मीठा बचपन
मीठा बचपन
रीना किचन में काम करते हुए गुनगुना रही थी। रेडियो पर पुराने गीतों का उसका पसंदीदा कार्यक्रम चल रहा था। राजकपूर नरगिस के रोमांटिक गानों से लेकर मुकेश के दर्द भरे गीतों तक। तभी उस जमाने का बहुत प्रसिद्ध गीत बज उठा..."मदद करो संतोषी माता….." उसके चेहरे पर हँसी आ गई। बहुत ही मधुर याद जुड़ी है उससे।
"मम्मी अकेले अकेले हँस रही हो, क्या बात है? वो भी इस धार्मिक गाने पर"- पलक ने शरारती अंदाज़ में पूछा। वो बहुत देर से देख ही रही थी रीना को गाने गुनगुनाते और उसमें खोए हुए।
रीना के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान तैर गई।
"इस गाने से मेरे बचपन की बहुत मीठी याद जुड़ी है बेटा"
"अरे वाह! बताओ ना मम्मी"
"बताती हूं पर बीच बीच में टोकना मत"- रीना ने कृत्रिम गुस्से कहा।
"मम्मी कहानी सुनते हुए हुंकारा तो भरना ही पड़ता है ना"- पलक हँसने लगी।
" हां मेरी मां। अब सुन। बात उन दिनों की है जब मैं लगभग तीन चार साल की थी"
"मम्मी तुम इतनी छोटी सी थी और तुम्हें सब याद है"- पलक ने चुटकी ली।
"और नहीं तो क्या। सब बिल्कुल ऐसे जैसे कल की ही बात हो"
"मुझे तो ये भी याद नहीं है कि कल क्या खाया था"
"अब मेरी ऐसे ही खिंचाई करेगी तो नहीं सुनाऊंगी"
"अच्छा बाबा। अब छोटे बच्चे जैसे मत रूठो"- पलक ने मनुहार किया।
"तो उस समय जय संतोषी मां फिल्म रिलीज हुई थी। सब जगह इस फिल्म की बहुत धूम मची थी। रेडियो पर दिन भर इसके गाने बजते रहते थे और बिनाका गीत माला में तो टॉप पे था"
"ये बिनाका गीत माला क्या है मम्मी"
"तू फिर बीच में बोली। मना किया था ना"
"अब तुम्हारे जमाने के ऐसे ऐसे नाम लोगी तो पूछना तो पड़ेगा ना"- पलक हँसने लगी।
"अरे सब लिंक टूट जाता है"
"तुम्हें तो ऐसे याद है ना जैसे कल ही की बात हो, फिर!"- पलक ने चुटकी ली।
"अच्छा बाबा। उस जमाने में रेडियो सीलोन पर हिंदी फिल्मों के सुप्रसिद्ध गीतों का एक कार्यक्रम आता था जिसका नाम था बिनाका गीत माला। उसमें अपनी जगह बना पाना भी किसी राष्ट्रीय पुरस्कार से कम नहीं हुआ करता था। उसमें इस फिल्म के गाने टॉप पर थे"
"हमारी कॉलोनी में गणेश उत्सव मनाया जाता था। गणेश जी की स्थापना करते थे और दस दिनों तक रोज शाम को रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ करते थे। उसी अवसर पर सबने इस फिल्म के गानों पर नृत्य नाटिका करने का सोचा। सबके अपने रोल डिसाइड हो गए थे कौन क्या करेगा, कैसे आएगा, क्या कहेगा। मैने भी जिद की कि मुझे भी इसमें भाग लेना है"
"मतलब तुम बचपन में जिद्दी…"
सुनकर रीना ने आँखें तरेरी।
"अब उस जमाने में इतने छोटे बच्चे को डांस तो आता नहीं था इसलिए संतोषी माता बनाकर बैठा दिया। मैं बहुत खुश थी क्योंकि एक तो बहुत सज धज के तैयार होना था और फिर सब आ आकर आरती करते और पैर छूते थे। उसकी प्रैक्टिस में ही बहुत मजा आता था"
"अरे वाह मम्मी। तुम्हारा चेहरा देखकर ही लग रहा है कि तुमने उस समय कितना एन्जॉय किया होगा"
"अब फाइनल परफॉर्मेंस का दिन भी आ गया। मुझे बहुत अच्छे से तैयार करके कुर्सी पर बैठा दिया गया। रोज जैसी प्रैक्टिस होती थी वैसे ही सब एक के बाद एक घटनाएँ होने लगी। मैं बहुत खुश थी और एक एक को बड़े मजे से आशीर्वाद दे रही थी। उतने में एक व्यक्ति आया। उसके कपड़े मैले - कुचले और फटे हुए थे। हाथ - पैरों में मिट्टी लगी हुई थी। उसके पास से बहुत दुर्गंध आ रही थी। उसके हाथ में बैसाखी थी और लंगड़ाते हुए मेरे पास आकर मेरे पैरो पर गिर पड़ा। बोला - "हे संतोषी मां। मेरी रक्षा करो। मैं बहुत पापी हूं"
उसके ऐसा करते ही मैं बहुत बुरी डर गई और जोर से भागी। मम्मी- मम्मी…. चिल्लाते हुए दौड़कर मम्मी की गोद में चढ़ गई। सब लोग तालियां बजाने लगे और हँसने लगे। कहने लगे " मिसेज अग्रवाल अपनी संतोषी मां की अब आप रक्षा करो"
"मम्मी तुम भी ना"- कहते हुए पलक हँस हँसकर लोटपोट हो गई।
"अरे मुझे थोड़ी ना पता था कि वो अंकल ऐसे आएंगे। वो एक सरप्राइज एलीमेंट था उस नृत्य नाटिका में"- कहते हुए रीना हँसने लगी।
"बेटा! फिर तो कॉलोनी में रोज ही सब लोग मुझे चिढ़ाया करते थे और आज चालीस साल बाद भी जब वो आंटियां मम्मी को मिलती है तो उनसे यही पूछतीं हैं कि हमारी संतोषी मां कैसी है! सच में क्या शानदार दिन थे। काश वो दिन वापस आ जाएं"
दोस्तों हम सभी के अतीत की कुछ घटनाएं इतनी मधुर होती है कि उन्हें बार बार जीने को जी चाहता है। यह मेरे जीवन की ऐसी ही एक गुदगुदाती हुई मजेदार घटना है। उम्मीद है आपको भी अपनी ऐसी ही कोई घटना याद आई होगी जो आज भी आपके चेहरे पर भी मुस्कुराहट ला देती होगी।