मेरी डायरी
मेरी डायरी
आज बहुत दिनों के बाद घर में एक कोने में कुछ चीजें मिली.... उलट पलट कर देखने से वहाँ मेरी पुरानी डायरी मिली... मेरी वह डायरी मेरे कॉलेज के दिनों की थी.. मेरे हॉस्टल के दोनों की बहुत सी यादें उसमें बसी थी...
आज उस डायरी को देखकर कितनी सारी यादें मेरे जहन में ताज़ा हो गयी....
कभी यह डायरी मेरे लिए बहुत अज़ीज़ हुआ करती थी..
यह बेजान डायरी बेहद ख़ामोशी से मेरी जो भी बात मैं उसके हवाले करती अपने पास उन पन्नों संभाल कर रखती थी... न जाने मेरी कितनी सारी बातें उसमें दर्ज़ थी। मेरी खामोशियाँ और चुप्पी भी उन पन्नों में कही दर्ज़ थी...
आज उम्र के पाँचवे दशक में वह सब बातें पढ़ते हुए मुझे रोमांच हो रहा था.... मैं उस वक़्त खामोश क्यों रही इस बात से मेरे मन में विषाद भी हो रहा था...
उस वक़्त की मेरी वह ख़ामोशी आज न जाने क्यों मेरे मन में इतना शोर कर रही थी....
मैं धीरे धीरे डायरी के पन्ने पलटने लगी और उस वक़्त की मेरी कैफ़ियत को महसूस करने लगी...
हाँ, आज जो भी मैं हूँ वह उस डायरी से कहीं आगे निकल चुकी हूँ ...
जो डायरी में दर्ज़ 'मैं' थी आज मुझे वह कही नज़र नहीं आ रही है...
आज उसकी जगह मुझे एक कॉन्फिडेंट और अपनी बात को पुरजोर तरीके से रखने वाली एक स्ट्रॉन्ग औरत नज़र आ रही है...
सच, आज लग रहा है वक़्त कितना बदल गया है...
इस डायरी को पढ़ने के बाद मैंने ठान लिया है की मुझे उन सारी लड़कियों के पंखों को स्ट्रांग बनाना होगा जो खुले आसमां में उड़ना चाहती है...
इस डायरी ने मेरा होराइजन और ज्यादा वाइड कर दिया है...
दूर आसमां में चाँद हँस रहा था....