प्रतिभा
प्रतिभा
"तुम आ जाओ, रुचि की जगह। आज रुचि नहीं आयी है।" मैडम ने कहा तो मैं बैग रखकर पहुँच गई क्योंकि हमारी बस आने में अभी देरी थी।
'अजी मोती तोड़ो बाग में ...................' गाना शुरू हो गया और हम सब लड़कियां नृत्य शुरू कर दिए।
मैं पहली बार नृत्य में थी।
अभ्यास खत्म होते ही मैडम जी ने मुझसे कहा --"सुनो रुचि के स्थान पर तुम रह जाओ। तुम बहुत अच्छा कर रही हो।"
"नहीं मैम मैं नहीं रह सकती। मेरी बस छूट जाएगी। मैं यहाँ नहीं रुक सकती।"
"अरे, दो-चार दिन की ही बात है। कोई व्यवस्था करवा लो।"
"नहीं मैम, नहीं। मैं नहीं कर सकती।" बोझिल मन से मैंने कह दिया।
'पीं-पींss' की आवाज सुनाई दी।
बेमन से बस्ता उठाकर बस की तरफ चल दी और बस में सवार होकर एक खाली सीट पर बैठ गयी।
कंडक्टर ने जोड़ से दरवाजे पर थपकी दे कर बस बढाने का संकेत दिया।
मेरे मन में एक हलचल थी और पैर जैसे थिरक रहे थे। एक बार फिर अपनी इच्छा और प्रतिभा की आहुति दे कर आयी थी।
बस हमारे घर की तरफ बढ़ रही थी।
आंखें बंद किये मैं अपने आप से बरबरा रही थी--'इतने लोग तो हिस्सा लेते हैं। एक मैं हूँ जो.........। औरों के घर वाले तो इजाजत देते हैं और मदद भी करते हैं।' मेरी आंखों में नमी सी आ गई। जिसे अंदर ही दबाने की कोशिश कर रही थी।
अचानक से धचके के साथ बस रुकी और मेरी बंद आंखें खुल गई।
सुबह के 5 बज रहे थे। मैंने अलार्म जल्दी से ऐसे बंद किया जैसे कानों को कोई ध्वनि सुनने की इच्छा न हो।
मैं उठकर बैठ गयी और स्वप्न के बारे सोचने लगी--"ओह! ये तो पांचवीं कक्षा की बात है। सच में मैं विद्यालय के किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेती थी, क्योंकि सांस्कृतिक कार्यक्रम का अभ्यास विद्यालय में छुट्टी होने के बाद हुआ करता था। हमारी बस केवल एक समय में ही आती थी। छुट्टी के बाद मुझे यहाँ रुकने की इजाजत नहीं थी। इच्छा होती थी हिस्सा लेने की किन्तु मन मारकर रह जाती थी।"
एक गहरी सांस लेते हुए अपने आपको झकझोरा और घड़ी पर निगाहें डाली तो, 5 बजकर15 मिनट हो चुका था।
"अरे!.. जल्दी से बबली को उठाना है। आज उसे पारितोषिक जो मिलेगा और मुझे भी तो तैयार होना है उसके साथ विद्यालय जाने के लिए। वर्षों से दबी अपनी इच्छा और प्रतिभा को साकार होते हुए बिटिया के माध्यम से आज देखूंगी।"
आंखों में नमी अभी भी थी।