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मन की आंखें

मन की आंखें

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"शिखा तुम्हारे टैलेंट की दाद देता हूँ, मैनजमेंट और कस्टमर को कितनी आसानी से अपनी बातें समझा लेती हो."

"थैंकयू सर.अब मैं चलूं...कुछ जरूरी रिपोर्ट भी मुझे तैयार करने हैं."

"बैठो,इसी बात पर एक एक कॉफ़ी हो जाये..."

"सर पी तो सकती थी पर एक अर्जेंट पेपर तैयार करना है…"शिखा अपने बॉस के वहसिपना को जानती थी.हर बार की तरह इस बार भी किसी तरह से अपने आप को बचा लिया था.आये दिन कोई ना कोई आफर बॉस शिखा को देता रहता.कभी पार्टी का बहाना तो कभी पिकनिक और कभी किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले से बाहर जाना.आफिस से संबंधित जितनी भी ड्यूटी होती शिखा बखूबी निभाती पर जब बात बाहर जाने या मौज मस्तियों का हो तो घर परिवार का हवाला दे स्थितियों को टाल जाती.

आज जब पदोन्नति का लिस्ट आफिस के नोटिसबोर्ड पर लगा तो उसमें शिखा का नाम नहीं था. उसे उसके बॉस की चालबाज़ी समझते देर ना लगी.जब तक वो अपने इस सदमें से बाहर निकलती...दूसरे नोटिस पर भी उसकी नज़र गई...

"श्रीमान (बॉस का नाम),आपको आपके दुराचार(misconduct) हेतु नौकरी से हटाया जा रहा है."

उसी के ठीक सामने के दीवार पर लिखी इन पंक्तियों को देख शिखा मुस्कुरा रही थी_ "मन की आंखों पर विश्वास करो जीवन में यही आपको सही रास्ता दिखाता है."


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