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Rohtash Verma ' मुसाफ़िर '

Children Stories Classics Children

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Rohtash Verma ' मुसाफ़िर '

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बिटिया दिवस

बिटिया दिवस

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सर्द के छोटे दिन और बरसती ठंड सबको रंग बिरंगे कपड़ों में शामिल किए थी।

आज बिटिया दिवस पर देश भर में स्कूली समारोह का आयोजन किया गया था।

हर तरफ फूल की पत्तियां बिखरी हुई तथा स्टेज को बड़े मनोरम ढंग से सजाया गया था।

हमारे स्वास्थ्य मंत्री जी बालिकाओं के उज्ज्वल भविष्य के लिए उन्हें हर क्षेत्र में आगे बढ़ने को अभिप्रेरित करने वाले ओजस्वी भाषण दे रहे थे।

सुनने वालों की संख्या काफी अधिक थी इसलिए तालियों का शोर अपने चरम पर था।

( सम्बोधन...)

" आजकल हमारी बेटियां अंतरिक्ष में अपना परचम लहरा रही है इसलिए ऐ समाज के पढ़े लिखे साथियों! बेटियों को शिक्षा से वंचित मत रखो उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने दो।"

मंत्री जी लगातार एक सांस में धांय धांय बोले जा रहे थे।

बेटियों के नाम के नारे लगाए जा रहे थे....

"देश में उन्नति का फूल खिलेगा।

बेटियों को जब बराबर सम्मान मिलेगा।"

"भ्रुण हत्या पर रोक लगाएंगे।

बेटियों को सब मिलकर बचाएंगे।"

बिटिया दिवस का यह समारोह सम्पन्न हुआ और मंत्री जी अगले स्कूल समारोह में जाने के लिए गाड़ी में रवाना हुए।

रोहन और उसके दोस्त भी मंत्री जी बातें दोहराते हुए घर को चले।

बचपन की इस टोली का गांव 5 किलोमीटर दूर था इसलिए चलते चलते शाम ढलने को आयी थी।

हंसते खेलते और नारे लगाते वो जा रहे थे कि तभी उन्हें नन्हे बच्चे के रोने का स्वर सुनाई दिया।

ठहरो! 'अरे देखो उस तरफ से किसी के रोने की आवाज आ रही है।'

"चलो चलकर देखते हैं।"

बचपन की टोली भागकर वहां गयी और देखा कि एक बिल्कुल नवजात शिशु कपड़ों में लिपटा झाड़ियों में रो रहा था।

अरे!देखो कोई बच्चे को झाड़ियों में फेंक गया है।

रोहन धीरे धीरे चुभे कांटो को निकाल कर उसे बाहर लाया।

'यह तो बच्ची है' मोहन चिल्लाया

अरे हां यह तो छोटी सी बच्ची है।

हां... हां कितनी प्यारी बच्ची है, पता नहीं कौन इसे यहां इस हालत में फेंक गया है?

बचपन की वो टोली क्या जाने इस पढ़े लिखे समाज की कथनी-करनी।

"चलो हम इसे अपने घर ले चलते हैं और अम्मी को दिखाते हैं।" रोहन ने कहा।

सभी जल्दी जल्दी घर की ओर दौड़ चले..…किन्तु

मंत्री जी के ओजस्वी भाषण अभी भी उस झाड़ियों में शोर मचा रहे थे।


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