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Rubita Arora

Tragedy

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Rubita Arora

Tragedy

मेरा बेटा मुझे लेने जरूर आएगा

मेरा बेटा मुझे लेने जरूर आएगा

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अस्सी साल की बूढ़ी शारदा जी ने अपने छोटे बेटे से कहा, "बेटा!! यहाँ बड़ी बहू मेरे साथ रोज लड़ती है...मन नही लगता अब यहाँ..बस पौत्रबहू है जो प्यार से रोटी दे देती है तो मेरा समय कट रहा है..।"


बेटा, "माँ!! बड़ी भाभी तो शुरू से ही ऐसी है...बात-बात पर झगड़ा करना तो मानो उनकी आदत है..कोई जरूरत नहीं अब तुम्हे यहाँ रहने की..तुम कुछ दिनों के लिए मेरे साथ मेरे घर चलकर आराम से रहो..आज सोमवार है..ठीक शनिवार को मै तुम्हे लेने आऊंगा..तुम तैयार रहना..।।"


बूढ़ी माँ का चेहरा खिल उठा। मन ही मन सोचा बहुएँ चाहे जैसी मर्जी हो पर मेरे बेटे तो मेरे अपने है। मैने अपनी परेशानी बताई तो झट से बोल दिया तुम मेरे घर चल कर रहो और फिर दिन गिनने शुरू कर दिये। बस चार ही दिनों की तो बात है। जल्दी ही निकल जाएंगे। मै तैयारी कर लेती हूं जाने की और फिर एक पोटली में अपने कपड़े बांधना शुरू कर दिए। अपने छोटे बेटे के घर जाने का एक अलग ही चाव था मन में। शाम को बाहर बैठकर सहेलियों संग बतियाती है,मै बस अब चार दिन के लिए ही हूँ यहां.. फिर कुछ दिन छोटे बेटे के घर रहूंगी तो हमारी बात न हो पाएगी...तब तक तुम सब रोज सुबह शाम आ जाना मुझसे बातें करने..। सहेलियां भी हाँ में हाँ मिला देती। अगले दिन फिर गिनती बस तीन दिन रह गये, अब दो फिर एक। शनिवार को तो शारदा जी सुबह-सुबह तैयार होकर बाहर दरवाजे पर बैठ जाती,सहेली को आवाज़ लगाती है अच्छा बहन मेरी राम राम!! मै जा रही हूँ आज.. बस मेरा बेटा अभी आता ही होगा..। बीच में बड़ी बहू कुछ कहने लगती तो बोलती, तू तो बात मत कर मुझसे..जीना हराम कर दिया तूने मेरा..इसीलिए तो जा रही हूँ.. कुछ दिन तुझसे छुटकारा मिलेगा..।इसी बीच पौत्रवधु ने आकर पूछा, "दादी!! आज खाने में क्या बनाऊँ" तो जवाब दिया बना ले "जो मर्जी..बना अपने चने,राजमा जो मेरी वजह से तू बना नही पाती..अब शौंक से बना और सब को खिला..मै तो अभी चली जाऊंगी.. बस मेरा बेटा आ रहा है..।" पौत्रवधु चुपचाप अंदर चली गई।सुबह से दोपहर हुई और फिर शाम। अब तो शारदा जी से भूख भी बर्दाश्त नही हो रही थी। हार कर बुदबुदाती हुई अंदर आई, कोई काम पड़ गया होगा.. तभी तो नही आ पाया.. चलो मै कौनसा सड़क पर बैठी हूँ.. यह भी तो मेरा अपना घर है.."बहू खाने में क्या बनाया है... ला थोड़ी सी सब्जी के साथ दो रोटियाँ दे दे..बहुत भूख लगी है..।" पौत्रवधु भी चुपचाप खाना डाल देती और फिर प्यार से चाय भी पूछ लेती। ऐसा वाक्या एक नही सैकडोंं बार होता। हर बार बूढी माँ बड़ी बहू की शिकायत करती, अपनी परेशानियां कहती और हर बार छोटा पुत्र कहता, माँ!! तैयार रहना..मै आपको लेने आऊंगा.. पर हर बार बूढी माँ का सिर्फ दिल ही टूटता। पुत्र कभी माँ को लेने नही आया। पौत्रवधु जो अपनी दादी सास से बहुत प्यार करती थी,सब समझती पर रिश्तों की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए चुप रह जाती। 


अबकि फिर शारदा जी पोटली बाँध तैयारी करते देखा तो हल्का सा बोल पड़ी, "दादी!! चाचा जी आते तो नही है हर बार.. फिर आप क्यों ऐसे तैयार होकर बैठती हो..?" शारदा जी बोली, "मुझे पता है वो नही आएगा...उसकी पत्नी ने साफ मना कर दिया होगा ..पर बेटा क्या करूँ..?? माँ हूँ न...जब तक जीवन है तब तक एक आस तो रहेगी ही... ।" पौत्रवधु की आंखों में आंसू आ गये। गोद मे अपना बेटा लिये सोचने लगी क्या यही दिन देखने के लिए हम इतने प्यार से बच्चो का पालन पोषण करते है..?? सच मे कितना मजबूत होता है एक माँ का दिल..सब कुछ पता होने के बावजूद आस का दीया हमेशा जगा रखा है..।


खैर इस बार भी बेटा तो अभी नही आया था परन्तु उससे पहले भगवान का बुलावा जरूर आ गया।अबकी बेटे को जब फोन कर सूचना दी गई तो वह दौड़ा आया माँ को अपने घर ले जाने नही शमशान ले जाने के लिए। आज रो-रोकर बोल रहा था,"माँ!! मै तो तुम्हे लेजाने बस आ ही रही था...मेरा इंतजार तो किया होता..।" पास खडी पौत्रबहु सवालिया नजरो से पूछना चाहती है, इंतजार!! पर आखिर कब तक...?? थोड़ी ही देर में शारदा जी के बाकी समान के साथ छोटी बहू ने वो कपड़ों की पोटली भी उठा बाहर फेंक दी गई जो हर बार उनके घर जाने के लिए बड़ी चाव के साथ बांधी जाती।


इस पूरे वाकये ने बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया। माँ-बाप अपनी पूरी जिंदगी हंसते हुए बच्चों के नाम कुर्बान कर देते है फिर बुढ़ापे में उन्ही बच्चों के लिए बोझ कैसे बन जाते है। आखिर ऐसी कौन सी मजबूरियां आ जाती हैं कि हम चाह कर भी उन्हें अपने साथ नहीं रख पाते। जिनकी छत्र छाया तले हमने सब कुछ हासिल किया आज जब बुढ़ापे में उन्हें हमारी जरूरत पड़ी तो हमे मुँह मोड़ना पड गया और फिर अगर एक बार बच्चे मुँह मोड़ ले तो शायद बूढे माँ बाप खुद को संभाल भी ले लेकिन उस कठोर दिल बेटे की क्या बात करे जो हर बार एक नई उम्मीद का दीया जाता और फिर खुद ही फूक मार बुझा डालता।.एक बार नही सोचा माँ का दिल कितनी बार टूटा होगा। माँबाप की बुढ़ापे में सेवा करना सबका फर्ज है लेकिन अगर उनके लिये कुछ नही भी कर सकते तो कृप्या झूठे वायदे भी न करे क्योंकि आपके लिए यह महज मजाक होगा पर उनका तो हर बार दिल टूटता है और दिल टूटने की आवाज़ भले ही न हो परन्तु इंसान अंदर से टूट जाता है। इस लेख के माध्यम से बस इतना ही कहना चाहती हूं कृपया शब्द वही मुँह से निकाले जिन्हें आप पूरा कर सकते है।


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