मजदूर दिवस
मजदूर दिवस


लाॅकडाउन में फैक्ट्री बंद तो थी ही। परिवार के सभी लोग घर में इकट्ठे बैठते तो थे किन्तु चिंता की लकीरें सबके चेहरे पर होती थी, फैक्ट्री नुकसान में जो जा रही थी।
दादा बनवारी लाल ने पोते से एकांत में कुछ गुफ्तगू की। फिर पोते ने मैनेजर को फोन पर कुछ आदेश दिया।
इधर हरिया फोन पर मैनेजर से बात होने के बाद मुस्कुराए जा रहा था।
रधिया से रहा नहीं गया।
पूछ बैठी"ऐ मुनिया के बापू ! केकर फोन रहे ?"
हरिया"मैनेजर के।"
"का कहे रहे कि ई बार पैसा नाही देत ?"
"अरे नाही,
नाही।....अबकी बार दू हजार बेसी दे रहल हई हम सब मजदूरन के।"
"आंय !"
"हूंउंऊं ....कहे रहे जे कल्ह मजदूर दिवस हई। ......ईहे खातिर हमरा सबके सम्मान में बेसी पैसा दे रहल हई।"
रधिया अचंभित होकर-"ई दिवस "जनता करफू' के जैसन ही कछु हई की ?"
"का मालूम हमहऊं त पहलई बार सुनल हई।"
इधर दादा बनवारी लाल जी मन ही मन सोच रहे थे 'ये पूर्वज की धरोहर अपनी फैक्ट्री फिर से शिखर चूमेगी। अब मुझे कोई चिंता नहीं है, क्योंकि हमारी भावी पीढ़ी को मुसीबत में ही सही किन्तु मजदूर की अहमियत समझ में आ गयी है।'