मेरी उड़ान
मेरी उड़ान
आज मैं विमान में पहली बार बैठी हूँ, मेरे बगल में बैठे हुए साथी ने कहा "लगता है विमान की ऊंचाई आज कुछ ज्यादा ही है, क्यूँ आपको क्या लगता है?"
मैंने हँसते हुए कहा "हां, बिलकुल मेरी जिंदगी की ऊंचाई की तरह" और यह कहते ही हम दोनों हँसने लगे।
मैं रात में जब घर आई तो फिर सारी यादें ताजा हो गई, ऐसा लगा जैसे कि यह सिर्फ कल की ही बात हो।
मैं ज्योति सावंत, मेरा जन्म एक बहुत ही ग़रीब परिवार में हुआ था। मेरे माता-पिता मुझे जन्म देने के कुछ सालों बाद ही गुजर चुके थे। इसलिए मुझे मेरे चाचा और चाची ने पाला था, मेरे चाचा और चाची के पहले से ही 3 बेटियाँ थी तो मैं उनके लिए एक जिम्मेदारी नहीं बल्कि बोझ जैसी थी। शायद यही कारण था कि उन्होंने 15 साल की उम्र में ही एक 25 साल के वाशु सावंत से मेरी शादी करवा दी थी। आज मेरी शादी को दस साल बीत चुके हैं पर सब कुछ वैसे ही है। मेरा पति सिर्फ शराब पीता है, और घर आते ही मुझे पीटता है, उसके लिए तो मैं किसी समान की तरह हूँ। हमारा कोई बच्चा नहीं था और डाक्टर ने कहा था कि आपको बच्चा नहीं हो सकता। यह खबर सुनते ही मैं खुश हो गई थी क्योंकि वाशु की हरकतों से मैं परेशान थी और नहीं चाहतीं की कोई और भी इसका शिकार हो। काफी शराब पीने की वजह से मेरे पति वाशु के लिवर में डैमेज हो गया था। मेरे पति एक ऑटो चलाते थे इसलिए जब वह बीमारी में बिस्तर पर पड़ गए तो वह जिम्मेदारी भी मुझ पर आ गई। घर का खर्च चलाना भी जरूरी था, जिम्मेदारीयों के लिए मैं अकेली हूँ ,भले वाशु ने मुझे जिंदगी भर खुश ना रखा पर मैं उनके इस दुख में उनका साथ देना चाहती थी।
रोज़मर्रा की जिंदगी ऐसी थी जैसे कि मरना ही बेहतर था, पर मुझे जीना मुझे जीना पड़ा क्योंकि शायद जिंदगी मुझसे ज़रूर कुछ चाहती थी। अब मैंने ऑटो रिक्शा चलाना शुरु किया और उसी से पैसे कमाया करती थी। इस प्रकार उनकी दवा के लिए पैसे इकट्ठा करके मैंने उनका इलाज कराना भी शुरू किया। धीरे-धीरे उनके उनकी परिस्थिति भी सुधरने लगी और लगभग 1 साल तक उनका इलाज करवाने के बाद डॉक्टर ने कहा अब ये पूरी तरह से ठीक हो रहें हैं। इस एक साल में मुझे बहुत कुछ समझ में आया। मैंने जिस तरह से जिंदगी को जीने का तरीका सिखा, खुद को संभाला, मेरे पति को संभाला उस वजह से मुझे एक नई जिंदगी का दृष्टिकोण मिला। अब मेरे पति पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं और वह भी मेरे काम में मेरी मदद करते हैं। बीमारी से निकलने के बाद उनके अंदर भी एक बहुत बड़ा बदलाव आया, ऐसा लगता था मानो कि जिंदगी एक नए मोड़ ले रही है। उन्होंने एक नया रिक्शा ख़रीदा, अब हम दोनों रिक्शा चलाते थे, दिन भर पैसे कमाते थे, खुशी से बैठकर साथ में खाना खाते थे और चैन के नींद सोते थे बस इसी तरह जिंदगी बीत रही थी। अब मैं सुबह के सुबह 10:00 से लेकर दोपहर 3:00 बजे तक रिक्शा चलाया करती थी और उसके बाद मैंने एक मोटर ट्रेनिंग स्कूल भी खोल रखा था जहां पर मैं 4:00 बजे से 8:00 बजे तक महिलाओं को रिक्शा चलाने के बारे में जानकारी देती और उन्हें सिखाया करती थी और उस मोटर ट्रेनिंग स्कूल में लगभग 15 महिलाएं थीं। मेरी इस कार्य के लिए महिला मंडल और नगर सेवक ने मुझे पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया था।
इन दिनों शहर में पॉलिटिक्स को लेकर पॉलिटिकल दंगे चल रहे थे और फिर उसी दंगे में एक गाड़ी फंसी हुई थी। मैं अपने मोटर ट्रेनिंग स्कूल को बंद किया और जाने लगी तो देखा कि एक गाड़ी में महिला रो रही थी। वह महिला प्रेग्नेंट थी और उसे कुछ ही समय में बच्चा होने वाला था पर हॉस्पिटल भी बंद था। इसलिए कहीं लेकर जा नहीं सकते थे, गाड़ी भी हर जगह से फंसी हुई थी। मैंने उस औरत को गाड़ी में से निकाला और उसे मोटर ट्रेनिंग स्कूल में लेकर आ गयी, मेरे आस-पड़ोस में जो महिलाएं रहती थी सभी को मैंने वहां पर बुला लिया और मेरे ट्रेनिंग स्कूल में उस महिला को बच्चा हुआ मैंने उनसे कहा कि "आप कम से कम कल तक के लिए यहां रुक जाइए क्योंकि आपकी हालत बिल्कुल भी कहीं जाने लायक नहीं है और शहर के चल रहे दंगों से तो यही लगता है कि आपको यहां रहना बहुत सुरक्षित होगा।" मैंने उनके लिए कुछ खाने को बनाया और उन्हें दिया और फिर वह महिला मुझे शुक्रगुजार करते हुए रोने लगी कहने लगे "आज की दुनिया में कोई किसी का नहीं होता और तुमने मुझे इस दंगे से निकालकर मेरे लिए बहुत कुछ किया। मैं तुम्हारी शुक्रगुजार हूं", मैंने कहा "इसमें शुक्रिया की कोई बात नहीं है। हम सब एक दूसरे की मदद करने के लिए ही हैं और हम मदद नहीं करेंगे तो ऐसे समय में और कौन करेगा!"
वह बहुत ही खुश हो गई और कहा कि "यह मेरा बेटा है मैं इसकी माँ हूं लेकिन इसकी तुम दूसरी माँ हो। मैं हमेशा तुम्हें याद रखूंगी, फिर मैं उनसे पूछने लगी "आप क्या करतीं हैं और इस वक्त यहाँ कैसे फंस गयीं" तो मालूम पड़ा कि दंगे को देखकर उनका ड्राइवर भाग गया और वो किसी बड़ी कंपनी की मालकिन है। कंपनी में दंगे की वजह से कोई आपातकालीन परिस्थितियां आ चुकीं थी तो उन्हें जाना पड़ा।
फिर वह मुझसे पूछने लगी कि" तुम क्या करतीं हो?" मैंने कहा "यह मेरा मोटर ट्रेनिंग स्कूल है जहां पर मैं महिलाओं को ऑटो रिक्शा चलाना सिखाती हूं।" वो आश्चर्य से पूछने लगी, "तुम ऑटो चलाती हो?" मैंने कहा "हां, मुझे अच्छा लगता है। मेरा क्या मुझे तो ऑटो चलाना ही पसंद है और अगर मौका मिलेगा मैं तो एक दिन विमान भी उड़ाऊंगी।" वह हँसने लगी और पूछने लगी कि" क्या तुम विमान उड़ाना जानती हो?" मैंने कहा "नहीं जानती पर सीख लूंगी, कौन सा मुझे रिक्शा चलाना पहले से आता था इसलिए विमान भी चलाना सीख लूंगी।" मेरी बातें सुनकर वह हँसने लगी। इतने में ही उनके पति का फोन आया वो बात करने लगी और फोन रखते ही वो कहने लगी की "सुबह मेरे घरवाले लेने आ जाएंगे।" सुबह होते ही बड़ी बड़ी गाड़ियों की कतार लगी थी तो उन्होंने कहा "ये मुझे ही लेने आए हैं", मैंने मन ही मन सोचा ये तो वाकई मे बहुत बड़े लोग हैं। उन्होंने मेरा नंबर मांगते हुए मुझे अपना कार्ड दिया और कहा "कभी भी जरूरत पड़े तो बेशक मुझे याद कर लेना।" फिर कुछ सप्ताह बाद ही मुझे उनका कॉल आया और कहने लगी कि, "मैं शायली बोल रही हूं मैंने पूछा, कौन शायली?"
फिर उन्हें बताया कि "मैं वही हूं जिसे दंगे के दिन तुमने मदद के लिए हाथ बढ़ाया था।" फिर याद आया कि बातों बातों में हम नाम पूछना ही भूल गए। उन्होंने मुझसे मेरा नाम पूछा तो मैंने बताया कि "मैं ज्योति सावंत और बाकी तो आप जानती ही है।"
वो बोलीं "हम तुम्हें निमंत्रित करना चाहते हैं कल ही मेरे बेटे का नाम करण है और मैं चाहती हूं मेरे बेटे की दूसरी माँ वहां पर ज़रूर हो क्योंकि भले जन्म मैंने दिया है पर उसकी पैदाइश और उसके जन्म पर तुम्हारा भी उतना ही हक है जितना कि मेरा। अगर आज तुम ना होती तो मेरा बेटा भी ना होता", मैंने उन्हें कहा "यह तो आपका बड़प्पन हैं और मैं ज़रूर आऊंगी।" फिर दूसरे ही दिन मैं अपने पति के साथ उनके घर पर पहुंच गयी। इतना बड़ा महल हमने तो कभी देखा भी नहीं होगा और हमें वहां पर बहुत अच्छा भी लगा। पूरे घरवालों ने हमारी खातिरदारी में कोई कमी नहीं छोड़ा। नामकरण किया गया और बच्चे का नाम श्रीहान रखा गया और मैने कहा "मैं तो इसे श्री बुलाऊँगी", मेरी बात सुनकर सभी हँसने लगे। शायली ने मुझे
अपने पति से मिलवाया जो बहुत सम्मान पूर्वक हमें खाना खिलाने के लिए लेकर गए। उस दिन के बाद से मेरा और शायली का अक्सर मिलना जुलना होता था। वह जब भी अपने ऑफ़िस से निकलती तो मुझे एक बार कॉल करती थी और कहती थी कि "मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे ऑटो में ही जाऊंगी क्योंकि जो मजा तुम्हारे साथ तुम्हारे ऑटो में है वह मुझे मेरी एयर कंडिशन वाले कार में भी नहीं मिलता", गप्पे मारते मारते मैं उन्हें उन्हें उनके घर तक छोड़ देती हूं और इसी बहाने मेरी श्री से मुलाकात हो जाती थी। थोड़ी देर तक उसके साथ खेलकर मैं अपनी मोटर ट्रेनिंग स्कूल के लिए रवाना हो जाती थी। एक दिन जब मैं स्कूल बंद कर रहीं थी तो शायली घर पर आई और कहने लगे कि" मैं तुम्हारे लिए खुशख़बरी लाई हूँ। मैंने पूछा खुशख़बरी! कौन सी खुशख़बरी?"
शायली कहने लगी कि "तुम कह रही थी ना कि तुम्हें विमान उड़ाना है तो उसी लिए हैं, तुमने तो बातों में कहा था पर मैंने उस बात को गंभीरता से लिया क्योंकि मेरे पति एक पायलट हैं, और यह काम मैं तुम्हारे लिए बहुत आसान कर सकती हूं।"
मैंने कहा "नहीं, मेरी उम्र हो चुकी है और फिर मैं कहां से यह सब कर सकतीं हूं, मैं तो पढ़ी-लिखी भी नहीं हूं।" फिर वह कहने लगी कि "देखो जो तुम्हें आता है वह हर किसी को नहीं आता क्योंकि तुम महिला होकर भी एक रिक्शा चलाती हो।"
उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा "जिस तरह तुम्हारी वजह से कितनी महिलाएं रिक्शा चलाना सीख रही है वैसे ही तुम पायलट बन जाओगी तो कई महिलाएं पायलट बनेंगी।" मैंने इस बात पर थोड़ा सोचते हुए पूछा, "क्या यह सच में हो सकता है?"
"अगर तुम चाहोगी तो सच हो सकता है और बाकी मैं यहां पर तुम्हारे हर मदद करने को तैयार हूँ।" शायली ने कहा कि, "मेरे पति एक पायलट है तो वह भी तुम्हारी पूरी तरह से सहायता करेंगे। अब तुम्हें तय करना है" और यह कहकर शायली वहाँ से चली गयी। मैंने रात में अपने पति वाशु से इस बात पर चर्चा की और उनसे पूछा कि "क्या मुझे यह करना चाहिए?" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, कि "तुम जो चाहो वह कर सकती हो और अब तुम पर कोई पाबंदी नहीं है, मैं तुम्हारे हर फैसले में तुम्हारे साथ हूं।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा "ठीक है" और फिर मैंने एक नया सपना देखा पायलट बनने का और सुबह होते ही मैंने शायली से बात की और कहा कि "मैं यह करना चाहती हूँ।"
फिर मुझे शायली ने पायलट ट्रेनिंग इन्स्टिट्यूट में दाखिला करवाया। वहां पर मुझे कुछ नहीं समझ में आता था शुरुआत के एक महीने तो मैं बस ऐसे ही बैठी रहती और चली आती थीं इसलिए मैंने ट्रेनिंग छोड़ देना बेहतर समझा। शायली को मैंने जब बताया तो उन्होंने मुझे ट्रेनिंग देना शुरू किया, वह मुझे घर पर गणित और इंग्लिश पढ़ाया करतीं थीं। मैं बहुत पढ़ी-लिखी नहीं थी तो मुझे सब कुछ अच्छे से समझ में नहीं आता था इसलिए वो चीजों को बहुत ही गहराई से समझने में मदद किया करती थी।
लगभग 6 महीने उनके पास पढ़ाई करने के बाद, जानकारी लेने के बाद, मुझे थोड़ी बहुत चीजें समझ में आने लगीं थी। इसलिए मैंने एक साल तक पायलट ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट जो मुंबई में है वही फिर से दाख़िला लिया। ट्रेनिंग लेने के बाद फिर मुझे अभी तक इतना विश्वास नहीं था कि मुझे होगा या नहीं होगा?
शायली ने मुझे सलाह दी कि "क्यों ना तुम अमेरिका जाओ और वहां एक इंटर्नशिप प्रोग्राम हैं जो कि सिर्फ चार महीनों मे के लिए होते है, जिसमें तुम्हें इंटर्नशिप दिया जाएगा और तुम जाओगी तो तुम्हारे लिए बहुत ही बढ़िया होगा।"
मैंने कहा "नहीं यह मुझसे नहीं होगा", शायली ने कहा "देखो, तुम्हें मैंने इंग्लिश सिखा दिया है। तुम बोल नहीं सकती पर कम से कम समझ तो सकती हो और दूसरी बात मेरे पति की वहां पर पहचान भी है, तो तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी।" फिर उनके कहने पर मैं मान गई और दूसरे ही दिन मुझे वहां के लिए रवाना कर दिया गया। वहां पहुंचने पर सब कुछ एकदम अजीब सा था, ना अपने जैसे लोग, ना अपने जैसे खाना, ना अपने जैसा व्यवहार। सब खुद में व्यस्त रहते थे, मैं भी किसी से बात नहीं करती थी। लोग मुझसे जो भी बोलते, मुझे समझने में थोड़ा वक्त लगा था पर मैं समझ जाती थी और धीरे-धीरे प्रयास करती कि मैं भी उनकी तरह बोल सकूँ। वहां रहते हुए मैंने उन चार महीनों में धीरे-धीरे अंग्रेजी बोलना भी सीख लिया। अब मुझ में एक नया साहस आ रहा था इसलिए मैं लोगों से थोड़ी थोड़ी बातें करने लगी थीं, उनके साथ समय बिताती और वहां पर अपने ट्रेनिंग पर पूरा ध्यान देती थी।
हम धीरे-धीरे छह महीने हो चुके थे और मैं फिर वापस यहां आने के बाद मुझे एक नई उम्मीद मिली और फिर मेरा परीक्षा का दिन भी करीब आ गया। जबकि मुझे पायलट के लिए अंतिम परीक्षा देकर अपने सपनों के करीब जाना था।
मुझसे ज्यादा तो शायली और बाकी लोगों में मेरे परीक्षा अंक के उत्तीर्ण होने की बेकरारी देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता था। कुछ ही दिनों के बाद शायली ने मुझे खबर दिया कि मेरा नाम टॉप 10 के छठवें में नंबर पर था। इसका मतलब मुझे भी सिलेक्ट कर लिया गया था। मैं बहुत खुशी हुई, मैंने शायली और उनके पति को दिल से शुक्रगुजार किया।
मुझे दूसरे ही दिन मुंबई एयरपोर्ट पर बुलाया गया, कहा कि "आप हमारे यहां की नई पायलट नियुक्त कर दी गई हो और आपको कल सुबह ही दिए हुए समय पर आना है।"
जब सुबह सुबह मैंने उस विमान को देखा तो ऐसा लगा कहां मैं इसे सिर्फ टीवी में देखा करती थी या आसमां में उड़ते हुए देखा करती थी और आज यहाँ बैठने नहीं बल्कि उड़ाने वाली हूँ। वहाँ के सभी सदस्य मेरी पूरी तरह से मदद कर रहे थे।
मैं विमान में बैठते ही काउंटडाउन स्टार्ट हुआ फिर हमने वहाँ के सदस्यों को बताया कि "सब कुछ हमारे नियंत्रण में है" और फिर हम मुंबई के एयरपोर्ट से दिल्ली के लिए रवाना हुए। उस दिन विमान की ऊंचाई देखकर जो खुशी, और लोगों को वापस उनके जगह पर पहुंचाने के बाद जो लोगों में खुशी देखी मुझे बहुत अच्छा और जो महसूस हुआ वो शब्दों से परे है।
इतने में मेरे पति वाशु अंदर आते हुए कहा कि "तुम कब आयीं?" मैंने कहा "बस दो घंटे पहले ही जब तुम गहरी नींद में सो रहे थे इसलिए मैंने तुम्हें जगाना ठीक नहीं समझा।"
मैं बैठे-बैठे यही सोच रही थी कि किस तरह जिंदगी में पहले अंधकार था और धीरे-धीरे अब जिंदगी में जो रौशनी है उससे दूर होने का मन नहीं करता। विमान उड़ाने वाली खुशी के बारे में बताया, मैंने कहा "ऐसा लगता है कि कितने वर्षों बाद जिंदगी में एक उजाला हुआ हैं, एक अलग सी रौशनी आयी है, अब तो बस इस रौशनी में खो जाने का मन करता है।"
फिर उन्होंने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा कि, "मैं तुमसे माफ़ी मांगता हूं, मेरी वजह से तुम्हें बहुत कुछ झेलना पड़ा है, मैं अच्छे से जानता हूँ। मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूं कि तुम आज भी मेरे साथ हो" और यह कहते हुए वाशु की आँखों में आँसू आ गए। मैंने उनके आँसू पोंछे और कहा "क्यों ना हम एक बच्चा गोद ले! जो हमारी जिंदगी में एक कमी सी है वह भी पूरी हो जाएगी।" उन्होंने सर हिलाते हुए कहा "हां, जो मन करे वो करो। अब हम खाना खाए कि भूखे मारने का इरादा है", मैंने कहा "क्यों नहीं भूख तो मुझे भी लगी है तो चलो खाना खाते हैं" और हम खुशी-खुशी खाना खाने लगे।