फाल्गुनी रंग

फाल्गुनी रंग

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"चाची कात्यायनी को मैं ले जा रहा हूँ....."

"ठीक है....

पर ध्यान रखना. कहीं गिर ना जाए....

कोई धक्का ना देदे इसे...

ठीक से रोड़ पार करना..."

रमा चाची का इतना कहना रोज की ही तो बात थी और इधर सृजन का भी रोज का नियम... कात्यायनी को अपने संग स्कूल ले जाना, उसे खेलने ले जाना और हर बात में उसके साथ होना।

सृजन अपने परिवार का इकलौता संतान था। कात्यायनी अपने परिवार की इकलौती बेटी जो देख नहीं सकती थी। न कात्यायनी और उसके परिवार से सृजन का बचपन से ही एक अजीब सा था। दसवीं के बाद उसे पिता के स्थानांतरण से शिमला जाना पड़ा था। जाते हुए वह बहुत रोया था। जिस परिवार के साथ अपना पूरा बचपन बिताया उसे भला छोड़ कर कौन जाना चाहता, खैर....

पर्व त्योहारों या ऐसे भी कभी खोज खबर लेने के बहाने बातें होती रहती थीं। जैसे-जैसे कात्यायनी बड़ी होती जा रही थी परिवार वालों की चिंता भी बड़ी होती जा रही थी। अब सृजन इंजीनयर बन गया है और उसे अपने पुराने शहर को जाना है। उसे ख़ुशी इस बात की थी कि वह कात्यायनी और उसके परिवार से लंबे अरसे के बाद फिर से मिल पायेगा।

आज होली का दिन ....सृजन कात्यानी के घर .....हाथ में गुलाबी गुलाल.....

कात्यायनी हरे सूट और पीली चुनरी ओढ़े, उसके

ख़ुशी की सीमा नहीं। सृजन ने चाचा-चाची के पाँव पर गुलाल रखे। बातों का सिलसिला शुरू हुआ और चाची की चिंता व्यथा भी।

"चाची सब अच्छा होगा।" सृजन चाची को लगातार समझाने की कोशिश में पर भला वो क्यों समझती।

"क्या अच्छा होगा ? कौन करेगा इससे विवाह, भला ? क्या तुम ऐसी लड़की से विवाह करना चाहोगे ?"

होली ने आज जैसे माहौल को फाल्गुनी रंगों से सराबोर कर रखा हो और कात्यायनी इस माहौल में दुल्हन सी आभा बिखेर रही हो.....

सृजन ने तभी कात्यायनी का हाथ अपने हाथों में लिया और तत्काल ही अपने हाथों में रखे गुलाबी गुलाल को उसकी उसकी मांग में भर दिया।

"दीजिये मुझे आशीर्वाद कि मैं कात्यायनी के लिए एक अच्छा पति साबित हो सकूँ।"

वाकई में फाल्गुनी रंगों का ऐसा कमाल....

कभी सोचा ना था।


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