हम आवारा नहीं हैं
हम आवारा नहीं हैं
हम आवारा नहीं हैं
"सुनो ! लोग बहुत स्वार्थी हैं।" एक ने दूसरे से कहा ।
दूसरे ने "क्यों, क्या हुआ ?"
" गाय दूध देती है न, इसलिए उसे तो घर में बिठाकर ( बिना काम-धाम के ) खाना खिलाते हैं और हमसे हाड़ तोड़ मेहनत करवाते हैं।" जवाब दिया पहले ने।
दूसरा "धन्यवाद दे हमारे मालिक को, जो हमसे काम भले लेता है, किन्तु घर में तो रखता है और ढंग का चारा तो देता है।"
"हेंss...क्या मतलब ?" पहला आश्चर्य से सवाल किया ।
दूसरा "अरे, बहुत लोग हम जैसों को घर में ही नहीं रखते । छोड़ देते हैं दर-दर भटकने के लिए। जो पेट भरने के लिए यहाँ-वहाँ भटता रहता है और मजबूरन कागज, प्लास्टिक आदि खाना पड़ता है ।"
"बात तुम सही कहते हो दोस्त और हम आवारा भी नहीं कहलाते।" फिर दोनों बैल चारा खाने में मस्त हो गए।