Sarita Kumar

Fantasy

3  

Sarita Kumar

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मंगल ग्रह की यात्रा

मंगल ग्रह की यात्रा

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280


काश्मीर की हसीन वादियों में घूमते घूमते लद्दाख के ठिठुरन भरी सर्द रातों में दुबके हुए सैकड़ों दिन बीतने के बाद एक बेहद उदास नीरस भरी अमावस की रात को ख्याल आया क्यों न चल पड़ूं किसी दूसरे ग्रह पर। यह ख्याल आते ही, पहला विचार चांद पर जाने का हुआ। चांद की सैर लगभग सभी ने किया है हजारों लाखों करोड़ों प्रेमी प्रेमिकाओं ने अपने प्रिय के साथ चांद तक का सफ़र किया है। बेहद रूमानी और रोमांचक यात्रा रही है उनकी। करोड़ों कविताएं, गीत और ग़ज़ल लिखी गई हैं। मगर चांद कोई ग्रह नहीं है बल्कि एक उपग्रह है इसलिए चांद पर जाने का इरादा त्याग दिया। मंगल ग्रह पर जाने का मन बनाया है। याद है मुझे जब हाॅस्पिटल से डिस्चार्ज होकर घर आई थी तो कुछ ही दिनों बाद अक्षय कुमार और विधा बालन की मूवी आई थी "मिशन मंगल"। बच्चों ने टिकट और कैब बुकिंग करके मुझे सुचित किया था। आनन-फानन में तैयार होकर सिनेमा हॉल पहुंची थी। बड़ी अजीब अजीब सी अनुभूति हो रही थी। दस साल बाद सिनेमा हॉल में जाकर मूवी देख रही थी और 26 साल के शादी सुदा जीवन में यह पहली मूवी थी जब सिर्फ हम दोनों मूवी देखने गए थें। होना तो यह चाहिए था कि हाथों में हाथ डालकर मूंद लेती आंखें और खो जाती कल्पनाओं की हसीन दुनिया में बादलों के पार पहुंच जाती अपने पिया के संग एक संतरंगी दुनिया में मगर ऐसा कुछ महसूस नहीं हुआ। और मैंने मोबाइल निकाल कर बच्चों को थैंक्स लिखा और अपने अजीज़ मित्र को लिखा कि अपनी जिंदगी की सबसे बेहतरीन मूवी देख रही हूं। जवाब में मूवी का नाम पूछा गया और हिदायत दी गई की "इतने सालों बाद पहली बार एकांत मिला है इन लम्हों का लुत्फ उठाओ .... बंद करो मोबाइल और भरपूर जीओ, सोचो बस तुम दोनों हो वहां और कोई तीसरा नहीं।" वास्तव में घुप्प अंधेरा है कहां कुछ दिखाई दे रहा है बस महसूस हो रहा है ....। मोबाइल तो बंद कर दिया नहीं तो डांट भी पड़ सकती थी। मगर मन की उड़ान को कौन रोक सकता है भला ...। मैं उड़न खटोला में बैठकर उड़ चली मंगल ग्रह पर। अपने तीन बच्चों के अलावा स्कूल के तमाम स्टूडेंट्स के साथ। छोटी सी आशा, रमण, भारती, पुरन, अंकेश, लोकेश, शक्ति, हिना, पूनम, मनीष और भी वो तमाम बच्चे जो फीरोजपुर और दिल्ली के स्कूल में मेरे साथ थें। बेहद रोमांचक थी मेरी मंगल ग्रह की यात्रा। अपने दो सौ बच्चों के साथ जब मंगल ग्रह पर पहुंची तब देखा वहां हमारे स्वागत के पूरे इंतजाम थें। मन में बैठी पूर्वानुमान के विपरीत वहां बहुत सामान्य स्थिति थी। सब कुछ बहुत व्यवस्थित और सुंदर दिख रहा था। बस मिट्टी कुछ लाल लाल सी थी, हवाएं मद्धिम मद्धिम चल रही थी गुलमोहर के पेड़ में फूल भी खिलें हुए थे। मैंने सबसे पहले पैक्ड खाना बच्चों में बांट दिया और तीन कप कड़क चाय बनाई एक कप बिना शक्कर का निकाला और शक्कर मिलाकर सुस्ताने के लिए बच्चों से थोड़ी दूरी पर बैठी। आगे की योजनाएं बनाई गई। दो दिन के ट्रिप में ढेरों यादें बटोरनी है मुझे और कुछ यादगार तस्वीरें भी लेनी होगी धरती पर लौटकर सभी को दिखाना भी तो है। आखिर हमने बहुत मुश्किल काम को अंजाम दिया है। मंगल ग्रह पर पहुंच कर चाय पीना एक अद्भुत अनुभव था। इतना ही नहीं अपने स्कूल के दो सौ बच्चों के साथ कबड्डी, बैडमिंटन और लूडो खेलने की ख्वाहिश को पूरा करना था। मंगल मिशन से भी अधिक बड़ा मिशन था। वैसे भी मैंने अपने जीवन में हमेशा मुश्किल काम ही चुना है।जो आसानी से हासिल हो जाए उसमें आनंद कब मिला है मुझे ? मुझे तो आम लोगों से हटकर कुछ अलग करने का जूनून रहा है। खतरों से खेलना मेरा पैशन रहा है। खैर ... बातें धरती पर लौटकर करूंगी। अभी तो इन दुर्लभ दृश्यों को क़ैद करूं कुछ कैमरा में और कुछ 560 मेगापिक्सल वाली अपनी आंखों में .... बच्चे बेफिक्र होकर खेल रहें हैं सुनसान विरानी उन्हें भयभीत नहीं कर रही है। अलग-अलग समूहों में खेल रहें हैं कुछ बैडमिंटन, कुछ कैरम और कुछ लूडो, आशा कोई गीत गुनगुना रही है। भारती एक ड्राइंग बना रही है शायद वो मेरी ही तस्वीर होगी क्योंकि एक टक मुझे ही घूर रही है। पूरन कुछ लिख रहा है शायद कोई कविता या कहानी। इशू को भुख लग गई उसे भेलपुरी चाहिए, अंकेश को आम का आचार। प्योली को बेतहाशा हंसी आ रही इन बच्चों की फरमाइश पर ... लेकिन मुझे अच्छा लगा बच्चों के मन में इस विश्वास को देखकर उन्हें यकीन है उनकी मां चार दिन के मंगल ग्रह की यात्रा पर भी आम का आचार और भेलपुरी उपलब्ध करा सकती है। बच्चों के पापा की भृकुटी तन गई और यह देखकर मिस्टर इंडिया असहज हो गए। मगर हर विपरीत परिस्थितियों में सहज रहने वाली प्योली ने मुस्कुराते हुए परोसा भेलपुरी सभी के लिए और दो टुकड़ा आम का आचार जो दोनों अंकेशों के लिए लाई गई थी। दोनों जुड़वां भाई नहीं थे मगर दोनों की पसंद एक जैसी थी। भेलपुरी खाते हुए दो चार तस्वीरें ली गई। इशू ने भेलपुरी में से मुंगफली चुन चुनकर निकाल लिया आदतन कोको के लिए मगर .... कोको तो आया ही नहीं । यहां इनसानों की जिंदगी ख़तरे में पड़ सकती थी ऐसे में हम अपने पालतू पशुओं को कैसे लाते? 

काफी अच्छा वक्त गुजर चुका था। दो दिन बिताने के बाद लौटने की तैयारी करनी थी। हमने ढेरों तस्वीरें ली थी। यहां से ले जाने के लिए और कुछ नहीं था। बस थोड़ी सी लाल मिट्टी और कुछ बूंदें पानी बस .....। आंखों में भरने के लिए अद्भुत अनोखा दृश्य ....। सभी अच्छी बात तो यह हुई कि मेरा असंभव लगने वाला सपना सच हुआ था। मेरे साथ मेरे पति, निजी बच्चे और मेरे स्कूल के सभी बच्चे थे। इससे अधिक खुशहाली और क्या हो सकती है .....? अपने जीवन की सबसे खुशनुमा, रोमांचक और यादगार यात्रा रही मंगल ग्रह की यात्रा। कुछ बच्चों ने तो अभी ही लिख डाली अपनी यात्रा वृत्तांत। मैं तो बस इस खूबसूरत नज़ारा को पी लेना चाहती हूं। जी लेना चाहती हूं इस अद्वितीय यात्रा के अनुभव को सुखद संस्मरण बनने से पहले।


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