मोह के धागे
मोह के धागे
"जाने लोग कुत्ते क्यों पालते हैं ? सब गंद -संद, घर से लेकर पार्क तक में। अरे , ये भी नहीं सोचते की कहीं किसी को काट लिया तो उस बेचारे को कितने इंजेक्शन लगवाने पड़ेंगे। सोसाइटी वालों को कुत्ते रखना बैन कर देने चाहिए। "
अपने ये विचार शांता आँटी ने कभी भी नहीं छुपाये। जिन लोगों ने कुत्ते पाल रखे थे वे शांता आंटी से दूर ही रहते। सामने पड़ने का मतलब होता कुत्ता -पुराण सुनना।
पर कहते हैं न लंका तो कोई अपना ही ढहाता है।
ले आया उनका अपना बेटा घर में एक कुत्ता। उस दिन उनके घर से खूब हो -हल्ला सुनाई दिया। फिर कामवाली से पता चला कि बेटा, कुत्ते को घर पर ही छोड़ खुद किसी दोस्त के घर रहने चला गया है।
बेचारा कुत्ता -उसके बारे में सोच कर सब को बुरा लग रहा था। कहीं बेचारा भूखा प्यासा मर ही न जाए। आंटी तो उसका ध्यान रखने से रहीं। बेचारा नफ़रत भरी नजरों से ही जलकर ख़ाक न हो गया हो।
कुछ समय इसी उधेड़ बुन में बीता। आखिर रश्मी ने हिम्मत जुटाई। बिल्ली के गले घंटी बाँधने और उस निरीह कुत्ते को आंटी से ले कर स्वयं पालने का दृढ निश्चय लिए उसने आंटी के घर की घंटी बजा ही दी।
एक लम्बे इंतजार के बाद आखिरकार दरवाजा खुला।
"अरे रश्मी आओ- आओ " आंटी ने बड़े प्यार से उसे अंदर बुलाया।
"बेटा माफ़ करना दरवाजा खोलने में देर हो गयी। वो बिल्लू के लिए रोटी बना रही थी। उसे ताजा रोटियां ही पसंद हैं न। "
पहले तो रश्मी समझी नहीं , पर फिर सामने छोटे से चमकते काले बाल वाले भोटिया कुत्ते को दूध -रोटी खाते देख सब समझ गयी।
फिर क्या , आंटी ने उसे फिर पुराण सुनाया।
बिल्लू पुराण।
बिल्लू की समझदारी, साफ़ सफाई पसंदगी , आज्ञाकारिता -सब का वर्णन करते उनकी जुबान थकी ही नहीं।
उनकी कुत्तों के प्रति नफरत जाने कहाँ गुम हो चली।
अब तो बस वो सहर्ष, बिल्लू के मोह के धागों में उलझी जा रही हैं।