Sarita Kumar

Fantasy

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Sarita Kumar

Fantasy

मजबूरी

मजबूरी

13 mins
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उमस भरी दोपहरी बहुत गर्मी थी एडिटर साहब ने दो तीन डब्बा गुजर जाने दिया उसके बाद खाली खाली बॉगी में दाखिल हुएं सीट पर बैठने के बाद राहत महसूस हुई। ट्रेन चल पड़ी हवाएं महसूस होने लगी और रोज की तरह पलकें मूंद कर सर टिका लिया। बड़ा आरामदायक सफ़र था। कुछ मिनट ही गुजरें होंगे कि एक आहट सी महसूस हुई और बाएं कंधे पर हल्का सा दबाव जैसे किसी ने अपना सर टिका दिया हो मगर मीठी सी नींद आने लगी थी सो इग्नोर किया।

लोकल ट्रेन में सफ़र करते हुए तीस साल हो गए थें। रोज रोज के धक्का मुक्की और बहुत करीबी का एहसास आम बात हो गई थी। आंखें मूंदे कुछ प्लानिंग में मशगूल रहें। फिर हाथ पर भी स्पर्श का अनुभव हुआ जैसे किसी ने अपने हाथों में उनका हाथ लेकर हल्का सा दबा दिया हो चौंक कर उठ खड़े हुए और बगल वाली सीट के तरफ घूरने लगे ... वृद्ध महिला असहज होकर झेंप सी गई। सामने वाली सीट पर बैठे हुए लोग भी देखने लगे थें। ट्रेन अपनी रफ़्तार से चल रही थी। फिर बैठ कर सोचने लगें कि ऐसा क्यों लगा कि किसी ने कोई हरक़त की हो ? बगल वाली सीट पर बैठी वृद्ध महिला तो शांति से खिड़की के बाहर देख रही थी और थोड़ी सी दूरी भी थी।

बिल्कुल भीड़ नहीं थी .... खैर फिर से आंखें मूंद ली अभी 40 मिनट का सफर बाकी था। मैसेज का एक नोटिफिकेशन आया ..... कलेजा धक से कर गया मैसेज पढ़कर। "क्यों डर गये ? मैंने धीरे से सर टिकाया था आपके कंधे पर ?" आपको पता है न मुझे हर बात के लिए आप ही चाहिए ? मुझे रोने का मन हो रहा है और इसके लिए भी कंधा आपका ही चाहिए। इधर उधर नजर दौड़ाई और जवाब दिया "अगले स्टेशन ट्रेन चेंज करना है आॅफिस पहुंच कर बात करता हूं।" फट से जवाब आया "ओके " माथे पर बल पड़ गये ..... ऐसा कैसे हो सकता है मैसेज पढ़ने के बाद तो संभव है लेकिन मैसेज आने से पहले किसी के साथ में होने का एहसास ..... कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरा भी दिमाग खराब हो रहा है ? नहीं नहीं मैं बिल्कुल ठीक हूं, नींद आ गई थी तो सपने में हुआ होगा और इत्तेफाकन उसी वक्त मैसेज भी आ गया।

स्टेशन आ गया उतर कर दूसरी ट्रेन फिर थोड़ी दूर पैदल चल कर आफिस पहुंचा। सहज औपचारिकता के बाद केबिन में पहुंच कर गहरी सांसें ली। नेट आफ कर दिया वरना नॉन स्टॉप मैसेजेस आते रहते। एक ग्लास पानी पीने के बाद भी प्यास बाकी रही दूसरी ग्लास भी उठा लिया और सोचने लगें कि आखिर ये सब क्या चल रहा है ? मेरे शांत सुनियोजित जीवन में ये कैसा उथल-पुथल मच गया है ? बरसों से एक ही रफ्तार से चल रहे मेरे जीवन में ऐसी असहजता की स्थिति क्यों आ गई है ? ऐसा भी नहीं है कि उसका मैसेज और कॉल आना पसंद नहीं है लेकिन नोटिफिकेशन देखते ही असहज हो जाता हूं और क्यों इधर उधर देखने की जरूरत पड़ती है ? क्यों किसी और के सामने जवाब देने में असुविधा महसूस होती है ? क्यों दिल धड़क जाता है ? और जब दो चार घंटे तक कोई मैसेज नहीं आता है तब भी इंतजार क्यों रहता है ? मन बेकरार क्यों हो जाता है ? मन ढ़ेर सारे सवालों के बीच उलझते जा रहा था तभी एक मैसेज आया फिर दूसरा और तीसरा भी ... "आफिस पहुंच गये ? या सोएं सोएं स्टेशन पार हो गया ?" "पहुंच गया, सोमवार है मेरी मीटिंग है दो घंटे चुपचाप बैठो।"ओके, सॉरी भूल गयी थी ठीक है मीटिंग के बाद मैसेज कीजिएगा। मीटिंग में जरा सा भी ध्यान नहीं दे सका। निरंतर वही सारे सवाल जिसका कोई जवाब नहीं था। मैं इतना असहज क्यों हो जाता हूं। नेट आफ करके पुरानी चैटिंग पढ़ने लगा लगभग पिछले दो महीने की चैटिंग पढ़ ली जो निष्कर्ष निकल रहा था वो यह कि कोई दस बारह साल की बच्ची है, थोड़ी जिद्दी, थोड़ी शैतान और बहुत शरारती भी कभी कभी उसकी बदतमीजी से खून खौलने लगता है मगर कुछ कर नहीं सकता। मानसिक रूप से बीमार है। इसके माता-पिता का देहांत बहुत साल पहले हो चुका है लेकिन इसने न जाने ऐसा क्या देखा है मुझमें की उसे पापा की याद आती है।

जब भी दर्द हद से गुजरने लगता है तो उसे मेरी तलब होती है और मेरे पास आकर सो जाती है बड़े सुकून से ...यह सब मेरे समझ से परे है लेकिन उसके परिवार वालों का रिक्वेस्ट और डॉ की सलाह, एक इंसान होने के नाते इंसानियत का तकाजा यही है कि चुपचाप मैं उसका पापा बनकर संभाल दूं। डॉक्टरों की राय है बहुत जल्दी ही ठीक हो जाएगी और मेरी यह गैर जरूरी जिम्मेदारी खत्म हो जाएगी। मुझे तो सिर्फ उसके मैसेज का जवाब देना होता है। ना वो कभी मिलने आ सकती है और ना ही कभी मुझे उसके पास जाने के लिए कोई बाध्य कर सकता है। वो सिर्फ अपने पापा से प्यार करती थी, उनकी बात मानती थी और उनके लिए कुछ भी कर सकती थी। उसके पापा का देहांत काफी समय पहले हो चुका है मगर दिमागी खलल के वजह से वो भूल गयी है। मुझे अपना पापा समझने लगी है और इसीलिए सारी बातें, गीले शिकवे शिकायत सब मुझसे कहती है और चाहती है कि मैं सुपर हीरो बनकर चुटकी में सारी समस्याओं का हल निकाल दूं। मैं एक सामान्य इंसान हूं और वो मुझे सुपर मैन समझती है लेकिन असलियत बता कर उसका दिल तोड़ना मुनासिब नहीं होगा यह जानते हुए की वो मानसिक रूप से बीमार है। सारी स्थितियां एकदम स्पष्ट है अपने परिवार में भी तो बता ही दिया हूं कि एक बीमार के इलाज में मुझे सहयोग करना है उसके पापा का रोल अदा करना है कुछ दिनों में वो ठीक हो जाएगी तब मेरी यह जिम्मेदारी पूरी हो जाएगी। यह एक पुण्य कर्म होगा। अगर थोड़ी सी मदद से कोई बीमार स्वस्थ्य हो जाता है किसी का उजड़ता हुआ संसार फिर से बस जाता है, छोटे-छोटे बच्चों की विक्षिप्त मां अगर मुस्कुराने लगती है बच्चों के चेहरे में रौनक लौट आती है तो इसमें हर्ज ही क्या है। भोले भाले बच्चें और उसके पिता ने आग्रह किया है कि मैं उसे बचा लूं डॉक्टरों की राय और आखिरी उम्मीद मैं ही हूं ऐसे में मुझे बिना कुछ सोचे-समझे मदद करनी ही चाहिए। मेरी वजह से अगर किसी के घर में खुशहाली आती है तो अच्छी बात है। ईश्वर ने मुझे ही क्यों चुना है इस पुण्यकर्म के लिए ? शायद मेरे लिए भी कुछ अच्छा होने वाला है इसी माध्यम से वरना एक सौ तीस करोड़ में एक मैं ही क्यों हूं उसके पापा जैसा ? जबकि उम्र देखा जाए तो वो महज दस साल ही छोटी है मुझसे। खैर जो भी हो आज मैंने तय कर लिया है। उसके इलाज में मदद करूंगा, बकवास बातें करूंगा, उसका दिल बहलाने के लिए जो कुछ करना पड़े करूंगा एक बार वो स्वस्थ हो जाए फिर पिछा छुटे। 

मैसेज कर देता हूं मीटिंग खत्म हो गई अब बताओ हाजिर हूं क्या सेवा करूं ? थैंक्यू, कुछ नहीं बस आनलाइन रहा कीजिए, आपको देख देखकर कर सारा काम आसानी से कर लेती हूं और जब आप दिखाई नहीं देते हैं तो अंधेरा अंधेरा सा हो जाता है। रोने का मन हो जाता है और रोने के लिए भी मुझे आप ही चाहिए। हां तो मैं हूं न हमेशा-हमेशा तुम्हारे साथ लेकिन आॅफिस में थोड़ा सा काम करने दो फिर मैं तुम्हारे साथ मूवी देखूंगा, गोल गप्पे खिलाऊंगा, कॉफी पिलाऊंगा, झूला झूलाने ले जाऊंगा और देर रात तक दूर बहुत दूर अकेले सड़कों पर घूमते रहूंगा ..... यही सब चाहती हो न ? मैं सब कुछ करूंगा। तुम खाना खाकर तैयार हो जाओ।

"सच ?????" थैंक्यू सो मच, मैं जानती थी आप सबसे अच्छे हैं दुनिया में एक अकेले आप ही तो हैं जो सबसे अच्छे हैं। मैं बहुत प्यार दुलार करूंगी आपको ..... और ढेरों लव इमोजी भेजा था उसने। "ठीक है आप थोड़ा सा काम कर लीजिए तब तक मैं सुंदर से तैयार हो जाती हूं।" थैंक गॉड नेट आॅफ कर लिया, उसे यकीन हो गया थोड़ी देर चैन से सो जाएगी अब काम शुरू करूं। कभी कभी उसके मूर्खतापूर्ण बातें मुझे अच्छी लगती है, बहुत प्यार भी आता है लेकिन जैसे एहसास होता है कि वो बच्ची नहीं है बल्कि प्रौढ़ महिला है किसी की पत्नी और कुछ बच्चों की मां है एक सड़क दुर्घटना में अपनी याददाश्त खो चुकी है और गलती से मुझे अपना पापा समझने लगी है और इसीलिए मेरे साथ बेफिक्र होकर रहना चाहती है। उसे लगता है मैं उसे हॉस्पिटल से डॉक्टर से, खतरनाक मशीनों से और इंजेक्शन से बचा लूंगा।

और सचमुच उसके इस विश्वास से चमत्कार होने लगा था। उसके पति ने ही बताया कि अब वो बिना इंजेक्शन और स्लिपिंग पिल्स लिए भी सोने लगी है। कहती है मुझे मेरा बचपन वाला झुला मिल गया है पापा मुझे उस पर झुला झुला कर सुला देते हैं और उसने अपने पति ने एक तस्वीर भेजी थी नौकर फिल्म की जिसमें संजीव कुमार अपनी बेटी को लोरी सुनाते हुए झुला पर झुला रहा था। उसने पति से बोला कि हर रोज मैं इसी झुला पर सोती हूं। परिवार का हर सदस्य उसकी हर बात में हां में हां मिलाता रहता है तो वो बिल्कुल सहज रहती है जैसे कोई बात उसके मन के खिलाफ हो जाएं तो एटैक पड़ जाता है इसलिए उसकी बेबुनियाद मूर्खतापूर्ण बातें भी चुपचाप सुनते हैं लोग और मुझे भी यही समझाया गया है कि हर बात में हां ही कहना है एक बार उसे ठीक हो जाने देना है फिर मुझे निजात मिल जाएगी ऐसी अनचाही परिस्थितियों से। कभी कभी बड़ी उलझन होती है बेतुके सवालों से। हर बार यही सोचकर चुप हो जाता हूं कि शायद यह आखिरी हो मगर कुछ ही दिनों बाद फिर कोई नई शरारत फिर कोई तमाशा, फिर कोई शैतानी फिर कोई बखेड़ा .... क्या मुसीबत है ? तभी उसकी बेटी या पति का मैसेज आ जाता कि "माफ़ कीजिए आपको बड़ी परेशानी हो रही है बस थोड़े दिन और बर्दाश्त कर लीजिए उसके बाद कभी कोई तकलीफ़ नहीं होगी आपको।"

घर वालों के इस मैसेज से थोड़ी राहत महसूस होती है। न जाने क्यों कभी कभी लगता है मुझे आदत सी हो गई है उसकी शैतानी, बदतमीजी और शरारत झेलने की। मेरी अपनी भी तो एक बेटी है उसका बचपन याद करना चाहता हूं उसने भी तो परेशान किया होगा मुझे ? तब क्या उस पर गुस्सा आया होगा ? शायद नहीं क्योंकि वो मेरी अपनी बच्ची है बारह इंच की थी तब से देखा है तो जो भावनाएं, संवेदनाएं उसके लिए है वो किसी दूसरे बच्चें के लिए कैसे हो सकता है ? खैर मुझे ज्यादा कुछ नहीं सोचना है बस कुछ दिनों की बात है। रिपोर्ट के मुताबिक 90% ठीक हो गई है थोड़ी सी कसर है वो भी उम्मीद है जल्दी ठीक हो जाएगी फिर मैं आजाद हो जाऊंगा। मैं ख्यालों में गुम था और धराधर मेल आ रहा था।ओह वो मुझे काम करना चाहिए। कुछ अर्जेंट है उसे निपटा लूं।

छुट्टी हो गई लेकिन कुछ काम रह गया था उसे निपटाना जरूरी था। जब बाहर कैब में बैठा तो देखा तीन चार मैसेज था एक मेडिकल रिपोर्ट भी एम आर आई का सीटी एंजियोग्राफी और ब्लड टेस्ट का। 100% ओके। मतलब मैं सफल रहा मैंने ठीक कर दिया। बिना किसी डिग्री का मैं डॉ बना इलाज किया और पेशेंट को ठीक कर दिया मेरे हाथ में सबूत भी आ गया। उसके पति ने भेजा था, बेटी ने थैंक्स भेजा था, पति ने लिखा था "आपका यह एहसान कभी नहीं चुका सकता लेकिन जिंदगी में कभी भी आपके किसी काम आ सकूं तो यह मेरी सबसे बड़ी खुशनसीबी होगी।" "आपने मेरे लिए मेरी खुशियों के लिए जो जोखिम उठाया था उसके लिए कोई शब्द नहीं है मेरे पास, आपने निस्वार्थ भाव से हमारे लिए तीन साल का वक्त दिया यह कोई नहीं दे सकता था शायद मैं भी नहीं दे सकता था किसी को।आप एक फरिश्ता बनकर आएं मेरी डूबती नैया को पार लगाया।" एक और मैसेज था मैं बहुत शर्मिन्दा हूं अब मैं ठीक हो गई हूं अपनी बीमारी के दौरान मैंने आपको कितना परेशान किया है यह सब मुझे पता चल गया है।

आपने किस तरह मुझे झेला है मेरे बच्चों और पति ने बताया है सब कुछ मुझे पता चल गया है। बहुत शर्म आ रही है। मैं आपके सामने नहीं आ सकती हूं मुझे सब याद आ रहा है .... और मेरे परिवार वाले चाहते हैं आपके साथ एक ग्रैंड पार्टी की जाएं लेकिन आप मना कर दीजिए। मेरे घर वाले मेरी खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं लेकिन अब जबकि मेरा दिमाग ठीक हो गया है सारे रिपोर्ट ठीक आ गये हैं तो आपकी ड्यूटी खत्म हो गई है अब आप आजाद हैं अपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन बिताइए आपके चांद पर जो ग्रहण लग गया था अब समाप्त हो चुका है। मैं पहचानने लगी हूं अपने पति और बच्चों को और जान गई हूं आपका भी एक छोटा सा प्यारा सा सुखी संसार है जिसमें तुफान बनकर मैं आ गई थी। अब मौसम बदल गया है तुफान थम गया है। बहुत बहुत शुक्रिया आपने मुझे मुझसे मिला दिया और मेरे पति से उनकी पत्नी और बच्चों को मिली उनकी मां सात साल बाद घर में खुशियां लौटी हैं वजह आप हैं सिर्फ आप। देश भर के सभी डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था चाहें वो आर्मी हॉस्पिटल हो या दिल्ली, आगरा, लखनऊ, पुणे, बैंगलोर या वेलोर का सीएमसी हॉस्पिटल। पंडित, ज्योतिष, पीर और चर्च के फादर सभी खामोश हो गये थें। अंतिम इच्छाएं पूरी कर दी गई थी। एक तरीके से मेरा दूसरा जन्म हुआ है बहुत आभार। 

ड्राईवर लगातार हॉर्न बजा रहा था ओह शायद घर आ गया उतरने से पहले देखा बगल वाली सीट पर .... नहीं अब कभी नहीं होगी कोई मेरी बगल वाली सीट पर। वो अब ठीक हो गई है। अपने परिवार वालों के साथ खुश होगी। बहुत दिनों बाद उसकी यादाश्त लौटी हैं इन सात सालों की तमाम घटनाएं एक दूसरे को सुनाने में व्यस्त रहेंगे सभी लोग। अब कोई मैसेज नहीं आएगा मेरे पास प्लीज़ आप समझाइए ना खाना नहीं खा रही हैं, उपर जा कर कोप भवन में बैठी हैं, किसी से बात नहीं कर रही हैं, बेमतलब रो रही हैं ...ब्ला ... ब्ला ... ब्ला ....। अक्सर ऐसे मैसेज आते थें और मुझे हमेशा समझाना पड़ता था। कभी प्यार से, कभी डांट कर, कभी धमका कर, कभी रूठ कर और कभी बेमतलब बकवास बातें करके मनाना भी पड़ता था जबकि याद नहीं है कि कभी किसी को इस तरह मनाया होगा ?

कमबख्त इस बुढ़ी बच्ची के लिए क्या क्या नाटक नहीं करना पड़ा था मुझे। ये दरवाजा क्यों नहीं खुल रहा है देखा तो चाबी उल्टी लगा रखी थी। लगता है उस पागल को ठीक करते करते मैं ही पागल हो गया हूं। यूं तो मेरी जीत हुई है इतने सारे मैसेजेस आएं हैं मुझे खुश होना चाहिए एक मुसीबत से पीछा छुटा। एक गैर जरूरी जिम्मेदारी बड़े अच्छे से निभाई है। व्हाटसएप के तीनों मैसेज सबूत हैं कि मैं कामयाब हो गया और आजाद भी। बेवक्त, बे सिर-पैर की बातों से मूर्खतापूर्ण सवालों से, बेवजह की जिद्द से और हर वक्त साया की तरह लिपटे रहने वाली नासमझ बच्ची से। 

करवटें बदलता रहा मगर नींद नहीं आई सुबह के 5 बज गये हैं पानी पीकर सोने की कोशिश करने लगा तभी एक मैसेज आया लवली मार्निंग एक स्माइली के साथ ओह ये तो मुझे सुकून से जीने नहीं देगी। अब क्यों मैसेज किया ? कल रात को तो बोला था सॉरी मैंने आपको बीमारी के दौरान बहुत परेशान किया है अब ठीक हो गई हूं। कभी तंग नहीं करूंगी मुझे पता चल गया है मेरी फेमिली अलग है और आपकी फेमिली अलग है। अब हम लोग अपनी अपनी दुनिया में खुश रहा करेंगे। फिर क्यों भेजा लवली मारिंग का मैसेज ?

सचमुच उचित यही है कि हम लोग अपने अपने परिवार में खुश रहें। मैंने तो डॉक्टर और उसके परिवार वालों के रिक्वेस्ट पर पापा की भूमिका निभा रहा था।यह उसके इलाज का एक हिस्सा था। अब बीमारी खत्म तो इलाज की जरूरत कहां ? 

मैंने नेट आफिस कर लिया थोड़ी बेरूखी दिखाना जरूरी है और दूरी कायम करना भी ताकि वो अपने परिवार में पहले की तरह खुशहाल जीवन जीने लगे। मेरा काम खत्म हो चुका है। बगल वाली सीट पर अब कोई नहीं होगा कोई नहीं।


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