पश्चाताप
पश्चाताप
"कैसे हो बेटा"? विनीता ने विनम्रतापूर्वक पूछा।शरत ने सुनकर भी अनसुना कर दिया।
आज दो वर्ष बाद शरत घर आया था किसी कंपनी से नहीं बल्कि नशामुक्ति केंद्र से शर्तें लेकर।
16 साल की छोटी उम्र का शरत बुरी संगत में आकर किताबों से रूख़ मोड़ चुका था। अब उसे बस नशे की भूख ही खाये जाती थी।
शरत पढ़ाई में काफी होशियार था मगर वह इस रास्ते पर कैसे गया कौन जाने?
वह बिना कुछ खाए-पिए कमरे में जाने लगा तो वंशीधर (पिता) ने टोका- " क्या बात है ? इतने दिनों बाद घर लौटा है अपने माता-पिता से बात भी नहीं की, कुछ सुधार लाया है या वैसे ही है।"
" देखो बेटा! हमने तुम्हारे ही भले के लिए तो यह सब किया है ताकि तुम कुछ अच्छा कर सको।"
शरत को उनकी बातें कांटे की तरह चुभ रही थी। वह मन ही मन क्रोध में जल रहा था क्योंकि उसका विवेक केंद्र की दीवारों से टकरा के चुर चुर हो गया था।
सच ही है क्रोध में व्यक्ति अपनी सुझबुझ खो देता है उसे अच्छे-बुरे का ज़रा भी ध्यान नहीं रहता और ऐसी गलती कर बैठता है कि उसका पछतावा करने पर भी कोई लाभ नहीं होता।
ठीक ऐसा ही हुआ शरत के साथ। रात के 1 बज रहे थे और जगत का प्रत्येक जीव सोया हुआ था तब शरत उठा और आवेश की ज्वाला में जलता हुआ कुल्हाड़ी लेकर मां-बाप के कमरे जा पहुंचा। वह नहीं जानता था कि जो करने जा रहा है वह मनुष्य जीवन का सबसे घोर अपराध व महापाप है।
कुल्हाड़ी के वार से उसने सोते माता-पिता को बहुत बुरी तरह काट डाला और छोटे भाई पर हमला बोल दिया।मगर जब उसका क्रोध ठंडा हुआ तो देखा कि कमरे में खून ही खून बह रहा है।वह घबरा गया और रोते हुए सिर पकड़ कर बैठ गया।
आज उसने जो किया वैसे ही हजारों हत्याएं हमारे देश में नशे की लत से हो रही है क्योंकि देश का बच्चा-बच्चा नशे का शिकार हो रहा है।
जेल में बैठा शरत अपने पश्चाताप में भीगी घास की तरह जल रहा था।
पंक्ति-
अब पछताय होत क्या?
जब चिड़िया चुग गई खेत।
