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rekha karri

Abstract

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rekha karri

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मेरे निर्णय पर मुझे गर्व है

मेरे निर्णय पर मुझे गर्व है

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मेरे अपार्टमेंट के वाचमेन ने अपनी लड़की दुर्गा की शादी सोलह साल में ही अठारह की बताकर कर दी। अब आए दिन दमाद और सास के कारण उस छोटी सी बच्ची को जुल्म सहने पड़ते थे। एक दिन तो हद ही हो गई थी कि माँ बेटे के मार ने दुर्गा को अस्पताल पहुँचाया मैं हमेशा वाचमेन की बीबी को डाँटती थी कि तुमने गलत किया है पर मुझे बताती थी कि हमारे पास सब ऐसे ही कर देते हैं। दुर्गा की शादी हुए एक साल भी नहीं हुआ कि वह प्रेगनेंट हो गई और एक बच्ची को जन्म दिया। अब फिर पति और सास को मौका मिल गया दुर्गा को सताने के लिए कि कलमुँही ने लड़की पैदा कर दी। बच्ची को एक साल हुआ कि नहीं फिर से वह प्रेगनेंट हो गई मैंने दुर्गा को बुलाकर भी डाँटा पर उनका गाँव उनके नियम कुछ अलग ही होते हैं। 

ईश्वर की मर्ज़ी के मुताबिक़ ही सब चलता है। दुर्गा ने फिर से लड़की को ही जन्म दिया। अब आप सोच सकते हैं कि उस लड़की को क्या क्या भुगतना पड़ रहा होगा। उसे मार पीटकर घर से निकाल दिया गया था। वह मायके आ गई अपने दोनों बच्चों को लेकर। यहाँ माता-पिता को बिरादरी की चिंता थी। माता-पिता ने तो दोनों बच्चियों को अनाथ आश्रम में देने की बात भी सोची थी। मुझसे रहा न गया मेरे पति एक टीवी चैनल के एम डी थे। इसका फ़ायदा उठाकर रिपोर्टर उनके गाँव दुर्गा को लेकर पहुँच गए सास और पति को आड़े हाथों लिया। उनको ऐसे धमकाया कि वे सपने में भी दुर्गा के साथ ग़लत करने की कोशिश नहीं कर सकते हैं। 

आज उसकी बच्चियाँ बड़ी हो गई हैं उन्हें वह पढ़ा रही है। सास तो वक़्त के साथ गुजर गई पति की हिम्मत नहीं कि वह बच्चियों को या दुर्गा को कुछ कहें। मुझे लगता है कि उस समय मैंने जो निर्णय लिया था वह सही था। जब सब तारीफ़ करते हैं और दुर्गा को खुश देखती हूँ तो मुझे अपने निर्णय पर गर्व होता है। 


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