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Sneha Dhanodkar

Inspirational

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Sneha Dhanodkar

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मेरे पापा मेरा अभिमान

मेरे पापा मेरा अभिमान

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रीया की शादी को चार ही दिन हुए थे। सुबह जल्दी उठकर वो सारे काम में लगा गयी थी। सबके लिये चाय नाश्ता बना कर उसने टेबल पर लगा दिया था। सासु माँ ममता जी की कुछ सहेलियां आने वाली थीं, उनकी बहु की मुँह दिखायी के लिये। तो उन्होंने पहले ही सारे निर्देश दे दिये थे। रीया वैसे ही सर्व गुण सम्पन्न थी और सुन्दर भी थी। उसने सासु माँ के कहे अनुसार सब बना कर रख दिया और तैयार होने चली गयी।

सासु माँ की सहेलियों के आते ही ससुर मोहित जी बगीचे में चले गए। पतिदेव मिहिर वहीं बैठे टीवी देख रहे थे। ननद निकिता के साथ वो तैयार होकर सबके सामने आयी।

सासु माँ ने सबसे मिलवाया। नाश्ता करके सबने बहुत तारीफ़ की। ममता की तो लॉटरी लग गयी हैं इतनी सुंदर और गुणी बहु मिली हैं। । सब कुछ ना कुछ तारीफ़ कर रही थी। तो ममता जी बोल पड़ी "अरे कहाँ लॉटरी,दिया ही क्या बहु के पापा ने।"

दहेज के नाम पर बस अपनी लड़की को ही दिया और तो और शादी भीं अच्छे से नहीं की। रिश्तेदारों को भीं कुछ खास नहीं दिया। रिया ये सब सुनकर सन्न रह गयी। क्युकि उसकी शादी पूरी ससुराल वालों के मुताबिक हुयी थी जो जों उन्होंने कहा सब किया गया था और किसी ने भीं शादी में कोई कमी नहीं छोड़ी थी रिया के पापा ने कर्जा लेकर शादी में उनकी हर फरमाइश पूरी की थी। रिया ने देखा मिहिर भीं माँ की बात सुन कर कुछ नहीं बोले। उसे बहुत बुरा लगा।

ममता जी की सहेलियों के जाते ही रिया ने अपना सामान पैक किया और बाहर आ गयी।ऐसे देख मिहिर बोला "कोई रस्म बाकी है क्या, कहाँ जाना है?" रिया ने कहा "मैं ये घर छोड़ कर जा रही हूँ।"

सब एकदम अवाक हो गए।निकिता बोल पड़ी "क्या हुआ भाभी?"

रिया बोली "मेरे पापा मेरा अभिमान हैं और जहाँ उनका सम्मान नहीं उस घर में मैं नहीं रह सकती। मेरे पापा ने सगाई से लेकर आज तक आप लोगों की हर बात मानी, कर्जा लेकर आपकी सब फरमाइशें पूरी की फिर भी आप चार लोगों के बीच उनकी बुराई कर रहे हैं। और आप तो अब उनके जमाई हैं ना, क्या कहा था आपने कि मैं आपका बेटा हूँ तो क्या बेटा इस तरह अपने पापा को सबके सामने बेइज्जत होते सुनता है?

रिश्तों को नाम देना आसान होता है और इज्जत देना मुश्किल। मैंने आज सुन लिया और आगे नहीं सुन पाऊँगी। कल को अगर निकिता दीदी के ससुराल वाले पापाजी की बेइज्जती करेंगे तो भी वो सुनती रहेंगी? माफ करना मैं नहीं सह सकती इसलिए मैं जा रही हूँ।"

मोहित जी दरवाजे पर खड़े सब सुन रहे थे,बोले "बिलकुल सही कहा बेटा तुमने, जहाँ पापा की इज्जत ना हो, वो घर घर नहीं होता। शायद इतने सालों से मैं ये बात इन्हे समझा नहीं पाया मुझे माफ कर दो गलती मेरी ही है। चलो मैं खुद तुम्हे छोड़ कर आता हूँ।"

ममता जी बोली "ये आप क्या कर रहे हैं? अभी तो शादी हुई है, लोग क्या कहेँगे?"

मोहित जी गुस्से में बोले तो ये पहले सोचना था " काश मैंने तुम्हे उसी दिन घर से निकाल दिया होता ज़ब तुमने मेरे पापा की बेइज्जती की थी तो आज ये नौबत ना आती।"ममता जी अवाक सी सुनती रही।

मोहित जी बोले "बेटा तुम चाहो तो अपने नए घर में रह सकती हो, ये उसकी चाबी है जो मैंने तुम दोनों के लिये बनवाया था" कहते हुए उन्होंने रिया को एक चाबी दी।तभी मिहिर बोल पड़ा "रिया मुझे माफ कर दो आगे से ऐसा कभी नहीं होगा। मैं अपने और तुम्हारे यानि हमारे दोनों पापाओं का अभिमान बरकरार रखूंगा। चलो नए घर में चलते हैं।"ममता जी को भी उनकी गलती का अहसास हुआ, उन्होंने रिया से माफ़ी मांगी और मोहित जी से भी।


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