मिर्च तो है
मिर्च तो है
अक्सरकर लोगों के मुँह से एक ही बात सुन रही हूं जो कभी अफ़सोस जताते हुए तो कभी प्रशंसा के बाद लापरवाही से कही जाती है, " बहुत बार लिखने की सोचते हैं पर क्या करें, हमें तो समय ही नहीं मिल पाता। आपका सही है लिख लेते हो। " या फिर , " पप्पू तो कब से कह रहा है कि ऐसा तो आप भी लिख सकती हैं उसमें क्या है , मुझे भी यही लगता है लेकिन क्या करें समय की परेशानी...। " हालांकि हम भी पप्पू से सहमत हैं लेकिन अब आपके लटके हुए चेहरे को देख कर हम समझ नहीं पाते कि आपकी एक मिनिट पहले की गई तारीफ पर खुश हों या हम भी ग़मगीन हो जाएं और फेंक दें ये मोबाइल- नोटपैड वगैरह। ( पर फेंकने वाले नहीं हम, काहे से कि फिर दूसरा ई तो नहीं न दिलाई। ) हालांकि हम परवाह तो खुद की ही नहीं करते तो इनकी क्या करेंगे पर सोचा चलो आज इस विषय में बात कर ही ली जाय।
... अरे भैया तो का हम आपको निठल्ले बैठे दिखते हैं? हमरे घर का काम तो पड़ोसी कर जाते हैं का? देखो भैया- बहिनी लोग, टेम तो सबपे चौबीस घण्टा का ही है अब तुम पर है कि तुम कैसे उसे मैनेज कर पाते हो। हम कौन आपकी भैंसिया खोलकर भगा दिए हैं जिसे खोजने में आपका टाइम निकल जाता है। भई गपशपबाजी, सास- बहू के टीवी सीरियल की दुनिया से बाहर आकर कलम काहे नहीं पकड़ लेते, क्यों दुनिया को अपने बेहतरीन साहित्य से दूर करने का पाप कर रहे हो।
और कौन बताया आपको कि लिखना फ़ुरसतिया लोगों का काम है? भैया बहुत कुर्बानी देनी पड़ती है कुछ लिखते के लिए, जैसे अपने पूरे दिन में से समय चुराना, एक रचना लिखने के पहले दिमाग में उसके कॉन्सेप्ट को पकाना और लिखने के बाद भी बार- बार पढ़ना कि कहीं कोई व्याकरण की गलती न रह जाय उसके बाद ही किसी रचना को प्रकाशन के लिए भेजने में आता है । इसके अलावा घर के लोगों की टेढ़ी नजरों को भी अनदेखा करना पड़ता है जब कोई ख़्याल लिख रहे हों। चाय की तलब जो मुझे इस वक्त उठ रही है क्योंकि समय भी हो गया है पर लिखने के लिए उसे भी इग्नोर करना पड़ता है।
हम उम्मीद नहीं कर सकते कि हर रचना पर हमें शाबासी ही मिले या हर रचना छप जाय लेकिन खुद की खुशी के लिए लिखना हमें संतोष देता है।
कुछ को गलतफहमी है कि गूगल पर मेरा नाम टाइप करने पर जो भी परिणाम फ़ोटोज वगैरह सामने आते हैं वे सब गूगल बाबा को पटा कर हमने खुद ही डाले हैं। भैया जैसे हमने रिश्तेदारी निकाल ली गूगलवा से वैसे ही आप भी निकाल लें , वैसे भी हम भारतीय तो हर जगह जा कर रिश्तेदारी निकालने के फ़न में माहिर हैं।
तो भैया, सारी बात का लब्बोलुआब यह है कि आपको लिखना है तो लिखो नहीं लिखना मत लिखो पर हमें आलसी निकम्मे जैसी फीलिंग मत दो वरना अगली बार आपके लिए चाय - नाश्ता आपको खुद ही हमारी रसोई में जाकर बनाना पड़ेगा और साथ ही हमारे घरवालों के लिए भी क्योंकि हम तो लिखने में बिजी रहेंगे न।