Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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jyoti pal

Drama

4  

jyoti pal

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क्वारंटाइन

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विपिन से भावना का विवाह हुए दो महीने बीते ही थे कि विपिन को बुखार हो गया, समय लॉकडाउन के शुरुआती दिनों का था , लेकिन दिक्कत यह थीं कि विपिन का घर हॉट-स्पॉट क्षेत्र में आ रहा था। और घर से बाहर डॉक्टर को दिखाने नहीं जा सकता था, दो दिन घर में रखी दवाई दे दी गई लेकिन जब हालत में सुधार नहीं हुआ तो अस्पताल वालों को फोन किया गया अस्पताल की गाड़ी विपिन को ले गई

भावना परेशान थीं और जब क्वारांटाइन में चौदह दिन के लिए ले गए सैंपल लिये गए तो परिवार को यकीन था अब जल्दी ठीक होकर वह अपने घर आ जायेगा विपिन का कुछ दिनों बाद फोन आया पर ज्यादा बात नहीं कर पाया वह नहीं चाहता था कि घर में कोई परेशान हो और वह यह भी सोच रहा था की मुझे कुछ हो गया तो भावना कैसे रहेगी मेरे बिना लेकिन उसकी आवाज़ उसकी दशा बता रही थीं। परिवार वालों ने कई बार फोन किया पर उससे बात भी नहीं कि जा रही थीं इसलिए उसने फोन नहीं उठाया घर में किसी कुछ समझ नहीं आया सब परेशान हो गए और हॉस्पिटल पहुँच गए। वहां विपिन की बिगड़ती हालत को देख विपिन की माँ और भाइयों ने सरकारी अस्पताल पर दोष लगाया कि वहां डॉक्टर की लापरवाही के कारण यह दशा हुई हैं ,विपिन को तुरंत प्राइवेटअस्पताल में भर्ती कराया लेकिन अगले दिन सुबह करीब तीन बजे के बीच विपिन ने दम तोड़ दिया। यह सुनते ही घर में रोना पीटना शुरू हो गया। सब रिश्तेदारों को फोन कर दिया गया दूर कोई रिश्तेदार नहीं था इसलिए सब पहुंच गए जो विपिन के साथ के मित्र थे वह सुबह पांच बजे ही घर से निकल गए दिन में सख्ताई हो जाती हैं अंदर ही अंदर रास्तों से होकर वह छह बजे पहुंच गए । पास के लोगों की सुबह इस दुखद समाचार से शुरू हुई। जिन्हें नहीं पता था वह भीड़ को देख उसका कारण पूछ रहे थे।

सब अपने अपने घर के बाहर बैठकर शोक मना रहे थे

पुलिस ने डिस्टेंस का पालन करवाया। नौ बजे एम्बुलेंस आ गई, विपिन की पत्नी का सारा श्रृंगार उतारा गया

माथे से सिंदूर बिंदिया हटाएं, चूड़ियां तोड़ी गई इत्यादि

भावना बिखर गई थी मर चुकी थी बस शरीर ही जिंदा था

आंसू थामे नहीं थमते थे जो खूबसूरत सपने शादी से पहले देखें थे जो कसमें जिंदगी भर साथ रहने की निभाई थी वह बस यादों में सिमटी थीं। कुछ ही दिनों बाद घर में भावना को ससुराल वालों ने मनहूस, कलंक बता दिया, ससुराल वालों को अब वह एक नज़र नहीं भाती थीं।

"तुम्हारे कारण ही हमारा लड़का नहीं रहा मनहूस कहीं की तू क्यों नहीं मरी मेरे लड़के को खा गई मिल गया सुकून, मैं तो पहले ही बोलती थीं अपने बेटे से इससे शादी मत कर पता नहीं कौन सा काला जादू कर रखा था।"

और दूसरी तरफ अपनी इकलौती बेटी को पिता वापस घर लाना चाहते थे, फिर जिंदगी में दुःख दूर करने की कोशिश में फिर विवाह के बारे में चिंतित हैं " हमारे बाद क्या होगा हमारी बेटी का। दूसरी जगह अब बेशक दो ही महीने हुए हो दुहेजिया से कौन अच्छा लड़का हाथ थामेगा। पहले ही मना किया था वो लड़का था ही नहीं हमारे स्टेटस का। हमसे ना तब उसका दुख देखा गया ना अब देखा जाता हैं हमारी ही बेटी की किस्मत में इतना बड़ा दुख लिखा था।"

भावना तस्वीर को देखती याद करती दिन रात रोती ना कुछ सोच पा रही थीं ना कुछ समझ पा रही थी भगवान से मन ही मन उमड़ते सवाल भीतर ही भीतर पूछती "उसने किसी का कब बुरा चाहा, उसने प्रेम करके क्या गलत किया था? उसे प्रेम हुआ ही क्यों? क्या मेरी तकदीर में यहीं लिखा था या उनकी इतनी ही जिंदगी थीं माँ जी ही सही कहती हैं मैं ही मनहूस हूँ।" जिसका उत्तर उसके पास नहीं था और भावना के पास जैसे अब अश्रु ही अश्रु थे। लेकिन वह फैसला कर चुकी हैं वह किसी पर अब बोझ नहीं बल्कि नौकरी कर अपने पैरों पर खड़ी होंगी अपने अकेले माँ-पिता के लिए ससुराल वालों के लिए अब वह संघर्ष कर जिंदगी में आगे बढ़ अपने पति का बिजनेस संभालेगी।


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