Sangita Tripathi

Inspirational

1.5  

Sangita Tripathi

Inspirational

#मेरी अम्मा

#मेरी अम्मा

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 मेरी अम्मा कोई बहुत प्रसिद्ध पर्सनल्टी नहीं थी, हाँ बस एक सरलता थी और एक हँसी जो सबको प्रभावित करती थीयूँ तो हर बच्चे को अपनी माँ सबसे अच्छी लगती है, पर मुझे अपनी माँ के कुछ दुर्लभ गुण दिखे जो औरो को नहीं दिखे 


मेरी अम्मा, वो पढ़ी- लिखी नहीं थी, पर उन्हे पढ़ने की बेहद लालसा थी, वो उस ज़माने की थी जब लड़कियों को पढ़ाना जरूरी नहीं समझते थे एक धार्मिक और रूढ़वादी परिवार में जन्म लिया था उन्होने,

हम दो बहने हैं बड़ी बहन और मेरे बीच दो भाई और थे, हमारे घर में ताऊ जी का बेटा, गाँव के पढ़ने वाले बच्चे यदा- कदा आते रहतेसबको मैनेज करना आसान नहीं था, पर वो कभी शिकन नहीं लाई खाना बनाने और खिलाने में...उनकी देखभाल करने में...पिता बहुत इंटेलीजेंट थे कामर्स के विधार्थी रहे थेअर्थशास्त्र के ज्ञाता थे, उनके और अम्मा के ताल -मेल को देखकर लगता था कितने सहज हैं दोनों एक दूसरे के साथकभी पिता को नहीं लगा की माँ उनके समक्ष कम हैं, माँ जरूर पिता की टैलेंट की इज़्ज़त करती थी आजकल तो पति -पत्नी छोटी छोटी बात के लिए तलाक ले लेते हैं, अपने अहम के कारण दोनों समझौता नहीं कर पाते शायद तलाक का सबसे बड़ा कारण यहीं हैं

              समय बीता घर में बहुएं और दामाद का आगमन हुआ अब अपने बच्चों के साथ इन बच्चों को भी मैनेज करना, उन्होने बड़ी खूबसूरती से निभायाबेटी और बहू को अलग नहीं समझा बल्कि बहू को ज्यादा प्यार किया की वो उनके घर की हैं बेटियां तो पराया धन हैं आजकल तो लोग नारे लगाते हैं की बहू बेटी एक है अपनी बेटी के लिए तो यहीं बोलेंगे पर बहू को नहीं समझेंगी


         मेरे जीजा जी असमय चले गये तो हम सब भाई बहन दीदी का बहुत ख्याल रखते थेएक बार मैं मायके आई थी, दीदी भी आ गई हम दोनो बहने गप्पे मार रहे थे तभी भाभीजी की कोई बात दीदी को बुरी लगी वे गुस्सा हुई भाभी और उनके बीच के झगड़े को माँ चुपचाप सुन रही थी... दीदी गुस्से में रोते हुए अपने घर चली गई पर माँ ने एक बार भी उन्हे रोका नहीं, ना भाभी को कुछ बोला .. मुझे बहुत गुस्सा आया, मैं माँ से लड़ पड़ी तब भी वो कुछ नहीं बोली भारी मन से मैं खाने बैठी तभी फ़ोन वाले कमरे से (उन दिनों मोबाइल नहीं था ) भाभीजी की आवाज़ आ रही थी, दीदी आप नहीं आएगी तो मैं भी खाना नहीं खाउंगीमुझे आश्चर्य हुआ.... थोड़ी देर में देखा दीदी वापस आ गई और वो और भाभी साथ खाने बैठे

          रात में मैं माँ से बोली तुम्हारी बेटी को भाभी अपमानित कर रही थी और आप देख रही थी कुछ बोली नहीं अपनी बहू को, माँ का जवाब...बेटा तुम्हारी दीदी को मैंने जन्म दिया उसको डांटेंगे तो वो अन्यथा नहीं लेगी बहू दूसरे घर से आई है इस समय मेरी डांट से उसे बुरी लगेगी ... और उसे अपनी ग़लती नहीं महसूस होंगी...देखो बाद में उसने किस तरह तुम्हारी बहन को माफ़ी मांग कर बुलाया, यहीं मैंने डांटा होता तो वो कभी नहीं बुलाती

             मैं उनकी सोच पर नतमस्तक थी वे आवेश में नहीं ठन्डे दिमाग से संतुलन बना रही थी, वे बाहर का नहीं खाती थी पर बहुओं की खातिर खाने लगी की उनको आराम मिले बहुत छोटी छोटी बातें हैं जो मेरे लिए प्रेरक हैं एक बार बोली की जहाँ तुम्हारी बात ना सुनी जाये वहां चुप रहना बेहतर हैयहीं मैं आज भी फॉलो करती हूँकभी हम बहनों को ससुराल की शिकायत नहीं करने दी, सरल दिल की वो तब कठोर हो जाती थी वही तुम लोगों का घर हैं अब.. अपने अंतिम समय तक वो चलती फिरती रही अपने काम स्वयं करती रही

               पैसों को किफ़ायत से खर्च करने वाली मेरी अम्मा किसी जरूरत मंद को मदद करने से नहीं चूकतीकभी पिता को पैसों की कमी हुई तो पता नहीं कहाँ से उनकी गुल्लक निकल आती थी, पैसों का संचय का ये तरीका मैंने उनसे ही सीखा


              यथार्थ के धरातल पर रह जो प्रभावित करें वही हमारा हीरो या हीरोइन हैं,वैसे भी मेरा मानना हैं की बच्चे की पहली और अच्छी शिक्षिका उसकी माँ होती हैं...... जो चीजें वो माँ से सीखता हैं आजीवन याद रखता हैं



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