मील का पत्थर (कहानी)
मील का पत्थर (कहानी)


वैसे तो हर सुबह निकलने वाली सूरज की किरणें अपने साथ नई ऊर्जा, नई उमंगें, नया हौसला, नया जोश, नया जज़्बा लेकर आतीं हैं। लेकिन आसुतोष की ज़िन्दगी की रातों के अंधेरे बहुत स्याह हो चुके थे। उन्हें लाल तपते सूरज की रौशनी भी भेदने में असमर्थ नज़र आती थी। ज़िन्दगी की तमाम सुबहें तो उसने मदहोशी के आलम में ही गुज़ारी थीं। एनआईटी से बीटेक करने का सपना तो किसी तरह पूरा हो गया था। लेकिन उसके उपरान्त उसका किसी भी कैम्पस में न तो सिलेक्शन हुआ न ही कहीं अच्छी नौकरी लग पाई। वह अवसाद से घिर गया। लेकिन इस अवसाद की जड़ें तो उसकी पढ़ाई के दौरान ही रोपित हो गईं थीं। अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिलने के बाद न केवल माता-पिता बल्कि गाँव वाले भी बहुत गर्व करते थे उस पर। लेकिन पहले साल से ही दुर्भाग्य से उसकी संगत बिगड़ गई। हॉस्टल लाइफ में गुजरने वाला हर साल उसे और अधिक नशे में डुबोता चला जा रहा था। आलम ये था की अब वह स्वयं नहीं बल्कि नशा उसको पीने लगा था। यही कारण था कि वह गाँव वापस नहीं लौटना चाहता था। आखिर बहानेबाजी भी कब तक चलती। माँ को तो पिछली बार दीपावली पर ही शक हो गया था। लेकिन वह किसी तरह बहाना बनाकर जल्दी चला गया। माँ ने पिताजी को आकस्मात देखने जाने को बोला। जब वर्मा जी उस से मिलने पहुंचे तो उनके तो पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई। उनकी सारी मेहनत की कमाई, आसुतोष पढ़ाई के नाम पर बर्बाद कर चुका था। उन्होंने अपने दोस्तों से परामर्श किया और उसे नशा मुक्ति केन्द्र में छोड़ कर आ गए। माँ ने वापसी पर पूछा था।
- अजी, क्या हुआ? आप तो कहते थे। उसे किसी भी तरह अपने साथ लेकर आएँगे। नौकरी नहीं मिली तो क्या हुआ। मेरा इतना बड़ा कारोबार है। इसे चलाने के लिए भी तो कोई चाहिए। फिर क्यों नहीं लाए आप, उसे अपने साथ? कुछ दिन ही सही, यहाँ रह लेता तो मैं उसकी पसंद का खाना बना कर खिला देती। बहुत सेहत गिर गई है उसकी। पता नहीं क्या सोचा-विचारी करता रहता है। हमेशा खोया हुआ सा लगता है। मुझे तो लगता है जैसे कुछ छिपा रहा है हमसे।
- नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। अभी उसे नौकरी के लिए कुछ और ट्रेनिंग की ज़रूरत है। इसलिए वहाँ भर्ती कर आया हूँ। अभी छः माह बहुत व्यस्त रहेगा। अगली दीपावली तक ही आ पाएगा। पिताजी ने माँ से तो झूठ बोल दिया था। वे नहीं चाहते थे कि वह सच जानकर आहत हो। बाप तो हर हाल में अपने बेटे को एक मौका और देना चाहता है। अब ये उसकी मति है वह उसका सदुपयोग करे या दुरूपयोग।
खैर आसुतोष अब नशा मुक्ति केन्द्र का एक हिस्सा था। उसका शेडूल बहुत टाइट था। सुबह योगा से लेकर दिन भर अनेक सेशन चलते। लेकिन शाम व्यायाम शाला में ख़त्म होती। दरअसल आसुतोष को शुरू से ही जिम जाने का शौक था। लेकिन स्कूल और कोचिंग की पढ़ाई के चक्कर में उसे जिम का सपना छोड़ना पड़ा था। आसुतोष नशे से दूर होता जा रहा था। उसका अधिकांश समय व्यायाम शाला में ही गुजरता। वहाँ वर्जिश के आधुनिक उपकरण भी मौजूद थे। उसका पसंदीदा शगल वेट लिफ्टिंग था। छः माह पश्चात् वह पूरी तरह नशे से मुक्त हो चुका था। दिमाग तो उसका शुरू से तेज था ही। अब उसका रुझान पूरी तरह अपनी बॉडी बनाने और वेट लिफ्टिंग में नाम कमाने पर केन्द्रित हो गया। इसका नतीजा ये रहा कि पहले जिला स्तर और फिर प्रदेश स्तर पर अनेक पुरस्कार अर्जित किये। अन्त में उसने जिम को ही अपना रोज़गार बनाने का निर्णय लिया।
आज उसी जिम का उद्घाटन था। माँ-पिताजी को भी गाँव से बुलवाया था। शहर के गणमान्य व्यक्ति, नशा मुक्ति केन्द्र के एनजीओ के संचालक के साथ प्रेस मीडिया के लोग भी मौजूद थे। नशा मुक्ति केन्द्र के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि थी। अतः वह इस घटना को अधिक से अधिक अखबारों की सुर्ख़ियों के साथ प्रकाशित करवाना चाहता था। इसी क्रम में एक पत्रकार ने आसुतोष से सवाल किया।
- आसुतोष जी, जिम खोलने का विचार आपके मन में कैसे आया?
- मैं ने इतनी सी उम्र में ज़िन्दगी को बहुत करीब से देखा है। पढ़ लिख कर जहाँ मुझे अपने माता-पिता, समाज, देश का नाम रौशन करना चाहिए था। वहीँ मैं बुरी संगत में पड़ कर नशे के ऐसे दल-दल में फँस गया, जहाँ से मैं जितना निकलने की कोशिश करता और गर्त में चला जाता। मैं ने अपने हाथों ही अपने जीवन को बर्बाद किया था। इसलिए अवसाद ने भी आकर घेर लिया। ज़िन्दगी एक बोझ बनकर रह गई थी। कभी मन करता, ऐसे जीने से तो मर जाना बेहतर है। ऐसे मैं पिताजी का मुझे नशा मुक्ति केन्द्र भेजने का निर्णय सही साबित हुआ। वहाँ मुझे ज़िन्दगी दोबारा शुरू करने के लिए एक नई ऊर्जा मिली। अब, जब ज़िन्दगी का बोझ उठाना ही था तो मैं ने इसे उत्सव के रूप में स्वीकार कर वेट लिफ्टर बनने की मन में ठानी। और सफल भी रहा। नशा मुक्ति केन्द्र ने मुझे न केवल दिशा दी बल्कि अवसर भी उपलब्ध कराए।
- भविष्य में आपके जीवन का क्या उद्देश्य है? उस पत्रकार का दूसरा प्रश्न था।
- मेरा उद्देश्य समाज के युवा वर्ग खास तौर से विद्यार्थियों को नशे की लत से निजात दिलाने का प्रयास होगा। मेरी कोशिश होगी कि जिम इस मंज़िल को पाने में मील का पत्थर साबित हो सके।