मेरा जीवन बहती धारा

मेरा जीवन बहती धारा

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मेरा नाम गंगा है। कहते हैं, बचपन जीवन का सबसे सुखद समय होता है। मेरा भी बचपन मेरे माता पिता की गोद में हँसी-खुशी व्यतीत हो रहा था। मेरे पिता का नाम हिमालय है और माँ का नाम गंगोत्री है। मेरे पिता की विशाल एवं निर्मल गोद में मैं नित्य ही खेलती और मेरी धारा कोलाहल मचाती रहती थी।


समय के साथ मैं धीरे-धीरे बड़ी हो गयी। मेरी धारा भी प्रसरित होने लगी। हमारे देश में बेटी को पराया धन माना जाता है। वह जीवन भर पिता के घर नहीं रह सकती। उसे विवाह कर पति के घर जाना ही पड़ता है। मुझे भी विवाहोपरांत अपने पति के घर आना पड़ा। परन्तु पिता का घर छोड़ने के उपरांत मुझे कभी सुख नहीं मिला। मुझे तरह-तरह के कष्ट झेलने पड़े। मेरी धारा को मलिन कर दिया गया। मुझे गदंगी और कूड़े-कचरे का बोझ ढोना पड़ा। मेरा जीवन अभिशापित हो गया। कहा जाता है कि मेरी धारा इतनी पवित्र है कि मैं किसी को भी मोक्ष दिला सकती हूँ। किन्तु मुझे ही अपवित्र कर दिया गया।


अब तो मैं स्वयं मोक्ष की कामना में अपने दिन व्यतीत कर रही हूँ। जब मेरी पीड़ा असहनीय हो जायेगी तब मैं सागर के आलिंगन-पाश में बंध कर अपना अस्तित्व समाप्त कर दूँगी। तब ही मुझे मेरी धारा में समाहित किये जा रहे मालिन्य के बोझ से मुक्ति मिल पायेगी।


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