jyoti pal

Drama

4.5  

jyoti pal

Drama

मेरी सुंदर और प्यारी मम्मी

मेरी सुंदर और प्यारी मम्मी

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मेरी नज़र में सभी महिलाएँ मेहनती और ज़िम्मेदार मुझसे ज्यादा हैं । मैं अपनी नानी से बहुत ज्यादा प्रभावित हूँ , उनकी तरह शायद ही कोई हो, यहाँ लिखना उनके बारे में सम्भव नहीं हैं । कहानी बहुत पुरानी और लंबी हैं। उनके बाद मैं अपनी मम्मी से प्रभावित हूँ । बचपन से ही घर का सारा खर्चा, मम्मी के हाथ में रहा हैं यहां तक कि पड़ोसी भी अपने बच्चों से ज्यादा अपनी बेटी की तरह ही मानते हैं और हजारों रूपए संभालने के लिए विश्वास पर दे देते थे। मम्मी मुझे बोलती हैं पता नहीं कैसे घर संभालेगी शादी के बाद । मम्मी घर के काम की वजह से ज्यादा नहीं पढ़ पाई लेकिन बात करने से कोई नहीं कह सकता कि कम पढ़ी लिखी हैं। मेरे नाना और मामा नहीं हैं सत्ताईस साल की उम्र से नानी ने ही पाला हैं मेहनत करके अपनी बेटियों को । "भात कौन भरेगा?" यहीं सोचकर बेटा ना होने का दुख तो था पर बेटियों के रहते चिंता नहीं थी। मम्मी को भी भाई ना होने का दुख होता हैं वह किसी और के भी राखी नहीं बांधती ताकि कोई कल को यह न कह दे लेने की वजह से राखी बांधी हैं। बचपन में पानी भरने एक किलोमीर दूर जाना पड़ता था। मिट्टी का तेल राशन लेने दो किलोमीटर दूर और लंबी लंबी लाइनों में लगना पड़ता वो अलग कभी कभी उपले पाथने और पचास पैसे बचाने के लिए दो किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। ऊपर से घर का काम। नानी को सुबह सात बजे निकलना पड़ता था और कभी कभी बस नहीं मिलती तो आते आते दस बज जाते थे। जब मम्मी ने दसवीं की उसके बाद अपनी बड़ी बहन से ही सिलाई सीखी नानी ने मशीन ला दी थी। पैंट शर्ट हो, स्कूल की ड्रेस हो या शादी के कपड़े । शादी के बाद भी मम्मी ही घर का सारा काम करती घर बड़ा था । दादी धार्मिक पुस्तकें पढ़ती थीं। और जब चाचाओं की शादी हुई तो सब अलग हो गए ताऊ-ताई पहले से ही अलग रहते थे। बचपन से मम्मी ने मुझे घर का काम नहीं करने दिया जो वो खुद करना चाहतीं थीं और जो दुःख उन्होंने झेले वो नहीं चाहतीं थीं कि मुझे मिले इसीलिए वह आज भी मुझे आगे बढ़ने का हौसला देती हैं। मैं प्रभावित तो बहुत महिलाओं से हुई पर हौसला मां से मिलता हैं जो कुछ भी उन्होंने दुःख उठाए वह मैं नहीं उठा सकती शायद मैं उनकी जगह होती तो एक साल में ही डाइवोर्स हो जाता।


उनका इतनी मेहनत करके सबकी बातें सुनना मुझे अच्छा नहीं लगता। शादी के बाद से अब तक अक्सर बासी रोटी खाना मुझे अच्छा नहीं लगता। और कुछ हद तक मैं कई बार रोक लेती हूँ । सरकारी नौकरी को पहले ही दिन घर में लड़ाई की वजह से छोड़ देना। गुस्सा तो आता हैं पर सीख भी मिलती हैं, रिश्तों को जोड़े रखने की। मायके में मम्मी के अच्छे चरित्र और मेहनत की, और ससुराल में रिश्तेदारी में सभी तारीफ करते हैं अगर ये ना होती तो घर नहीं संभलता बिगड़ जाता बिखर जाता।


मुझे सीख मिलती हैं रुपयों से ज्यादा रिश्तों को संभालना रिश्ते ही मुश्किलों में साथ रहते हैं रुपए तो हाथों का मैल हैं। खुद बेशक दो जोड़ी कपड़ों में पूरा साल गुजार दे किसी त्यौहार पर नए वस्त्र नहीं कभी नानी या पापा ले आए तो ठीक हैं हालांकि वस्त्र पुराने भी नहीं होते थे पर ओरो की तरह नहीं कि एक बार पार्टी में को साड़ी पहनी वह दुबारा ना पहनें ये सोचकर कि कोई क्या कहेगा? जबकि चाची और ताई पांच हज़ार की साड़ी पहनती हैं। पर मम्मी बोलती हैं अपने बजट के हिसाब से चलना चाहिए। पर मम्मी पुराने वस्त्रों को भी हमेशा इस्त्री करके ही पहनती हैं और पुराने वस्त्रों में नई चमक आ जाती हैं । और घर में सबसे सुंदर भी हैं। घर में सबको उनकी पसंद के कपड़े दिला दे पर खुद नहीं लेती। पांच सौ से ज्यादा के कपड़े नहीं खरीदे मैंने पहली बार ये बोलकर पंद्रह सौ की साड़ी दिलाई थी कि मुझे पहननी हैं। उनसे मुझे हर स्थिति में ढलना आ गया हैं । और मम्मी इन्तजार में बैठी हैं मैं कब आत्मनिर्भर बनूंगी। मैं हार मान लेती हूँ कई बार थक जाती हूँ , पर मेरी मम्मी नहीं मानती आज भी तू पढ़ ले, जाकर पढ़ाई कर ले काम मैं कर रही हूँ मैं ही घर में क्या करूँगी बोल देती है। और सच हैं अगर वो घर का काम नहीं करती तो शायद मैं स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी नहीं कर पातीं। घर रिश्तेदार पड़ोस में सब बोलते हैं घर का काम करवाया करो। हालांकि मुझे घर सारा काम आता हैं लेकिन पढ़ाई के लिए समय निकालना और काम के बाद थकान में पढ़ाई करना मेरे लिए थोड़ा सा मुश्किल हो जाता हैं। मेरा स्कूल जाना मेरे लिए तो बोझ ढोना था सारी पढ़ाई और एग्जाम्स की तैयारी मम्मी ही कराती थी। मेरा एडमिशन भी कॉलेज में मम्मी और भाई ही गए थे। मैं पढ़ाई से भागती भी थीं पर मम्मी की वजह से पढ़ती भी थीं। मुझे पहले भी अपने स्कूल से नफरत थीं आज भी होती हैं। स्कूल की कुछ टीचर ज़रूर याद आती हैं जो मुझे प्यार भी करतीं थीं और तारीफे भी करतीं थी मम्मी से। कॉलेज में तो मुझे प्यार भी मिला और सीख भी । जब बीमार पड़ती हूँ तो मम्मी मेरी सेवा में लग जाती हैं। सब व्यस्त हैं बस मम्मी को मेरे भविष्य की चिंता हैं। अब मम्मी को भड़काने में कुछ लोग मेरी नाकामयाबी से कामयाब हो रहे हैं, और अब मुझे अपनी मम्मी को जिताना हैं और अपनी कॉलेज टीचर का मेरे प्रति जो विश्वास था उसे सही दिखाना हैं। डर तो लगता हैं बहुत पर डर के आगे जीत हैं।


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