मंहगाई
मंहगाई
चुनाव से दो महीने पहले.....
मंत्री जी पैदल आए। गांव में चर्चा फैली कि मंत्री जी पैदल यात्रा पर हैं।
एक सज्जन - " वाह! मंत्री जी बहुत अच्छे हैं।हम किसानों के दुःख दर्द से वाकिफ है तभी तो पैदल यात्रा कर रहे हैं।"
दूसरा सज्जन - " हां! सही है वरना कौन मंत्री है जो पैदल यात्रा करे? हमें ऐसे ही नेता की आवश्यकता है।"
मंत्री जी के साथ काफी भीड़ शामिल थी। ग्रामीण चौगान में उनका भव्य स्वागत हुआ।
मंत्री जी - ( सम्बोधन )" किसान भाइयों! इस बार हम ऐसा कानून लायेंगे जो सिर्फ आपके हित में होगा। आपकी फसलों को दुगुने दामों में निर्यात किया जाएगा। अब कोई किसान भाई गरीबी में नहीं सोएगा।"
" मैं भी एक किसान का बेटा हूं इसलिए आप लोगों के हालातों से भलीभांति परिचित हूं।"
धन्यवाद!
जय किसान! जय भारत!
नारों के साथ सभा समाप्त हुई। नेताजी अगले गांव को चले गए।
एक महीने बाद........
मंत्री जी साईकिल पर आए।
सब लोग चौगान की ओर दौड़े।माला पहनाई गई और मंत्री जी ने पहली वाली बात फिर से दोहराई। हाथ जोड़े ! एक हरिजन के पांव पकड़वाए,हाथ मिलाया।
तालियां बजी ( गड़गड़..... )
मंत्री जी रवाना हुए। पांव पकड़ने वाली बात दूर दूर तक बहरे लोगों तक भी पहुंच गई ।
चुनाव के दिन......
लोगों ने साईकिल के निशान पर भारी मतों से मंत्री जी को विजयी बनाया। ग्रामीण लोग खुश थे कि उनका चुना हुआ नेता ही विजेता घोषित हुआ है अब तो हमसे किए वादे निभाएगा। मंहगाई खत्म होगी।
इस आशा में....... दिन बीते, महीने बीते और साल भी बीत गए, मंत्री जी का कोई अता-पता नहीं। मंहगाई ज्यों कि त्यों रही बल्कि तेल,चावल, गेहूं और पेट्रोल डीजल के दामों में बढ़ोतरी हुई। किसानों को अपनी साइकिल तक बेच देनी पड़ी।
सालों बाद दोबारा चुनाव आए.......
नेताजी आए अपनी नयी गाड़ी में! भोली जनता को फिर से गुमराह करने। इस बार अलग मंत्र फूंके गए। ग्रामीण बिना चप्पल और फटे कपड़ों में इकट्ठे हुए। उनकी साईकिलों के लोहे से मंत्री जी की गाड़ी बनी थी।
सम्बोधन..... जय घोष हुआ।
मंत्री जी ने प्रस्थान किया परन्तु.... उनकी गाड़ी से उड़ती धूल में अभी भी एक नारा गूंज रहा था.....
" स्वरोजगार अपनाएंगे।
मंहगाई दूर भगाएंगे। "