनिका को तेज घबराहट होने लगती थी।

जल्द ही मिलूंगी इन सवालों के जबाब के साथ।


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