Radha Gupta Patwari

Drama

4.0  

Radha Gupta Patwari

Drama

मेरी तुलना किसी और से क्यों ?

मेरी तुलना किसी और से क्यों ?

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"अरे प्रीति ! ये कोना साफ नहीं किया क्या? यहां मिट्टी-मिट्टी से हो रही है!" कमला देवी ने कड़क आवाज में अपनी बहू से कहा।

प्रीती ने आटे से सने हाथ लिए, हड़बड़ाते हुए बाहर आकर कहा "मैं रोटी बना के साफ करती हूँँ।"

कमला देवी मोबाइल चलाते हुए बोली "किशोरी बुआ की बहू विधि पूरा घर चमका के रखती है, उनका घर शीशे की तरह चमकता है।"

प्रीति बिना कुछ बोले रोटियां बनाने लगी।

दोपहर को प्रीति के ससुर जी खाना खाने आए। प्रीति खाना देने लगी पर पानी देना भूल गई। सामने ही सासू मां बैठी थी, ससुर जी ने बोला पानी दो। सासु माँ ने तपाक से बोला- "प्रीति खाने के साथ पानी भी दिया करो, चाचा जी की बहू खाने से पहले पानी देती है"|

प्रीति ने बोला "जी मम्मी जी, आगे से ध्यान रखूंगी।"

अगले दिन रोहित नहा कर निकला और उसने बाथरूम को ऐसे ही गीला छोड़ दिया। कमला देवी ने तुरंत अपनी बहू से कहा रोहित के निकलने के बाद कपड़े से बाथरूम की टाइल साफ कर दिया करो, बड़े मामा जी की बहू दीपिका का बाथरूम सूखा रहता है। गीले बाथरूम से राहू खराब हो जाता है।"

प्रीति ने बोला "मम्मीजी अभी तो रोहित जी का टिफिन तैयार कर रही हूँ, इसके बाद साफ कर दूँगी।"

रोहिता के चले जाने के बाद कमला देवी और प्रीति बैठ के बातें कर रहे थे। तभी बातों बातों में कमला देवी ने बोला- "अशोक मौसा जी की बहू पूरे घर का ख्याल रखती है, पूरे घर को संभाल लिया है। मौसी जी आराम से घूमती हैं, कोई टेंशन नहीं है।"

प्रीति बोली- "आरती भाभी की शादी को पंद्रह साल हो गए हैं। आप भी पापा जी के साथ पास वाले पार्क में चली जाया कीजिए| आपका घूमना भी होगा और पापा से दो-चार बातें भी हो जाया करेंगी।"

तभी कमला देवी ने तपाक से बोला- "ना बाबा ना, मेरे बस की नहीं है। मेरे घुटनों में दर्द रहता है और बच्चे वहां क्रिकेट खेलने आते हैं| अगर घुटने में गेंद लग गई और बिस्तर पकड़ लिया तो फिर मेरी सेवा कौन करेगा? मेरी किस्मत बहन जैसी थोड़ी ना है !"

2 दिन बाद प्रीति को अपने सूट सिलवाने के लिए टेलर के पास जाना था। उसने अपनी सासू मां से टेलर वाले के पास जाने की बात कही। कमला देवी ने तपाक से बोल- "अरे! सामने वाली की बहू तो खुद अपने हाथ से ब्लाउज और सूट सिलती है। अपने हाथ से कितनी भी डिजाइन बना लो और कभी भी बनाकर पहन लो।"

प्रीति ने बोला "मम्मी जी सूट तो मैं भी सिल लेती हूँ, पर यह कपड़ा थोड़ा रेशमी है और रेशम के कपड़े की फिटिंग जल्दी सही नहीं आती है| बहुत सरकता है, इसलिए मैं टेलर से सिलवाना चाहती हूँ और मेरे पास अभी टाइम भी नहीं है। दिवाली होकर गई है और चचेरे भाई की शादी है।"

कमला देवी ने तुरंत बात पलटते हुए बोला- "नहीं, मैं तो बता रही हूं कि अगर सिलाई आती है तो अपने घर में ही कपड़े सिल के आदमी पहन सकता है।"

प्रीति चुपचाप सुनकर चली गई।

कुछ दिन बाद कमला देवी की सहेली घर पर आई। दोनों सहेलियां आपस में खूब हंस-हंस के बात कह रही थीं और अपने बचपन की बातें, जवानी की यादें और बुढ़ापे के किस्से सुना रही थीं| तभी प्रीति दोनों के लिए नाश्ता लाई और प्रीति वहीं पर बैठ गई।

कमला देवी की सहेली ने प्रीति से पूछा- "शादी को 1 साल हो गया है, घर कैसा लग रहा है? अब तो कम्मो की जिम्मेदारी कम हो गई होगी ?"

कमला देवी ने बोला- "इससे जितना हो सकता है उतना करती है। मेरी तरफ से भी कोई जिम्मेदारी नहीं है, मैं तो कहती हूं जितना हो सके उतना करो वरना छोड़ दो मैं करने के लिए बैठी हूँँ।"

प्रीति यह सुन अपनी सासू माँ का मुँह ताकती रह गई।

कमला देवी की सहेली के जाने के बाद सासू मां बोली- "इसकी दोनों बहुएं बहुत ही लायक हैं, बहुत ही समझदार हैं, पूरे घर की जिम्मेदारी अपने सर पर ले ली है और इसे पूरी जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया है। हाथ में बैठे-बैठे खाना देती हैं, पानी देती हैं और देखने में भी बहुत सुंदर हैं। सर्वगुण संपन्न घर की हैं पर घमंड जरा सा भी नहीं है| खाना भी खुद बनाती हैं, कपड़े भी खुद धोती हैं और सास ससुर को हाथों-हाथ सामान देती हैं।"

प्रीति की अब सहनशक्ति खत्म हो गई थी, वह बोली- "मम्मी जी, सब की बहू सर्वगुण संपन्न हैं। आप हमेशा कहती हैं कि उसकी बहू यह करती है इसकी बहू यह करती है, मौसी की बहू यह करती है, चाचाजी की बहु वो करती है, पर आपकी बहू क्या करती है ? आपने कभी वह देखने की कोशिश की है? सिर्फ आपकी बहू कुछ नहीं करती है! आपको सिर्फ मेरे में कमियां ही नजर आती हैं। मैं आपकी अपनी मां की तरह सेवा करती हूं पर आपने कभी मुझे बेटी के रूप में नहीं देखा।

मम्मीजी आप मुझे बेटी ना सही कम से कम मुझे बहू के रूप में तो देखिए। मैं क्या करती हूं? कितना करती हूँ? यह भी तो देखिए। मम्मी जी दूर के ढोल सुहाने होते हैं, सब में कमियां होती हैंं। मैंने आपकी और चाची जी की फोन पर बात सुनी थी, वह अपनी बहू की कितनी बुराई कर रही थींं। इस घर में आए हुए मुझे एक साल ही तो हुआ है, धीरे-धीरे एडजस्ट कर रही हूँ, सीख रही हूँँ।"

कमला देवी अवाक होकर सब सुन रही थीं।

दोस्तों, मैं यहाँ सास को नीचा और बहू को ऊंचा नहीं दिखा रही हूँ। हमारे समाज में बहुओं की तुलना हमेशा रिश्तेदार की बहुओं से की जाती है जो कि सही नहीं है। हर घर के अलग-अलग नियम होते हैं। अपने घर की बहु को घर के रीति रिवाज बताइए पर उस की तुलना किसी के घर की बहू से न करें, क्योंकि आपकी बहू आपकी ही रहेगी।


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