मेरा बेटा डस्टविन नहीं है
मेरा बेटा डस्टविन नहीं है
कुछ दिनों पहले मेरे पैर में फ्रैकचर हो गया था| डॉक्टर ने पूरी तरह रेस्ट करने को कहा था। तो घर का काम तो जैसे तेसै परिवार के लोग मिल कर लेते| पर मेरे बेटे का काम कौन करता? है तो वो दस साल का पर उस का सारा काम मुझे करवाना पड़ता है। क्योंकि वो एक स्पेशल चाइल्ड है। तो अगर वो खुद से भी कुछ करता है, तो भी मुझे उसके पीछे खड़े रहना होता है।
बड़ी मुश्किल हो रही थी उस की देखभाल करने में। पर माँ हूँ तो हिम्मत आ ही जाती है। मेरे पति भी इस मुश्किल घड़ी में पूरी तरह से मेरा साथ दे रहे थे। बेटे का सुबह का नाश्ता और बाकी सारे काम कर वो ऑफिस चले जाते। जब दोपहर का खाना बन जाता तो मुझे कमरे में ही दे दिया जाता बेटे को खिलाने के लिये।
पर कुछ दिनों से मेरा बेटा खाना खाने में बहुत ही गुस्सा कर रहा था। मैं समझ नहीं पर रही थी कि ये ऐसा क्यों कर रहा है। ऐसे ही एक दिन जब मं उसे खाना खिला रही थी और वो खाना खाने से मना कर रहा था ! और जोर जोर से चिल्ला रहा था। तो मैंने प्लेट वही साइड में रख दी। थोड़ी देर में जब मेरे पति (जो उस दिन जल्दी आ गये थे) मेरे लिये खाना लेकर आये| मेरे लिये खाना एकदम सादा बनता था जिसे मेरे बेटे ने बहुत प्यार और आराम से खा लिया।
तो मैंने सोचा कि जो खाना बेटे के लिये आया है आज मैं वही खा लेती हूँ। मुंह में निवाला डालते ही पता चल गया। ये बासी सब्जी और रोटी है। जिसे गरम कर के दिया गया था।
मेरा बेटा बोलता और समझता नहीं है। पर उसे भगवान की तरफ से ये गॉड गिफ्ट मिला है कि वो किसी भी चीज को सूंघ कर पता लगा लेता है, कि क्या अच्छा है क्या बुरा। इसी लिये वो कुछ दिनों से खाना खाने में गुस्सा दिखा रहा था। बस मैं ही नहीं समझ पाई।
बहुत बुरा लगा, दूसरे दिन कैसे भी कर के मैं किचन तक गई और अपने बेटे के लिये खुद से खाना ले आई| कुछ दिनों बाद सब ठीक हो गया। अब मैं आराम से चल सकती थी। तो अपने बेटे का पूरा ख्याल रखने लगी।
एक दिन मैं कुछ और काम कर रही थी। उसी टाइम परिवार के सभी बच्चे एक साथ खाना खाने लगे| तो मेरे बेटे का भी मन हो गया सब के साथ खाना खाने का। उसे भी खाना दिया गया पर वो अपनी थाली छोड़ कर दूसरे बच्चों की थाली से खाना खा रहा था।
मैं अपना काम छोड़ उस को देखने आ गई कि क्या हुआ है। ये ऐसा काम क्यों कर रहा है! देखा तो देख कर दंग रह गई। सभी की थाली में ताजा और मेरे बेटे की थाली में फिर कल का खाना था।
वैसे मैं इतना खाना नहीं बनाती कि बच जाये। पर बड़े परिवार में थोड़ा बहुत तो बच ही जाता है। वही खाना सिर्फ मेरे बच्चे को क्यों दिया? जब मैंने इस बारे मे परिवार के सदस्यों से बात की तो उन्होंने बड़ी ही लापरवाही से जवाब दिया... "रात में उसे वो सब्जी पसन्द आई थी इसलिये वही मैंने फिर से दे दी।"
ये सुन कर मुझे इतना गुस्सा आ गया "क्या मेरे बेटे के साथ ऐसा व्यवहार सिर्फ इसलिये क्योंकि आप कुछ भी दे दो कुछ भी बोल दो वो कुछ बता ही नहीं पायेगा। मेरा बेटा कोई डस्टबिन नहीं है। जिसे जो भी बचा खुचा हो सब डाल दो। भगवान ने उसे भी अच्छे बुरे की पहचान करना सिखाया है। और आज के बाद कभी भी मेरे बेटे के साथ ऐसा व्यवहार मत करना।
उसके बाद फिर कभी किसी की हिम्मत नहीं हुई मेरे बेटे के साथ ऐसा व्यवहार करने की।कभी कभी हमारे बच्चों के साथ लोग इसलिए गलत करते हैं क्योंकि हम ऐसा होने देते हैं। तो प्लीज अपने स्पेशल बच्चों की ढाल बनें|
