मनी प्लांट
मनी प्लांट
आजकल ऑफिस के कामों में दिन कैसे बीत जाता है उसे पता ही नहीं चलता। कितने ही प्रोजेक्ट्स में वह मेंबर है। आये दिन होने वाली ज़रूरी मीटिंग्स... फिर स्टाफ को ज़रूरी इंस्ट्रुक्शन्स... अब प्रमोशन के बाद वह सीनियर हो गयी है..वर्क प्रेशर तो बढ़ेगा ही न?
ऑफिस के बाद घर के काम...पति और बच्चों की आये दिन की फरमाइशें...फिर नेक्स्ट दिन की तैयारी...ऑफिस और घर में वह चक्करघिन्नी सी घूमती रहती है....
कुछ दिनों से ऑफिस में लोगों की निगाहें उसे अजीब सी लग रही थी। पहले तो उसने ध्यान ही नहीं दिया। लेकिन कुछ दिनों से उसके स्टाफ रूम में जाते ही खामोशी छा जाती थी....
एक दिन बॉस के साथ किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में कुछ बात हो रही थी। बॉस से मिलने कुछ लोग उनके केबिन में आये थे। उन दोनों को देखकर वे लोग निकल गए। लेकिन जाते जाते उनकी हँसी कितना कुछ कह गयी थी...सब कुछ जैसे आईने की तरह साफ हो गया था... उसके जाते ही स्टाफ रूम की अचानक होने वाली वह खामोशी और उन लोगों की अजीब सी निगाहें...
ओह !
तो ऑफिस के सारे लोग उसके और बॉस के बारे में बात करते है?
सारी बे सिरपैर वाली बातें...मतलब उसके प्रमोशन को लोग ग़लत तरीके से हासिल किया गया समझते है।
ओ गॉड !
घर में उसने पति से बात करनी चाही लेकिन वह अपने लैपटॉप में बिजी थे। और फिर उसे ख़याल आया कि न जाने वे इस बात को किस तरह से ले। बात फिर आयी गयी हो गयी।
लेकिन कुछ दिनों से पति महोदय भी कुछ ज्यादा ही बिजी नज़र आने लगे थे। खाने की टेबल पर उनकी सिर्फ हाँ ना वाली बातें थी। बच्चों के सामने होने वाली बातें...बस...दिखावटी बातें...
उनकी वह खामोशी नज़रअंदाज़ नहीं की जा सकती थी। ज़रूर कोई बात थी... डिनर के बाद जब बच्चे अपने अपने कमरें में चले गए तो उसने उनसे बात शुरू की। आमतौर पर शांत रहने वाले पति महोदय उसकी बात पर भड़क गये और न जाने क्या क्या कहने लगे। "जाकर अपने बॉस से ही बात क्यों नहीं करती हो। जिनके तुम आगे पीछे फिरती रहती हो। तुम्हें क्या लगता है कि मुझे कुछ पता नहीं होगा? तुम्हें प्रमोशन भी उन्होंने ही दिया है।"
वह अवाक हो गयी..उसकी काबिलीयत और हार्ड वर्क सब कुछ एक झटके में ज़ीरो हो गया...
वह सोचने लगी...लोग ऐसे भी होते है? घर के अंदर भी और घर के बाहर भी...हर जगह....इसी मेंटेलिटी के?
लेकिन यह इक्कीसवीं सदी है... यह औरतों की सदी है...हार न मानने वाली जुझारू औरतों की...बड़ी मुश्किलों से हाथ आयी आज़ादी की क़ीमत वह बखूबी जानती है।
उसे इन फ़ालतू बातों को हवा में उड़ाकर घर बाहर के दोनों मोर्चों पर लोहा लेना होगा और डटकर मुकाबला भी करना होगा...झट से उठकर उसने अपना लैपटॉप ऑन किया। कल की प्रेजेंटेशन की तैयारी के लिये....
