Shikha Pari

Inspirational

2.8  

Shikha Pari

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मिट्टी के दीपक

मिट्टी के दीपक

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मिश्रा जी ने आज अपने सारे मिट्टी के दीपक अलमारी में बंद करके रख दिए उन्हें याद आया कि अब उनके पांचों बेटे अपने अपने काम से बाहर जा चुके हैं जहां चार बेटों ने शहर के आसपास दुकान खोली किसी ने कोई धंधा कर लिया वही सबसे छोटा बेटा इसी साल फॉरेन जा चुका था।

मिश्रा जी घर पर भी तो क्या करते आखिर सबसे छोटे बेटे का भविष्य उन्हें देखना था उनका सबसे छोटा बेटा अभिषेक मैं , मिश्रा जी की जान थी वह कहते हैं छोटे बच्चे से इंसान को बहुत ज्यादा स्नेह रहता है मिश्रा जी और उनकी पत्नी का भी ऐसे ही था अपने सबसे छोटे बेटे को वह बाहर तो भेजना नहीं चाहते थे लेकिन जब उसका सिलेक्शन मेडिकल के लिए हुआ तो मिश्रा जी ने फिर अपने बेटे को बाहर भेजना मुनासिब समझा बहुत सारे सपने लेकर अभिषेक अब ऑस्ट्रेलिया जा चुका था नई नई नौकरी थी हॉस्पिटल में तो जाहिर सी बात है मिश्रा जी को लगा कि इस बार दिवाली में अभिषेक का तो आना मुश्किल ही था उन्होंने अपने बाकी चार बेटों से आसरा लगाया था कि वह इस बार आकर मां-बाप के साथ ही दिवाली मनाएंगे।

कैसे हो राकेश ?

मिश्रा जी ने अपने सबसे बड़े बेटे को फोन किया।

"पिताजी मैं बहुत आज बिजी हूं बात यह है कि धनतेरस का दिन है दुकान में बहुत भीड़ है बहुत सारे ग्राहकों का ता  तांता लगा हुआ है फिलहाल घर आना तो बहुत मुश्किल है और इस दिवाली हम लोग सब रमन के यहां जा रहे हैं उसके यहां दिवाली की पार्टी है।

मिश्रा जी का दिल टूट गया यह सब सुनते ही वह 2 मिनट रुके फिर सोचने लगे कि यह दिवाली पार्टी जैसी चीज क्या है उन्होंने पूछा भी कि यह दिवाली पार्टी क्या है ?

 पिता जी आपको दिवाली पार्टी नहीं पता? इसमें नाचना गाना खाना पीना सब होता है।

मिश्रा जी चौक गए बोले बिना परिवार के नाचना गाना खाना-पीना कैसे अच्छा लगा दिवाली तो घरवालों के साथ ही अच्छी लगती है।

राकेश ने कोई जवाब नहीं दिया और उसने बड़ी बेरुखी से पिता का फोन काट दिया राकेश की शादी के 16 साल हो गए राकेश को अपनी पत्नी रमन और उसके मायके वालों से बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन थोड़ा प्यार जरूर था जिंदगी में सब कुछ बदल जाता है राकेश की जिंदगी में भी बहुत कुछ बदल गया था।

पिताजी ने अपने दूसरे बेटे से आशा लगाई कि शायद वह आकर मां-बाप के साथ दीवाली मनाएगा जब दूसरे बेटे मोहित को फोन किया तो पता चला कि मोहित अपने परिवार के साथ कहीं बाहर गया हुआ कहीं घूमने फिरने उसने फोन पर बताया कि पिताजी दिवाली की छुट्टियां 5 दिन की थी तो कहीं घूमने का प्लान बना लिया मुश्किल से यह 5 दिन मिले हैं और बहुत जरूरी नौकरी भी है इसलिए मैं नौकरी की छुट्टी से छुट्टी नहीं ली और ना ही जबरदस्ती की छुट्टी ली पैसे ना कटे इसलिए दिवाली की छुट्टियों में ही अपनी छुट्टियां बनाने चला आया।

 मिश्रा जी सोचने लगे यह कैसी दिवाली की छुट्टी हो रही ?

कैसी दिवाली जिस दिवाली में घर में रहकर, परिवार के साथ दीवाली मिलकर मनानी चाहिए थी उस दिवाली में मेरा लड़का बाहर घूमने चला गया यह कैसी दिवाली है?

 मोहित ने समझाया कि पिताजी त्यौहार मनाने का तरीका आजकल एक यह भी है जो परिवार के साथ बाहर घूमने जाते हैं और उसका फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड करते हैं। मिश्रा जी उदास हो गए, बोले "अरे मोहित की मम्मी यही सोच रहा कि कैसी दिवाली है कि बच्चे अपने अपने घर में अपने पास होते हुए भी हमसे मिलने नहीं आ सकते आज मैंने मिट्टी के सारे दीपक रख दिए है मुझे लगा बच्चे हर साल नई नई झालर लाते नए नए तरीके के लिए लाते नए तरीके के दीपक लाते , सजी हुई मोमबत्तियां लाते , कोई ना कोई बेटा तो आ ही जाएगा लेकिन अभी पता चला कि राकेश तो अपनी बहू को लेकर उसके मायके जा रहा है और मोहित शहर से ही बाहर जा रहा है।

"अरे तो अरुण को फोन कर लो ना वह जरूर यहीं पर होगा और इस बार दिवाली हम लोग के साथ मनाएगा तुम्हें याद है पिछली बार हम लोग सोच रहे थे कि अरुण नहीं आएगा और वह आ गया था मिश्रयीन  ने मिश्रा जी को   ढांढस बंधाते हुए यह बात कही।

मिश्रा जी ने बड़े बेमन से सोनू को फोन किया उन्हें लगा कि अब सोनू और अरुण से ही उनको सहारा है सोनू जो घर के पास ही एक दुकान करता था वह तो पक्का इस बार दिवाली में आएगा ऐसा मिश्रा जी ने पहले ही सोच लिया था इसलिए सोनू के पसंद के सोहन पापड़ी के दो डिब्बे मिश्रा जी ने पहले से ही घर में लाकर रख दिए लेकिन जब सोनू को फोन किया तो पता चला कि सोनू तो इस बार अपनी दुकान के सिलसिले में किसी अपने दूसरे दोस्त के यहां गया और वहीं पत्नी और बच्चों को भी साथ ले गया है कह रहा था कि 4 दिन से पहले नहीं आऊंगा मेरा रास्ता मत देखना पिताजी ने बड़े रूठे हुए गले से पूछा भी था कि सोहन पापड़ी के दो डिब्बों का क्या करूं? अब तो उनके दांत इतने अच्छे नहीं कि वह खा सकें।

सोनू ने पिताजी को ढांढस बंधाया और कहा " पिताजी परेशान ना हो दिवाली के बाद बच्चों को लेकर आऊंगा दोनों डब्बे मिठाई के उनको पकड़ा देना"।

 मिश्राजी सोचने लगे "यह मिठाई तो मैं सोनू के लिए लाया था खैर सोनू को नहीं खानी तो कोई बात नहीं कुछ ऐसा कहे वैसे ही कर देता हूं उसके बच्चे को ही मिठाई पकड़ा दूंगा मुझे क्या वह खाये या बच्चे "।

अब सोनू की भी राह देखना पिताजी ने छोड़ दिया अब उनको आसरा था कि जरूर अरुण आएगा जैसे वह पिछले साल आया था मिश्राइन से मिश्रा जी ने कहा कि "ऐसा करो अरुण को तुम फोन कर दो क्योंकि अगर तुम फोन करोगी तो जरूर आएगा वह तुमसे बहुत प्रेम करता है"।

 मिश्राइन हंसने लगी और बोली "बिल्कुल मेरे कहने पर तो अरुण दौड़ता चला, आयेगा देख लेना दोनों पति-पत्नी में शर्त लगी और मिश्राइन ने अरुण को फोन कर दिया।

उधर से नंबर बिजी बता रहा था मिश्राइन को लगा शायद अरुण कहीं बात कर रहा है जब 5 बार फोन करने पर भी फोन नंबर नहीं लगा तो मिश्राइन थक गई सोचा शाम को करेंगे और जब शाम को भी नहीं लगा सोचा दूसरे दिन करेंगे जब दूसरे दिन भी नहीं लगा तो करते-करते छोटी दीवाली के दिन जब फोन लगा भी तो कोई बोला ही नहीं और बिना बोले फोन भी रख दिया मिश्राइन को समझ में नहीं आया कि अरुण की घरवाली को क्या हुआ और ना अरुण ने कोई जवाब दिया अरुण ने सिर्फ एक मैसेज किया जिसमें लिखा था कि ही इस बिजी यानी कि वह बिजी है।

दिवाली का दिन था सुबह हुई फिर दोपहर और शाम को मिश्राइन एक छोटी सी रंगोली बनाई सोच रही थी कि इसमें कौन सा रंग भरूँ ?

 इस घर के सारे रंग तो बेरंग हो गए पांचों बेटे अपने अपने काम से गए थे मिश्राइन अकेले घर में बैठकर यही सोच रही थी कि तभी दरवाजा खटखट हुआ।

 मिश्रा जी बोले "लो देखो जाकर जरूर कोई पड़ोसी होगा जो मिठाई देने आया होगा ऐसा करो सोहन पापड़ी का एक डब्बा उस पड़ोसी को भी दे दो और यह जो मिट्टी के दीए लाया था वह भी निकाल कर दे दो।

 दरवाजा खुला और मिश्राइन ने सामने देखा अभिषेक ऑस्ट्रेलिया से आकर सामने खड़ा था।

मिश्रा जी और मिश्राइन दोनों चौक गए।

 मिश्रा जी चौक ते हुए बोले" तू कैसे आ गया अभी तेरी नौकरी शौकरी तो छूट नहीं गई।

 अभिषेक मुस्कुराने लगा ,पिताजी के गले लगा और फिर पैर छूते हुए बोला- "नहीं पिताजी दिवाली है ना पूरे 10 दिन की छुट्टी लेकर आया हूं और हां आपके लिए आपके फेवरेट घेवर और यह देखिए ऑस्ट्रेलिया में बिकने वाले मिट्टी के दीए लेकर आया हूं जिससे आप दिवाली हर साल मनाना चाहते थे मिश्रा जी की आंखें नम हो गई उन्होंने अभिषेक को चिपटा लिया बोले "तुझे याद था कि मुझे मिट्टी के दिए बहुत पसंद है "।

अभिषेक बोला" पिताजी मुझे तो यह भी नहीं यह भी याद है कि आप को साथ में खाना और पीने में क्या पसंद है"।

 मिश्रा जी खूब जोर से हंसे बोले "चुप तेरी माँ सुन लेगी,बेटा इतनी दूर जाकर भी तू पिता को नहीं भूला मैं तो यही सोच रहा था कि इस बार अभिषेक भी नहीं आएगा और कोई नहीं आया और हम और तेरी मां दिवाली अकेले ही मनाएंगे लेकिन तूने आकर दिवाली में चार चांद लगा दिए।


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