तूफान
तूफान
"बेटा, तीन दिन हो गए बहू को गए हुए। ना कोई खोज, ना खबर???"
"जाने दो ना माँ। पानी सिर से ऊपर चला गया था।अब नैना को जहां जाना हो वो जाए।"
"अरे बेटा ! वो हमारी बहू है , वो भला कहां जाएगी।"
"माँ ,ये आप ऐसा सोचती हैं ना।परन्तु नैना कुछ और ही सोचती है।तंग आ गया था उसके अपने परिवार और दोस्तों की प्रशंसा सुनते सुनते।"
"समय का और इंतज़ार नही कर सकता। ना तुम उसकी अच्छी सास और ना ही मैं अच्छा पति बन पाया।"
"ये भी बात सही है कि हम उसकी नादानियाँ भी समझते हैं और फिर उससे प्यार भी करते हैं।"
"तो फिर ऐसा फैसला क्यों???"
"माँ समझा करो।"
"हम अपने प्यार के लिए उसकी जिंदगी तबाह तो नहीं कर सकते ना, वैसे भी घर में तो अशांति ही तो छाई रहती थी।"
"अब मैं क्या कहूँ।। जैसा तुम ठीक सोचो बेटा।"
तभी फोन की घंटी बजी।
"हैलो, नैना बोल रही हूँ। तुम सुन रहे हो ना मेरी बात। अजय मुझे प्यारी हवाओं के झोंकों की आदत है, ये मुझे किस तूफान में झोंक किनारे लग गए हो। मुझे तुम लोगों की आदत है, मैं ऐसे में जी नहीं पाऊंगी। तुम आते क्यों नहीं। मुझे अपने और तुम लोगों के प्यार का अंदाज़ा ना था । आये तूफान को तुम्हीं टाल सकते हो। सुन रहे हो ना मेरी बात। हैलो। हैलो।"