Priyanka Kartikey

Thriller

2.9  

Priyanka Kartikey

Thriller

मोनिका-रहस्यमयी लड़की-तृतीय

मोनिका-रहस्यमयी लड़की-तृतीय

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दोस्तो कहानी के दूसरे भाग में आप सभी ने पढा, किसी तरह अश्विन मोनिका के बारे में पता करने की जद्दोजद में शहर से कुछ किलोमीटर दूर मंजीत ढाबे की ओर घनघोर अंधकार में चलते हुये एक लड़़की की लाश से टकरा कर औंधे मुंह गिर जाता है। आखिर कौन थी ये लड़़की? और क्या था इसके पीछे का रहस्य?


मैं अपने कमरे में टिफिन का वो डिब्बा लेकर आ गया था जिसमें मंजीत ढाबे का सिर्फ पता लिखा हुआ था। मैंने बिना किसी देरी के अपने रूम का लाईट बंद करके चुपचाप से किचन के रास्ते कोटेज के बाहर निकल गया।आस-पास से बहुत डरावनी आवाजें आ रही थी। कभी किसी के रोने की तो कभी किसी के जोर जोर से बिलखने की। मेरे लिये उस समय तय करना मुश्किल हो रहा था, क्या सच है और क्या झूठ? मैं बस खमोशी से आगे बढता चला जा रहा था। तब ही पीछे से किसी ने मेरा पैर पकड़ा और मैं ओंधे मुँह एक लड़की की लाश पर जा गिरा। गौर से देखा तो पता चला उसकी गर्दन पर हाथ के निशान थे। जिससे साफ पता चल रहा था उसका बुरी तरह शोषण करके किसी ने बेरहमदिली से उसका गला दबा दिया और उसका चेहरा सिर पर घने बाल की वजह से ढंका हुआ था। मैंने जैसे ही उसके बालो को कांपते हाथों से हटाया, उसका चेहरा देख सन्न रह गया।


मैं बयां भी नहीं कर सकता उस समय मेरी हालत डर से किसी भीगी बिल्ली से कम नहीं हो रखी थी, पर सच जानने के जुनून के सामने मेरा डर हार गया। मैं फिर एक बार खडा हुआ और चल पडा ढाबे की ओर। फिर जैसे ही पीछे मुडकर देखा ना तो वहां कोई लाश थी और ना ही कोई डरावनी आवाजें आ रही थी। तब मैंने राहत की सांस ली और

अब मैं तेज रफ्तार से चलते हुये मंजीत ढाबे तक पहुँच ही गया वहां के मालिक से मैंने उसकी तरफ फोटो दिखाते हुये पूछा "क्या तुमने पहले इस लड़की को देखा है?"


ढाबा मालिक हँसते हुये बोला, "आप कैसा मजाक रहे हो बाबू जी? आप किस तस्वीर की बात कर रहे हो? आपके मोबाईल की इस तस्वीर में तो कोई लड़़की नहीं है"


मैं- "अरे ठीक से देखो मजाक मैं नहीं तुम कर रहे हो"


तब ही मैंने उसके हाथ से फोन लेते हुये जैसे ही वो तस्वीर देखी मेरे होश फाखता हो गये

क्योंकि उसमें सचमुच कोई लड़़की नहीं थी। सिर्फ कोटेज के हाल का खाली हिस्सा दिख रहा था, जिसकी सीढ़िया हॉल से ऊपर के कमरे की ओर जा रही थी। मैंने मोबाईल की सारी तस्वीरे खंगाल डाली पर कुछ हाथ ना लगा। मैं एक पल के लिये सोच में पड़ गया। ऐसा कैसे हो सकता है। मैंने जब उस लड़़की की फोटो खींची थी तब तो मोबाईल में थी फिर ऐसे कैसे गायब हो गई।


फिर मैंने दुबारा से उसकी तरफ १०० का नोट दिखाते हुये मोनिका का हुलिया बताते हुये उससे पूछा "अच्छा तुम इस तरह की किसी लड़़की को जानते हो"


तब उसने कुछ सोचते हुये कहा, "बाबू जी शायद देखा है मैंने इस तरह की एक लड़़की को! यहीं पास के कस्बे में रहती थी पर कुछ दिनो से लापता है वो, शायद अच्छा ही कुछ नाम बताया था उसने"


मैंने कहा- "क्या उसने अपना नाम मोनिका बताया?"


ढाबे के मालिक ने हामी में सिर हिलाया।


मैं- "अच्छा आखिरी बार कब देखा था तुमने उसे?"


उसने कहा- "बाबू जी, कल रात ही मैंने इसे अपने ढाबे पर किसी अजनबी के लिये खाना ले जाते देखा था और जैसे ही मैं पैसे मांगने के लिये उसके पीछे गया, ये लड़़की परछाई की भांति गायब सी हो गई दूर दूर तक उसका कोई नामो निशान नहीं मिला। बहुत ढूंढा उसे पर कुछ हाथ ना लगा"


"और इससे पहले ये मुझे आखिरी बार २ महीने पहले दिखी थी। कुछ लड़़कों ने उसके साथ सड़क पर चलते हुये उसके साथ पहले छेड़खानी की फिर उसे अपनी गाड़ी में बैठाकर ना जाने कहा ले गये। उनमें से दो लड़के रोजाना मेरे ढाबे पर आया करते थे। बाबू जी शराब और कबाब रोज का ही काम था दोनो का"


"और उनमें से शायद एक का नाम समीर और दूसरे का नाम गौरव था"


इन दोनो में से एक यहां के जाने माने अमर पवार पार्क रेंजर के अफसर का बेटा है तो दूसरा यहा के पुलिस कमिश्नर की बिगडी औलाद है। इसी के चलते आये दिन अपनी मनमानी करते रहते है। ये दोनो और इनका एक और दोस्त है राहुल जो हर गुनाह में इनके साथ खडे़ रहता है।


पर बाबू जी आप यह सब क्यों पूँछ रहे हो

मैंने कहा- "कुछ नहीं बस एक अलसुलझी पहेली को सुलझाना है और ये लो तुम्हारा इनाम और हाँ मेरे बारे किसी को कुछ मत बताना"


मैंने १००-१०० के तीन नोट उसको थमा कर वापस कोटेज की ओर चलता बना और रास्ते भर यही एक बात सोचता आगे बढता चला जा रहा था "वो मेरा वहम नहीं था कहीं ना कहीं मोनिका की रूह जरूर मुझसे कुछ कहना चाहती है पर अगर मोनिका मर चुकी है तो वो जो कोटेज में लड़की है वो कौन है?"

और चुपचाप किचन के साईड वाले कमरे में वापस चला गया।


नींद तो जैसे मेरी आंखो से कोसो दूर थी पर इन सब कड़ियों को आपस में मिलाने की उधेड़बुन जाने कब मेरी आंख लग गयी पता ही नहीं चला।


सपने में मैं किसी और दुनिया में चला गया, जो किसी डरावने वाकया से कम न थी।

मुझे कोटेज के उपर की कमरे की ओर से किसी के चिल्लाने की जोर जोर से आवाजें आ रही थी। वही तीनों लड़़के दुबारा वापस आये थे। शायद सारे खिड़की दरवाजें बंद होने की वजह से वो लड़़की लीना कोटेज से भाग नहीं पायी थी और कानो में पड़ते उस लड़़की की बेबबसी से लिपटे हुये लफ्जों का शोर मेरे जेहन को रह रहकर कचोटे जा रहा था।


"प्लीज मुझे छोड़ दो मुझे जाने दो। मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है" बार बार इसी तरह के लफ्जों में उसकी हजारों बख्शियत की मिन्नतें थी।


और वही तीनो लड़के उसको जबरदस्ती पकड़कर नीचे की ओर गाड़ी में लेकर जा रहे थे। मोनिका बेतहाशा चीखें जा रही थी पर तीनों लड़कों पर कुछ असर नहीं पड़ा।

वो तो बस शराब की धुन में मस्त कोटेज के बाहर वाली सड़क से घने जंगल के बीचों बीचों बीच गाड़ी रोक कर मोनिका को जंगल की तरफ ले जाते है और उनमें से एक कहता है,


"साली तू हमारी कंपलेन करेगी पुलिस में, रूक तुझे अभी सबक सिखाता हूँ"


समीर जंगल की झाड़ियों में मोनिका को जबरदस्ती ले जाता है और वहां फिर एक बार उसका ना सिर्फ शरीरिक बल्कि मानसिक बलात्कार भी करता है।


तब ही पीछे से उसके दूसरे दोस्तों राहुल और गौरव की आवाज आती है, "भाई बस कर अब हमारे लिये भी कुछ छोड़ दे"


तब ही पसीने से लथपथ समीर गौरव और राहुल के पास आता है और वहीं दूसरी तरफ मोनिका वहां से खुद को किसी तरह संभालते हुये दर्द से कराहते हुये वहां से भागने की कोशिश करती है। तब ही गौरव उसके सिर पर दारू की खाली बोतल उसके सिर पर दे मारता है और मोनिका का सिर खून से लथपथ हो जाता है। तब राहुल उसे पकड़कर दो-चार थप्पड लगा डालता है।


"तू जानती नहीं है क्या हम यहां के रौबदार खानदान से है। फिर तूने जुर्रत कैसे की हमारे खिलाफ कंपलेन लिखाने की? आज तेरी सारी गरमी उतारता हूँ और उसको जबरदस्ती उसी झाड़ियों में ले गया।


मोनिका की आंखो से आंसू बहे जा रहे थे। वो मदद के लिये पुकार रही थी पर वहां कोई उसका हमदर्द न था जो उसकी मदद कर सके। तब ही फिर एक बार गौरव राहुल को आवाज लगाता है- "भाई अब मेरी बारी इसको सबक सिखाने की"

राहुल- "हां बस मेरा हो ही गया"


जैसे ही राहुल झाड़ियों से बाहर आता है, गौरव उस ओर लपक लेता है और फिर झाड़ियों से चीखने चिल्लाने की आवाजें खमोशी में तब्दील हो जाती है।


तब ही तुरंत समीर और राहुल भी झाड़ियों की ओर रूख करते है। गौरव दोनो को देख अपने कपडे पहन लेता है और कहता है- "यार इसने तो पूरे मजे भी नहीं लेने दिये और दम तोड़ दिया"


तब ही समीर और राहुल ने कहा "इसका जिंदा रहना खतरे से खाली नहीं है वरना हम तीनों जेल जा सकते है"


तब ही गौरव ने पहले उसकी गर्दन दबायी और जब तक उस लड़़की ने दम नहीं तोड़ दिया उसने अपना हाथ उसकी गर्दन से नहीं हटाया। इस दौरान ना जाने कितनी बार वो लड़़की झटपटाई थी जैसे बिना पानी के मछली। जब उसकी सांसे ठहर सी गई तब गौरव ने अपना हाथ गर्दन से हटा कर उसकी नाक के पास उसकी मौत की शिनाख्त के लिये लेकर गया। तब उसने देखा उस लड़की की सांसे पूरी तरह से थम गई थी और उस लड़़की का पूरा शरीर ठंडा पड चुका था। वो इस दुनिया से जा चुकी थीऔर पीछे छोड़ गयी तो सिर्फ वो नाखून के निशान जो गौरव की कलाई पर बन चुके थे और यही उसके अंतिम समय के संघर्ष की कहानी बयाँ कर रहे थे। फिर तीनों वहां से गाड़ी से फरार होकर घर की तरफ भाग लिये।


उन तीनों के जाते ही इत्तेफाक से वहां एक अघोरी आया मृत मोनिका की ऐसी हालत देख एक पल के लिये उसका कलेजा छल्ली सा हो गया। उसने अपनी दिव्यदृष्टि से सारी घटना का विस्तृत रूप देख लिया और आसमान की तरफ चिल्लाते हुये कहने लगा


"क्या हालत कर गये तुम हैवानों इस फूल सी बच्ची की। तुम्हारे एक -एक कर्मों का हिसाब होगा और यही लड़की तुम्हारा हिसाब किताब बराबर करेगी"


उसने अपनी मंत्र शक्ति का प्रयोग करके मोनिका की आत्मा को जगाया और उसे अद्भुद शक्तियां प्रदान की जिससे वो कभी भी इंसान का रूप धारण कर सकती थी। पर एक निश्चित समय तक ही ये दिन में ये शक्तियां काम करती थी रात होते ही वो आत्मा के रूप में बदल जाती थी। पर इसके साथ ही अघोरी ने एक बात और चेतायी थी, अगर तुमने अपना बदला पूरा करने से पूर्व किसी और से प्रेम संबंध किया तो तुम अपनी सारी शक्तियां खो बेठोगी क्योंकि प्रेम एक वासना होती है और ये श्मशानघाटीय शक्तियां वैराग्य पर ही आधारित होती है। इसलिये मेरी बात का विशेष ध्यान रखना और अगर तुमने इन सब चीजों को नजऱअंदाज किया तो तुम अपना बदला कभी पूरा नहीं कर पाओगी। इस मृत्यु और जीवन के मध्य फंस कर यही रह जाओगी।


तब मोनिका ने हाथ जोड़ते हुये अघोरी से विनम्र भाव में कहा "मैं आपकी बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ अघोरी बाबा। मैं आपकी बतायी हर बात का स्मरण रखूंगी"


एक शाम जब तीनों वेफिक्री की धुन में काली घनी रात में अपनी गाड़ी सड़क किनारे अपनी मदहोशी में चलाये जा रहे थे। क्योंकि तीनो पीये हुये थे जिस वजह उनकी गाड़ी हवा में उडती हुई किसी उडनखटोले से कम ना लग रही थी। उपर से सड़क इतनी ज्यादा सुनसान थी कि दूर दूर तक ना तो कोई बंदा था और ना ही उसकी जात। कुछ भी तो दृश्यवान नहीं था।


तब ही अचानक से एक काली परछाई उनके पास से इतनी तेज सराहट के साथ गुजरी कि समीर कार चलाते हुये थोड़ा सा सकपका गया। पर गौरव और राहुल भी साथ में थे जो उसकी हर छोटी बडी बात पर दांत दिखाकर हँस दिया करते थे। शायद इसलिये उसने कुछ ना कहना ही बेहतर समझा क्योंकि वो अपना मजाक नहीं बनाना चाहता था।


फिर मौसम के तैवर अचानक से बदलने लगे। बादलों की गडगडाहट, आसमान में चमकती बिजली, जानवरों की चींखें दूर दूर दराज से आती तूफानी हवायें के झोंके जो बार बार समीर के दिल में डर के रूप में दस्तक दे रहे थे। तभी पिछली सीट पर शराब के नशे में धुत राहुल को किसी ने इतना जोरदार थप्पड़ मारा कि वो चलती गाड़ी से ही गिर पडा। तब ही आगे की ओर बैठे समीर ने गाड़ी रोकने की नाकाम सी कोशिश की तो उसकी गाड़ी का स्टियेरिंग किसी दूसरी दिशा में ही घुम गया। गाड़ी के ब्रेक तो जैसे फेल हो गये। गाड़ी डगमगाते हुये खाई में जा गिरी, जो कि आधी सडक़ और खाई के बीच घड़ी के पेंडुलम की भांति झूल रही थी। समीर के चेहरे पर कार के शीशे छोटे-छोटे खंजरो की भांति धंस चुके थे, पर गौरव जो कि कार की सीट के पिछले हिस्से में लेटा था खुद को बचाने की कशमश में गाड़ी से कूद पडा़। समीर को बचाने के लिये हिम्मत बंटोरते हुये जैसे ही गाड़ी के पास गया, उसने देखा समीर का चेहरा बुरी तरह से खूनखून से लहूलूहान हो गया था। जैसे तैसे हिम्मत करते हुये उसने अपना हाथ समीर की पल्स चेक करने के लिये बढाया, उसके पूरे होश फखता हो गये क्योंकि समीर मर चुका था। उसकी सांसे पूरी तरह से थम चुकी थी। तब ही अचानक समीर ने डरावने हँसी हँसते हुये आंखे खोली और गौरव का हाथ पूरी ताकत के साथ पकड़़ लिया। उसकी आंखो मानो खून उगल रही थी और इस हद तक डरावनी लग रही थी कि देखने सुनने वालो का दम ही निकल जाये।


तब ही समीर के मुंह से बोल फूटे "हाह हहा तुम सब मरोगे। तुम से गिन गिनकर बदला लूंगी"


तब ही उस खाई के बीच लटकती गाड़ी़ ने अपनी रफ्तार पकड़ी। एक हाथ से समीर ने गौरव की गर्दन उसी का हाथ मरोड़ते हुये दबोच ली थी वही दूसरी और गाड़ी जाकर सीधे गहरी और घनघोर अंधकार स्वरूप खाई में अपनी मौत का फरमान लिये एक अलग ही रफ्तार लिये जाकर किसी बडे से पत्थर से टकराई। जिससे गाड़ी की पेट्रोल टंकी से पेट्रोल बहते हुये पूरी गाड़ी के इर्द-गिर्द फैल गया। फिर अचानक आसमान से बिजली चमकी और वो सीधे गाड़ी पर ठीक अर्जुन के तीर के जैसे बरपी। पूरी गाड़ी धू-धू करके जल गई और कुछ ही पल में समीर और गौरव की बॉडी किसी कबाबी मुर्गे की भांति सिक गई।


वहीं दूसरी ओर राहुल किसी चीज के डर से बेहताशा पागलों की तरह भागते-भागते कार के पास जा पहुंचा और वहां का सीन देखकर उसके रोंगटे खडे हो गये। तब ही उसे अपने पीछे किसी के होने का अहसास हुआ जैसे राहुल ने पीछे मुड़ते हुये देखा तो एक परछाई अपनी असली रूप में आ गई और जो कि एक लड़़की के रूप में खड़ी थी। बिखरे काले घने बाल चेहरे पर बने दरिंदगी निशान। राहुल को एक पल के लिये उसी के द्वारा किये गुनाह की याद दिला गये थे।


उस लड़़की के चेहरे से नफरत साफ-साफ झलक रही थी। इंतकाम का नशा उस पर हावी हो चुका था। जिसे देख राहुल थर थर कांपते हुये भागने लगा। तब ही अचानक उस लड़़की ने उसको हवा में उछालकर गेंद की भांति जमीन पर दे पटका। जिसके चलते राहुल के हाथ और सिर में बहुत गहरी चोट आ गई। पर फिर भी वो भागे जा रहा था। तब ही अचानक वो भागते भागते पास की ही एक काली मंदीर पहुंच गया। वो परछाई भी उसके पीछे पीछे पहुंची पर मंदिर में प्रवेश नहीं कर पायी।


शायद उसकी शक्तियां देवीय ना होकर श्मशान घाट की थी। जिस वजह से वो राहुल को मारने में असफल रही। तब ही राहुल भागते भागते मंदिर की ओर अंदर घुस गया।

वहां के पुजारी जी गहरी नींद में सो रहे थे पर राहुल की आहट सुन तुरंत नींद से जाग गये

और बोले- "तुम कौन हो? और इतनी रात को मंदीर में क्या कर रहे हो?"


तब राहुल डर से कंपकंपाती आवाज में बोला "पंडित जी मुझे बचा लीजिए वरना वो मुझे भी मेरे बाकी दोस्तों की तरह मार डालेंगी"


पुजारी जी बोले- "कौन मार डालेगी तुम्हें और क्यों? अच्छा ठीक है आज रात तुम यही रूक जाओ। फिर सुबह आराम से सारी बात बताना और ये लो माता के चरणों का धागा इसे अपनी सीधी कलाई में बांध लो। कोई बुरी ताकत तुम्हें छू भी नहीं पायेगीचलो अब तुम मंदिर के उस कोने में सो जाओ। इसके आगे सुबह बात करते है।


उस लड़़की की रूह रात भर उस मंदिर के परिसर के बाहर भटकती रहती है। पर सुबह होते ही गायब हो जाती है। शायद आरती और पूजा पाठ का शोर उसे वहां से जाने के लिये मजबूर कर देता है। सुबह होते ही राहुल बीती रात की घटना विस्तार से बता देता है।पर खुद की गलतियों पर पर्दा डाले रखता है। फिर पंडित उसके नाम के हवन की तैयारी करते है और उसमें राहुल को बैठने के लिये कहते है। हवन जैसे ही संपन्न होता है, उसे पंडित जी उसके गले में माता जी के त्रिशूल वाला हवन द्वारा अभिमंत्रित लॉकेट डाल देते है और उसे ये शहर छोड़ने की हिदायत देते है।


अगले ही पल राहुल अपने घर पहुंच जाता है और समान पैक करने लग जाता है। घर वालों के लाख पूंछने पर भी कुछ नहीं कहता है और चुपचाप मुंबई के लिये लोकल ट्रेन से अपने रिश्तेदारों के यहां निकल जाता है। वो लड़की सिर्फ खड़ी खड़ी देखती रह जाती है। उसके आंखों से आंसू निकल पड़ते है। जिनमें

अपने इंतकाम पूरा ना होने का, तो कभी अपनी लाचारी का, तो कभी अपने दर्द का एक ऐसा हिस्सा होता है जिसके हर वाक्ये में आखिरी पलों में अपनी जिंदगी से संघर्ष करती एक लड़़की की खौफनाक कहानी थी।


तब ही अचानक सपने मे मोनिका ने मुझसे कहा- "हां अश्विन मैं वही मोनिका हूं जिसने दो अपराधियों को उनकी गलती की सजा दी।

मुझे माफ करना अश्विन मैंं इन सब चींजों में तुम्हें शामिल नहीं करना चाहती थी। पर मैं तुम्हें सिर्फ देखते से ही पहचान गयी थी।

तुम्हें याद है तुम अपनी गर्लफेंड सुरभि से मिलने आया करते थे। तब मैं उन दिनों मुंबई सुरभि के घर आयी हुई थी। सुरभि मेरे मौसा जी की लड़की थी इसलिये हम बहनें आपस में हर बात शेयर करती थी। मैंने पहली बार तुम्हें नीली जींस और हल्की गुलाबी शर्ट में देखा था। तुमको देख मैं पहली नजर में ही प्यार कर बैठी थी, पर तुम सुरभि से बेइंतहा प्यार करते थे इसलिये मैं मुंबई से बिना तुमसे दिल की बात कहे वापस आ गयी।


मैं तुम से आज भी बहुत प्यार करती हूँ। सच कहूँ तो मरने के बाद भी मैं तुम्हें नहीं भुला पायी।


पर शायद मैं अब तुम्हारे लायक नहीं हूँ पर एक दोस्त की हैसियत से तुम्हारी मदद चाहती हूँ। क्या तुम मुझे अपने साथ अपने शहर ले चलोगे? मेरा एक और कातिल मुंबई में छिपा बैठा है। मुझे उसे ढूंढकर उसे भी उसके अपराध की सजा देनी है। अपना बदला पूरा करना है। मैं सुबह तुम्हारे जवाब का इंतजार करूंगी"


इतना कहकर मोनिका गायब हो जाती है और मेरी नींद तपाक से खुल जाती है। मैं पसीने से लथपथ घबराहट के मारे थरथर कांपने लगता हूँ।


दोस्तों क्या अश्विन को मोनिका की मदद करनी चाहिए? और क्या मोनिका सच में अश्विन से प्यार करती थी?


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