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rekha karri

Classics

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rekha karri

Classics

मेरी बहू मेरी सहेली

मेरी बहू मेरी सहेली

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ऑफिस से घर के अंदर ठीक से कदम भी नहीं रखा और जूही कहने लगी मम्मी जी जल्दी चलिए न। कहाँ जाना है जूही कुछ बता तो पर उसने एक नहीं सुनी और हड़बड़ी मचाने लगी ठीक है चलती हूँ कहते हुए सविता ने पर्स उठाया और घर पर ताला लगाकर जूही के साथ बाहर आई। शाम के छह बजे थे हम दोनों चलते हुए गली के कॉर्नर पर पहुँच गए।जहाँ गोलगप्पे वाले का ठेला था। पहुँचते ही जूही ने कहा -भैया दो प्लेट गोलगप्पे के दे दीजिए। खाते -खाते बोलने लगी मम्मी जी ऑफिस से आते समय रोज देखती हूँ लोगों को गोलगप्पे खाते हुए, मेरा भी मन करता था पर अकेले तो नहीं खा सकती हूँ न !!!इसलिए आज मैं आपको खींच कर ले आई। सॉरी !

कोई बात नहीं जूही मुझे भी अच्छा लगा बहुत दिनों बाद गोलगप्पे खाकर थैंक्यू। जूही बहुत ख़ुश हो गई।

हम दोनों मजे से गोलगप्पे खाकर बातें करते हुए घर पहुँच गए। यह मेरी बहू थी। 

उसे शादी करके हमारे घर आए हुए दस साल हो गए। हम दोनों ने अपना इतना अच्छा तालमेल बनाया कि बिना किसी नोक झोंक के हम आराम से आगे बढ़ते जा रहे हैं जिससे घर की शांति में खलल न पड़े। जब कभी समय मिलता तो मैं और जूही बैठकर टी . वी देखते थे तब विकास हँसते हुए कहते थे, यह क्या बात हुई !!!सास बहू को तो लड़कर अलग अलग कमरों में मुँह फुलाकर बैठना चाहिए पर आप दोनों एक ही कमरे में बैठकर सीरियल देख रहे हैं। जूही कहती थी —पापा जी रिश्ता वही सोच नई है। 

जब भी हम दोनों को मौक़ा मिलता था हम शापिंग पर निकल जाते थे। एकबार ऐसा हुआ कि जूही काउंटर पर पैसे भरने गई और मैं वहीं की एक कुर्सी पर बैठकर उसका इंतज़ार कर रही थी। वहाँ खड़े एक व्यक्ति ने कहा अम्मा वह आपकी बेटी है क्या? मैंने कहा बहू है।पीछे से आवाज़ आई, माँ देखो न वे दोनों सास बहू हैं पर कितने ख़ुश हैं न मेरी भी शादी ऐसे ही घर में कराना जहाँ की सास मेरी दोस्त बनकर मेरे साथ रहे।मैं हँसने लगी और उस बच्ची को आशीर्वाद देते हुए कहा तथास्तु ! जूही आ गई और हम दोनों वहाँ से निकल गए पर मुझको ऐसा लग रहा था जैसे कुछ आँखें अभी भी हमारा पीछा कर रही हैं। मैं सोचने लगी कितने अरमानों से बच्चियाँ ससुराल आती हैं और अपने कडुवे व्यवहार से हम उनके सपनों को बिखेर देते हैं।जिन्हें बटोरने में उनकी पूरी ज़िंदगी भी कम पड़ जाती है। वही कडुवापन वे अपनी बहुओं को देती हैं।यह साइकिल की तरह चलता ही रहता है।कोई तो उस कडुवे पन को दूर करें ताकि आगे की पीढ़ी ख़ुशी से जिएँ और दूसरों को जीने दें। सोचते - सोचते ही कब घर आ गया मुझको पता ही नहीं चला। 

कई बार लोगों ने जूही को भड़काने की कोशिश भी की थी कि अलग मकान लेकर चले जाओ। क्यों साथ में रहते हो ? पर जूही ने तो उन्हें अनसुना ही कर दिया था। एक बार तो हद ही हो गई थी। विकास के मामा की बहू और बेटा दोनों मिलने आए थे। बहू ने तो हमारे सामने ही जूही को नसीहत दे डाली कि अपने लिए स्पेस रखो और आराम से अकेले रहो। उनके जाते ही विकास ने हँसते हुए कहा -हाँ तो जूही बेटा एक अपार्टमेंट देखूँ क्या तुम लोगों के लिए। जूही ने झट से कहा पापाजी ऐसे लोगों की बातों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देना चाहिए। यह उसके संस्कार हैं।उसने यही सीखा है कि घर घरवालों से बनता है न कि दीवारों से। सब को बाँध कर रखना और सबको साथ लेकर चलना इसके लिए बहू को भी अवसर मिलने चाहिए।बेटे और बहू को भी बीच -बीच में अकेले छोड़ देना या उनको उनका समय बिताने का अवसर देते रहना चाहिए। हर समय उनके आगे पीछे नहीं घूमना उनके कामों में दख़लंदाज़ी नहीं करना चाहिए। जूही और हिमांशु को यह अवसर आराम से मिल जाता था क्योंकि मैं स्कूल में नौकरी करती थी और सवेरे साढ़े सात बजे घर छोड़ देती थी। विकास भी आए दिन टूर पर ही रहते थे। 

मेरी शादी के समय अपने सास के व्यवहार को देख कर मैंने यह निर्णय ले लिया था कि मैं अपनी बहू के लिए सास नहीं दोस्त बनूँगी। आज जब बहू आई तो उसे निभाने का समय आया और मैं अपने वादे को निभा रही थी और पास पड़ोस के लोगों के लिए एक मिसाल बन रही थी। 

दोस्तों जहाँ चाह है वहाँ राह है। अपने घर बार माता-पिता और अपने परिवार को छोड़ कर एक नवजवान का हाथ पकड़ कर आई बच्ची को बेटी का प्यार दीजिए। उसके लिए घर का माहौल इस तरह का बनाइए कि कभी उसे मायके की याद न आए फिर देखिए आपको आपका घर स्वर्ग के समान नज़र आएगा। असंभव कुछ भी नहीं है संभव करना हमारे हाथ में है। 


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