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Jeetal Shah

Abstract Inspirational

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Jeetal Shah

Abstract Inspirational

मन का डर

मन का डर

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जुझ रही थी जीत कई महिनों से, अपने आप में खोई हुई ओर डरी हुई। मुस्कुराते चेहरे के पीछे दर्द इतना छुपाए हुए। बाल झड़ ने लगे थे । शरीर कमजोर हो रहा था , मानो जैसे जैसे दिन बितते सांसें कम होती जा रही थी। 

एक झिझक सी थी कहीं । बहुत सारे मन में सवाल उठ रहे थे। क्या करें क्या न करें? आंखों के सामने जैसे सब अंधेरा छा गया हो। मन में बहुत ही हिचक थी ।

कहते हैं भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। एक बड़े डाक्टर हमारे शहर में, आए जीत के सारे रिपोर्ट दिखाएं हमने। तब डाक्टर बोले जीत बिल कुल ठीक हो जाएंगी। यह केंसर मामूली है। आप एकदम चिंता मत कि जीए । 

बस तब एक उम्मीद की किरण नजर आईं। हम ने केमोथेरेपी शुरू कर दी। देखते ही देखते दीन बीतने लगे , शरीर में जान आने लगी। दवाई ने अपना कमाल दिखा दिया। साथ में दुआ सब की। रीना जीत के लिए एक बीज लाई दुबई से। बुदेन नाम था उसका। बस उसे रोज रात को भींगा कर सुबह उसका पानी पीना था। 

 कुछ ही महीनों में असर दिखने लगा। नए बाल आने लगे, खुन भी अच्छा बनने लगा। शरीर में एक अलग ही ताकत ही आने लगी। मन के सारे डर भाग गए। मानो जैसे सूरज के सामने से बादल से हट गए जैसे की मेरे मन की हिचक।


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