लछमिनिया
लछमिनिया
"बापू बोलउ का हम रिक्सा ठीक से नाही चला सकत है ?" लछमिनिया रिक्सा चलाते-चलाते अपने बापू से उत्साहित होकर पूछ रही थी। किन्तु धन्नालाल रिक्सा पर पीछे बैठा हुआ था और अपनी बेटी को कुशल रिक्सा चालक के रूप में देखकर विचारों में खोया हुआ था। वह सोच रहा था। जब तीन लगातार बेटी हो गईल तो लछमिनिया की माय बोलन रही 'अब सोच लई जे कबर में टांग जाई तक तोहरे के रिक्सा खींचे पड़ी। ' हम पूछल रही काहे तो कहे रही कि 'ई बेटी सब कोनो मर्द वाला काम करत'।
तभी लछमिनिया फिर से अपनी बात दोहराई।
धन्नालाल जो विचारों खोया हुआ था, उसकी आवाज सुनकर अपने वर्तमान को देखकर अंदर से मुस्कुराया और बोला "तू तो हमरे से भी बढ़िया चलावे है रे। "
"तो अब हम तोहरा के चलाबे नाही देब। हम चलाएब आ हम कमाएब। तोहरा के अब आराम करेके हई। "
"से जे होई से होई, मगर आज हमरा के लागे हई जे तू नाम के लछमिनिया नाही रे। तोहरा जैईसन लछमी बेटी, हमरा के सच में धन्नालाल बनाई देलक। "