मेन आर नॉट मेनूपुलेटिव
मेन आर नॉट मेनूपुलेटिव
पुरुष सच्चा प्रेम नहीं कर सकते अर्धा डार्लिंग, वो उनके सिस्टम में इनस्टॉल ही नहीं होता " कुछ हँसते हुए समझाने के अंदाज़ में ताशी ने कहा तो अर्धा बड़े ही अविस्वास से उसे देखने लगी फिर जैसे असहमति से सर हिलाते हुए बोली, "मैं नहीं मानती ताशी, एक तेरा एक्सपीरियंस तिमिर के साथ अच्छा नहीं था तो इसके लिए तु सारे पुरुष को एक जैसा नहीं समझ सकती. चल आज के दौर की बात छोड़ भी दे तो पुरातन काल में स्त्रियों के प्रेम की खातिर कई पुरुष घर बार, माँ बाप, ज़मीन ज़ायदाद सब छोड़ते पाए गए हैँ.
"तो क्या वो पुरुष प्रेम नहीं करते थे ?"
अर्धा की आवाज़ में रुष्टता साफ झलक रही थी. "करते होंगे बेबी, बट यु नो ! मेन आर वेरी मेनुपुलेटिव" वो जहाँ अपना फायदा देखते हैँ वहीँ झुक जाते हैँ. जैसे अगर कोई सीधी साधी लड़की से उन्हें प्रेम हो जाए तो सोचते हैँ, ये मेरी हर बात मानेगी. मेरे माता पिता की सेवा करेगी तो उससे प्रेम जताते हैँ और अपनाने में आगे कदम बढ़ाते हैँ. इसके विपरीत कुछ पुरुष तेज़ तर्रार करियर वीमेन को पसंद करते हैँ ताकि उनके जीवन में आगे बढ़ने में सहायक हो और लाइफ स्टाइल मेंटेन करने में भी मदद करे.ये उनकी प्राथमिकता पर निर्भर करता है.
उस बहस के बाद दोनों सहेलियों का मूवी देखने में भी मन नहीं लगा. ताशी अतीत में प्रेम की असफलता पर दुखी थी. पुरे चार साल के रिलेशनशिप के बाद उसके बॉयफ्रेंड ने उसे धोखा देकर ज़ब किसी अमीर पिता की बेटी से शादी कर ली और बदले में माँ की बीमारी और खानदान की इज़्ज़त का हवाला देनेवाली दकियानूसी बात ज़ब कही ताशी सारा सच जानते हुए भी कुछ कह ना पाई, वैसे भी तिमिर शादी करके तब माफ़ी मांगने आया था, ऐसे में ताशी बस अंदर से टूटकर रह गई. आज ज़ब उसने मूवी से पहले पुरे टाइम अपनी सहेली अर्धा को अपने प्रेमी रोनित से कभी चैटिंग तो कभी बात करते हुए देखा तो खुद को इग्नोरड समझकर चिढ़ गई और कुछ अपनी दोस्त को उस दर्द से बचाने की मंशा से भी पुरुषों की मानसिकता पर काफ़ी कुछ कह डाला.
ताशी ने भले ही अपनी भड़ास निकाली हो पर उसकी कही बातें अर्धा को काफ़ी अपसेट कर रही थी. वो अपने प्रेम और प्रेमी रोनित को लेकर शशंकित हो उठी, कहीं रोनित भी तो उसे धोखा नहीं देगा? अभी दो साल से वो उसे जानती थी दोनों के परिवार वाले भी उनके रिश्ते को मंज़ूरी दे चुके थे, फिर भी अर्धा थोड़ी चिंतित हो उठी. इतना तनाव सा महसूस कर रहीं थीं दोनों कि मूवी के बाद ना शॉपिंग किया ना कुछ खाया पिया. सीधे घर की ओर रुख किया. घर आकर भी अर्धा के ज़ेहन में एक ही बात गूंज रही थी,
"मेन आर मेनुपुलेटिव"
और वो रोनित से बात करने को तत्पर हो उठी. उसे फोन लगाया और बड़ी उतावली सी हो पड़ी.रिंग जाती रही पर ज़ब रोनित ने फ़ोन नहीं उठाया तो अर्धा को ताशी की बातें कुछ कुछ सच लगने लगी. उसने फिर फ़ोन लगाया और सोचा कि अगर इस बार रोनित ने फोन नहीं उठाया तो वो कल उसके ऑफिस मिलने जाएगी. यही सोचकर वो सोने को लेटी ही थी कि तभी रोनित का कॉल आ गया. उसे बिलकुल यकीन नहीं हुआ. हेलो बोलते ही रोनित की आवाज़ सुनकर अर्धा एकदम भावुक हो उठी. बात करते करते ही उसने रोनित को पूछा कि, "कहीं तुम मुझे धोखा तो नहीं दोगे? तुम मुझे प्यार तो करते हो ना ?"
रोनित उसकी ऐसी बात से बड़ा चौंक गया कि आज अर्धा ऐसी नेगेटिव बात क्यूँ कर रही है. उसने उसे बहुत प्यार से समझाया फिर अगले दिन मिलने का वादा करके उसे बड़े ही प्यार से सोने को कहकर सोच में पड़ गया कि आज अर्धा इतनी अपसेट क्यूँ थी. भला उसे उसके प्यार पर विश्वास कम क्यूँ हो रहा है. जबकि दोनों ने मिलकर डिसाइड किया था कि ज़ब तक रोनित की छोटी बहन की शादी नहीं हो जाती तब तक वो दोनों इंतजार करेंगे और फिर तन्वी की शादी को अब सिर्फ दो महीने रह गए थे तब अर्धा को उसके प्यार पर एतबार कम क्यूँ हो रहा है. चलो, कल अर्धा से मिलकर पूछेगा कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है.
अगले दिन रेस्टोरेंट में कॉफी पीते हुए जैसे ही उसने अर्धा से पिछली रात की बात छेड़ी, अर्धा की बड़ी बड़ी आँखों में आंसू देखकर उसके दोनों हाथ थाम लिया जैसे कह रहा हो कि फ़िक्र मत करो, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ. फिर धीरे धीरे अर्धा ने कल ताशी से जो बात हुई वो सब बता दी. सुनकर रोनित एकदम परेशान हो गया फिर रेस्टोरेंट से बाहर निकलकर एक पार्क में बैठकर उसने अर्धा की पूरी बात बड़े ही धैर्य से और ध्यान से सुनी. फिर उसे प्यार से समझाया,
"हर इंसान अलग होते हैँ. पुरुष भी अलग अलग मानसिकता के होते हैँ.तुम्हारी सहेली ताशी का अनुभव उसके प्रेमी तिमिर ख़राब हो सकता है. ये भी बहुत संभव है कि उसने किसी गलत इंसान से प्यार कर लिया हो और उसकी धारणा सभी पुरुषों के लिए नकारात्मक हो गई हो. पर सब पुरुष एक जैसे नहीं होते, फिर हमें भी ऐसी स्त्री की तलाश रहती है जो पूर्ण समर्पित भाव से हमें प्रेम करे और हमारे साथ दुख सुख में कदम मिलाकर चले." प्यार कोई जादू की छड़ी नहीं है अर्धा जो एकदम से घुमाते ही हो जाए ना ही एक बार प्यार हो जाए"प्यार तो हमेशा एक जैसा रहता है. हाँ, अन्य रिश्तों की तरह पुरुष स्त्री को भी परस्पर अपने प्यार के बिरवे को एक दूसरे का साथ देकर, हौसला बढ़ाकर, सम्मान देकर सींचते रहना पड़ता है. वरना प्यार का पौधा कुम्हला जाता है. और हाँ, प्यार कभी कम ज़्यादा होता रहता है. समझी मेरी कन्फ्यूज्ड अर्धा !" कहकर रोनित ने उसके गाल थपथपा दिए. सच्ची, रोनित ! तुमने तो मेरे मन के सभी शक को दूर कर दिया. बोलते हुए अर्धा ने रोनित का हाथ बड़े ही प्यार से थाम लिया.
और... "सुनो, मेरी बात अभी ख़त्म नहीं हुई" रोनित ने उसकी आँख में देखते हुए कहा."वी मेन आर नोट मेनुपुलेटिव" बस हमें भी सच्चा प्रेम करनेवाली आत्मविश्वास से भरपूर जीवनसाथी मिल जाती है तो हम भी उसपर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैँ. बस वैसी स्त्री की हमें भी तलाश रहती है जिनकी हम इज़्ज़त भी कर सकें और बेपनाह मोहब्बत भी "!
लौटते हुए मई की गर्मी में भी अर्धा का क्लांत मन एकदम श्रांत था. मन की दुविधा मिट चुकी थी. वो सोच रही थी, कल जाकर ताशी से ज़रूर कहेगी... "इस युग में भी होते हैँ देवपुरुष, बस वो अपने मन से भ्रान्ति हटा दे!"
आज रात को सोते हुए अर्धा को अपनी लेखिका दोस्त वैदेही की चंद पंक्तियाँ याद आ गईं, जो उसे बहुत प्रिय थीं.
"अपने आँसू यूँ पलकों में
ना छुपाया करो,
हथेली पर चाँद
उतारकर रख दे,
ऐसा कोई कद्दावर ढूंढ़ लाया करो !"

